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*कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोती लाल बोरा नहीं रहे*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 21 दिसम्बर :: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोती लाल बोरा का आज (सोमवार) 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
सेहत खराब होने की वजह से उनका दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था।
जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली।
मोती लाल बोरा ने कल (20 दिसंबर) ही अपना 93 जन्म दिन मनाया था।

यह भी बताया जा रहा है कि मोतीलाल वोरा को दो दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले वे कोविड-19 से भी संक्रमित हुए थे। उस वक्त उनका इलाज एम्स, दिल्ली में किया गया था। इलाज के बाद वो ठीक हो गए थे और अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके थे।

कांग्रेस के तमाम नेताओं ने उनके निधन पर अपना दुख प्रकट किया है। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि “वोरा जी एक सच्चे कांग्रेसी और अद्भुत इंसान थे। हम उन्हें बहुत मिस करेंगे। उनके परिवार और दोस्तों को मेरा प्यार और संवेदनाएं।”

मोतीलाल वोरा ने अपने आखिरी दस वर्षों में भी एक्टिव थे। लोग प्यार से उन्हें दद्दू बुलाते थे और वे बतौर कोषाध्यक्ष अपनी पार्टी की पाई-पाई का हिसाब रखते थे। इतना ही नहीं वे एक पैसा भी फिजूल खर्च नहीं करते थे। वे स्वंयं एक पत्रकार रह चुके थे और कई अखबारों में उन्होंने अपनी पारी निभाई थी इसलिए वे पत्रकारों के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे। अपनी राजनीतिक जीवन में वे पत्रकारों की गुगली से बचना खूब जानते थे और कभी भी किसी विवाद में नहीं रहे।

मोतीलाल वोरा लंबे समय तक कांग्रेस कोषाध्यक्ष रहे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तरप्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके थे। पार्टी के प्रति पूर्ण समर्पित थे, जिसकी सम्पुष्टि इस बात से होती है कि
पार्टी के हेड क्वार्टर में कोई रहे या ना रहे लेकिन मोतीलाल वोरा हर दिन पार्टी दफ्तर में जरूर आते थे। 24 अकबर रोड पर कोई भी मददगार या कार्यकर्ता आता था तो मोतीलाल वोरा से आसानी से मुलाकात कर सकता था। मोतीलाल वोरा ने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के संगठन में काम किया। वे गांधी परिवार के सच्चे सिपाही माने जाते थे। 26 जनवरी हो या पार्टी का कोई और कार्यक्रम वे हमेशा सोनिया गांधी के दाएं-बाएं नजर आते थे।

उन्होंने एक लंबी सियासी पारी खेली थी। जनवरी 1989 से दिसंबर तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। इसके अलावे केंद्र सरकार में भी बतौर कैबिनेट मंत्री के पद पर आसीन रहे थे। वर्ष 1993 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गवर्नर के तौर पर जिम्मेदारी संभाली थी और 3 साल तक वहां राज्यपाल रहे थे। लेकिन वर्ष 2018 में बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने मोतीलाल वोरा से कोषाध्याक्ष की जिम्मेदारी लेकर अहमद पटेल को दे दी थी।

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