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*राष्ट्रीय प्रेस दिवस, 2022 के अवसर पर जिलाधिकारी, पटना डॉ. चंद्रशेखर सिंह का संबोधन*

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-आज लोकतंत्र के दो मुख्य स्तंभ- कार्यपालिका एवं मीडिया- यहाँ उपस्थित है। *मीडिया की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है यह सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।* हमलोगों ने पढ़ा है कि आजादी के पहले मीडिया ने प्रत्यक्ष भूमिका निभाई थी। उस समय के जो बड़े-बड़े बुद्धिजीवी थे, बड़े-बडे़ नेता थे वे सभी लोग किसी न किसी तरह से *प्रेस-मीडिया से जुड़े हुए थे*। कई लोग तो खुद का अखबार निकालते थे। अनेक लोग दूसरे अखबारों में लिखते थे। भारतीय प्रेस परिषद् द्वारा ‘‘राष्ट्र निर्माण में मीडिया की भूमिका’’ का जो विषय निर्धारित किया गया है वह बहुत ही प्रासंगिक है। *राष्ट्र जब संकट में होता है तो सबसे आगे खड़े होने वालों में मीडिया ही रहता है*। आजादी की लड़ाई में मीडिया की प्रत्यक्ष भूमिका रही है। मीडिया से जुड़े हुए लोगों ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया। इसके अलावा मीडिया ने लोगों को जागरूक भी किया तथा एकजुट भी किया। फिर राष्ट्र निर्माण में हमलोग देखते है कि सामाजिक, सांस्कृतिक उत्थान में भी मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका रही है। *सामाजिक कुप्रथाओं को समाप्त करने में, उनके विरूद्ध माहौल बनाने में और जो अच्छी प्रथाएँ है उसे प्रोत्साहित करने में भी मीडिया की भूमिका अच्छी रही है।*

अभी के दौर में कई माध्यम आया है। प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया भी सूचनाओं एवं *खबरों के प्रवाह का माध्यम है।* इसके साथ-साथ हम सभी की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। आज के संक्रमण के दौर में *क्रेडिबिलिटि* का प्रश्न सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। *यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को भी देखना है कि क्रेडिबिलिटि को कैसे बरकरार रखा जाए।*

*केवल सूचनाओं का तीव्र प्रवाह जरूरी नहीं है, पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके साथ-साथ सूचनाएँ प्रामाणिक हो, पूर्वाग्रह से मुक्त हो।* खबरें दो प्रकार की होती हैं- एक तो वह कि जो जैसा है वैसा दिखाना है, तथ्य जैसा है वैसा दिखाना है। दूसरा उसका विश्लेषण है। विश्लेषण जो हमलोग देखते थे वह एडिटोरियल पेज पर होता था और बाकी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी एक समय होता था जिसमें विश्लेषण का दौर होता था। लेकिन धीरे-धीरे सब खबर पर हमारा जो अपना *जजमेंटल स्वभाव* है वह हावी होने लगा है। *किसी खबर को लेकर हमलोग जजमेंट देने लगे हैं।* इसको लेकर भी थोड़ा सा सतर्क रहने की आवश्यकता है। *खबर जैसी है, फैक्ट जो है उसे दिखाएँ और उस पर क्या निर्णय है उसको श्रोताओं/पाठकों/दर्शकों के लिए छोड़ सकते हैं।* और जहाँ जरूरी है जजमेंट उसे घोषित कर के दें, अघोषित रूप में न दें। *जिला प्रशासन की तरफ से हमलोग प्रयास करते हैं कि जो भी जरूरी सूचनाएँ हैं वह जरूर मीडिया तक पहुँचे और अगर कोई पृच्छा होती है तो उसका हमलोग यथासंभव, यथाशीघ्र जवाब देने की कोशिश करते हैं। हमलोग समझते है कि अभी का जो दौर है बहुत ही प्रतिस्पर्धा का दौर है। इसमें पिछड़ना कोई नहीं चाहता है। इसलिए हमलोग अलर्ट रहते है कि आप लोगों की कोई पृच्छा है तो उसे तथ्य के साथ स्पष्ट करें।*

*मीडिया की आलोचना का जो पक्ष है यह उसका अनिवार्य अंग है और इसके लिए मीडिया की आलोचना नहीं की जा सकती।* आप निष्पक्ष ढंग से चीजों को देखते हैं और जहाँ कुछ कमियाँ रहती हैं आप निश्चित रूप से उसे हाइलाईट करें, उससे तंत्र अर्ल्ट रहता है कि किसी की नजर है और स्वतंत्र निगाह से वह देख रहा है चीजों को, तो तंत्र भी पूरी तरह से अर्ल्ट रहता है। हमलोग इसे फीडबैक के रूप में लेते हैं और चीजों को बेहतर करने का प्रयास करते हैं। *हम सभी एक दूसरे के पूरक हैं, आप सतर्क रखते है और हमें सतर्क रहना है।* तभी हम औैर आप दोनों मिलकर राष्ट्र निर्णाण में अपनी भूमिका निभा सकते है। किसी ने कहा है कि *‘‘कलम के सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे।’’* इस लाइन को याद रखना चाहिए हम लोगों को और आप जनहित के, देश के, राष्ट्र के उतने ही बड़े प्रहरी हैं जितने अन्य स्तंभ हैं लोकतंत्र के तीन अन्य स्तंभ जो अपनी भूमिका निभा रहे हैं, काम कर रहे हैं, उतना ही महत्व, उतनी ही भूमिका आप की भी है। मीडिया को पीछे नहीं रहना चाहिए, राष्ट्र निर्माण में अपनी आलोचना से तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में रख कर के और प्रश्न उठाकर के सतर्क रखना चाहिए सिस्टम को ताकि अधिक से अधिक हमलोग जनहित के कार्य को कर सके, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सके। आप सभी लोगों को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की एक बार फिर से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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