लीची क्रेता-विक्रेता सम्मेलन, 2023 का आयोजन।..

त्रिलोकी नाथ प्रसाद-कृषि निदेशक डाॅ0 आलोक रंजन घोष, संयुक्त सचिव श्री अनिल कुमार झा तथा निदेशक, उद्यान श्री अभिषेक कुमार द्वारा संयुक्त रूप से आज बामेती, पटना के सभागार में आयोजित लीची क्रेता-विक्रेता सम्मेलन, 2023 का उद्घाटन किया गया। साथ ही, उनके द्वारा ‘Bihar’s Litchi at a glance’ नामक पुस्तिका का लोकार्पण किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक डाॅ॰ विकास दास, एपीडा के उप महाप्रबंधक डाॅ॰ सी॰बी॰ सिंह, निदेशक, बामेती श्री आभांशु सी॰ जैन, संयुक्त निदेशक, उद्यान श्री राधारमण, अन्य पदाधिकारीगण सहित मुम्बई और कानपुर के लीची निर्यातक, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, समस्तीपुर, भागलपुर, पूर्णियाँ तथा बेगूसराय जिला के लगभग 130 लीची उत्पादक किसान तथा स्थानीय व्यापारीगण उपस्थित थे।
कृषि निदेशक ने कहा कि उत्पादन लागत में वृद्धि होने के कारण किसानों की आय में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए हमें उद्यानिक फसलों के उत्पादन पर जोर देना होगा। इस क्रम में आज का यह कार्यक्रम सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि बिहार में करीब 37,000 हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 3.08 लाख मेट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है, जो पूरे देश में उत्पादित लीची का 42 प्रतिशत है। उन्होेंने कहा कि इस तरह के आयोजन से देश तथा विदेश में किसानों उनके उत्पाद के लिए सीधे उद्यमियों से जुड़ने के साथ-साथ उत्पाद की गुणवत्ता के लिए बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी प्राप्त होती है।
संयुक्त सचिव ने कहा कि हमारी ताकत बिहार की मिट्टी है। शाही लीची बिहार में होता है। अपनी अच्छी गुणवत्ता के कारण इसकी माँग अधिक है। उपजाऊ जमीन एवं सिंचाई के पानी की उपलब्धता तथा मेहनती किसान को दृष्टिगत रखते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ0 अब्दुल कलाम के द्वारा कृषि को बिहार का ‘कोर काॅम्पिटेंस’ कहा गया।
निदेशक, उद्यान ने कहा कि देश में लीची के उत्पादन में बिहार शीर्ष स्थान पर है। उत्तर बिहार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियाँ लीची उत्पादन के लिए अनुकूल है। हालाँकि, राज्य में लीची का उत्पादन करीब 26 जिलों में होता है, जबकि बुढ़ी गंडक के किनारे वाले मुजफ्फरपुर एवं आस-पास के क्षेत्रों में नमी की स्थिति एवं कैल्शियम की अच्छी मात्रा वाली जलोढ़ मिट्टी होने के कारण इन क्षेत्रों में लीची का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सर्वाधिक है। यही कारण है कि मुजफ्फरपुर एवं आस-पास के क्षेत्र यथा वैशाली, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर एवं सीतामढ़ी को ‘‘लैंड आॅफ लीची’’ के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कहा कि लीची की खेती एवं व्यवसाय में आजीविका सृजन के साथ निर्यात की व्यापक संभावनाएँ हैं। राज्य में मुजफ्फरपुर जिला की शाही लीची को भौगोलिक संकेतक (जी॰आइ॰टैग) वर्ष 2018 में प्राप्त हुआ है। राज्य सरकार एवं एपीडा के सहयोग से विगत वर्षों में शाही लीची अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में महत्वपूर्ण स्थान बना पायी है। गत वर्ष शाही लीची का निर्यात मध्य-पूर्व देशों जैसे बहरीन, दुबई एवं यूरोप के देशों में हुआ है। हाल के वर्षाें में लीची की माँग राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में काफी बढ़ी है। आवश्यकता है कि शाही लीची के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के साथ इसके फसलोत्तर प्रबंधन हेतु आधारभूत संरचना का विकास करना, ताकि इसके उत्पादन उपरांत हानि को कम किया जा सके एवं स्वस्थ तथा ताजा लीची फल को दूरस्थ बाजार तक पहुँचाया जा सके।
निदेशक उद्यान ने आगे बताया कि राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर एवं राज्य स्थित कृषि विश्वविद्यालयों में लीची के उन्नत प्रभेदों को विकसित करने के लिए अनुसंधान किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बिहार सरकार लीची उत्पादन एवं विपणन को बढ़ावा देने हेतु प्रयासरत है। राज्य में लीची के लिए बाजार और निर्यात के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने हेतु उद्यान निदेशालय, बिहार के द्वारा दरभंगा जिला में एपीडा के सहयोग से निर्यात पैक हाउस विकसित किया जा रहा है। साथ ही, पटना और बिहटा में निर्यात पैक हाउस भी कुछ महीनों में चालू हो जाएगा। ये सभी पैक हाउस अत्याधुनिक तकनीक से लैस होंगे, जहाँ पर फल एवं सब्जियों के ग्रेडिंग, सॉर्टिंग एवं पैकेजिंग की सुविधाएँ एक जगह पर ही प्राप्त हो जायेंगी, जो निर्यात के लिए एक नया आयाम साबित होगा।
श्री कुमार ने कहा कि बिहार में लीची आधारित 4 फार्मर प्रोडूसर कंपनी का गठन मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, शिवहर और सीतामढ़ी जिलों में किया गया है, किसान के इन समूहों को विभाग की ओर से लीची में मूल्य-संवर्धन हेतु 90 प्रतिशत सहायतानुदान दिया जा रहा है। लीची के विपणन को नई ऊँचाई देने हेतु यह लीची क्रेता-विक्रेता सम्मेलन का आयोजन उद्यान निदेशालय के द्वारा गया। यह आयोजन प्रगतिशील उत्पादकों, खरीदारों और निर्यातकों को एक साझा मंच पर लाने के साथ ही, लीची की बढ़ती विपणन एवं निर्यात क्षमता के बारे में जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया। राज्य के किसानों और उद्यमियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार की पहुँच अभी सीमित है, इस आयोजन के द्वारा एपीडा की मदद से लीची के विपणन एवं निर्यात की सम्भावनाओं का विस्तार करने में मदद मिलेगा। इस तरह के क्रेता-विक्रेता सम्मेलन से किसानों की पहुँच बड़े कंपनियों तक हो पायेगी एवं फार्म गेट पर ही विपणन की संभावनाएँ बढ़ेगी एवं किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होगी।