गरीब है कौन?
संपादक ब्रजेश मिश्र –सोने की चिड़िया ^ की उपाधि से नवाजा जाने वाला हमारा भारत में गरीब है कौन, एक विचारणीय सवाल है? भारत सरकार सहित अन्य सभी राज्य की सरकार का GDP बढ़ रहा है तो वहां गरीबी कैसे है? अगर गरीबी है तो फिर GDP का आंकड़ा गलत है! आखिर गरीब है कौन? क्या गरीब कोई जाति होती है? क्या गरीब का कोई क्षेत्र होता है? क्या गरीब का कोई अलग धर्म होता है? या फिर गरीबी भी राजनीति का एक तंत्र का नाम है? यह कैसा प्रजातंत्र है जहां की प्रजा दूसरे को राजा चुनती है, फिर वही प्रजा गरीब कैसे है? गरीबी की परिभाषा अलग – अलग लोगों के अलग- अलग विचार से परिभाषित किया जाता है। दिनभर दिहाड़ी करने वाला प्रतिदिन 10रुपये की खैनी, 20 रुपये का गुटका, 50 रुपये का पाउच, 25 रुपये का बीड़ी – सिगरेट पर खर्च करता है लेकिन सरकारी राशन की दुकान से 2 रुपये किलो चावल और गेहूँ के विलम्ब होने पर कोहराम मचा देता है, क्योंकि वह गरीब है। सरकार सैकड़ों योजनाओं के माध्यम से बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति हेतु सहयोग करती है। जन्म ( सभी राज्य में अलग-अलग योजना ) से मृत्यु ( कबीर अंत्येष्टि ) तक शिक्षा ( सर्व शिक्षा अभियान ) से रोजगार
( मनरेगा ) व्यापार के मुद्रा लोन तक मुहैया कराती है। खाने के लिए राशन और पकाने के लिए उज्जवला योजना। गरीब कौन है, जो अशिक्षित होकर प्राइवेट में 600 रुपये प्रतिदिन कमाता है या शिक्षित बेरोजगार, जो योग्यता के अनुसार काम की तलाश में दर – दर भटकता है? रहने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना से पक्का मकान प्राप्त करने वाला गरीब है या किराये के समय पर भुगतान नहीं करने पर उलाहना सुनने वाला किरायेदार? सभी समस्या के लिए जिम्मेवार सिर्फ सरकार नहीं होती बल्कि परिवार व व्यक्ति का संस्कार सबसे महत्वपूर्ण होता है। क्या गुटका खाकर सड़क पर थूकना सरकार ने सिखाया? क्या पाउच पीकर सड़क पर बैगन की तरह लुढ़कना सरकार सिखाती है? क्या खाने के दाने – दाने के लिए मोहताज गरीब सिगरेट से धुआं उड़ाता अमीरी का मजाक उड़ाने की अनुमति प्रशासन देती है? जनता के लिएसरकार के द्वारा 500 संख्या से अधिक योजना है जिसको अवलोकन करने पर और उसका लाभ उठाने वाला हर भारतीय मध्यवर्गीय बन जायेगा।आज के युग में कोई गरीब नहीं है, चाहे वह किसी भी वर्ण का हो लेकिन वह व्यक्ति गरीब था, गरीब है और गरीब रहेगा जो * कर्महीन * है। कमजोर होना और गरीब होना दोनों अलग – अलग विषय है। निःशक्त स्वाभिमानी व्यक्ति भी कर्म करना नहीं छोड़ता परंतु निठल्ले सिर्फ अपनी नाकामी का दोष बाप और सरकार पर मढ़ता है वास्तव में वही सबसे बड़ा ” गरीब “है।