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भारतीत कानून एवं एससी-एसटी एक्ट, क्या पुलिस द्वारा अपराधकर्मियो को सुरक्षा प्रदान करने एवं बेगुनाहों (समाज सेवियों एव पत्रकार ) पर अत्याचार व दमन के लिए बने हैं,

ऐसी परिस्थितियों में देश की रक्षा व आतंरिक सुरक्षा की बात करना, देशवासियों के साथ बेईमानी नहीं तो और क्या हो सकते हैं?

पत्रकार के साथ जब देश में इंसाफ/ न्याय नहीं हो सकता तों पीड़ितों को समुचित न्याय दिलिने की बात सरकार व प्रशासन द्वारा करना ,हमारे देश व राज्य के जनता के साथ बेईमानी नहीं तो और क्या हो सकते है।

अनिल कुमार मिश्र,औरंगाबाद (बिहार) :- ग्राम पंचायत द्वारा सभी प्रावधानों, कायदे- कानून के विरूद्ध गलत तरीकों से शिक्षा मित्र, पंचायत शिक्षक का नियोजन किया गया है तथा योजनामद्द मद की राशि का घोटाले किया गया , जिसे बचाने के लिए अनैति रूप से पद प्राप्त कर चूके एक गवार शिक्षिका और एक गवार शिक्षक से एक पत्रकार पर एससी-एसटी एक्ट का (एक साथ एक ही दिन ) 02 मुकदमा अम्बा थाना कांड़ संख्या 27/2009 एवं अम्बा थाना कांड़ संख्या 28/2009 दर्ज कराया गया।

औरंगाबाद जिले में पदस्थापित ईमानदार पुलिस ऑफिसर अनुसूईयारण सिंह के सामने भ्रष्ट नेताओं एवं रिश्वत खोर एस एच ओ और केस के आईओ का एक भी नहीं चला, फिर भी मुकदमें की आड़ में गलत नियोजन को बचाने में अनैतिक रूप से पद प्राप्त कर चूके शिक्षा मित्र/ पंचायत शिक्षक सफल रहे और इनके नेता और शिक्षा मित्र/ पंचायत शिक्ष तथा इनके परिजन आरजेडी से नता तोड़कर/ पला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गये और बेजेपी नेता बन जाने के कारण आज भी अनैतिक रूप से वेतन प्राप्त करने के साथ साथ बच्चों के भविष्य के साथ सरेआम खेलवाड़ कर रहे है।

अम्बा थाना क्षेत्र में एससीएसटी परिवार के साथ होने वाले अत्याचार का प्राथमिकी एक ओर अम्बा थाना में दर्ज नहीं होता है और संबंधित थानाध्यक्ष पीड़ितों को नैतिकता की पाढ़ पढ़ाते हूए कहते हैं की एससीएसटी परिवार के साथ होने वाले जूल्म का निवारण हेतू जिले में स्पेशल कोर्ट व थाना है,वहाँ जाये ,कह मुकदमा नहीं लेते हैं। वही पत्रकारो एवं समाज सेवियों पर अनैतिक दबाब बनाने हेतू अम्बा थाना में एससी-एसटी एक्ट के तहत एक पत्रकार एवं इनके परिवार पर 04-चार एससी-एसटी एक्ट का झूठा मुकदमा दर्ज किया जाता है।

अम्बा थाना के पदेन थानाध्यक्ष एवं संबंधित सहायक पुलिस पदाधिकारियों ने बस मालीक एवं रोड़ पर रंगदारी की वसूली तथा यात्रियों से दूगना से अधिक भाड़ा वसूलने वाले शराब माफिया तथा अपने- आप को बचाव में अलाधिकारियों के आदेश व दिशानिर्देशों को लगातार ठेंगा दिखाने का काम किया, जब आफत गले आन पड़ी तो अम्बा थाना के एस एच ओ और पुलिस पदाधिकारियों ने अपने बचने के लिए एक पत्रकार पर एससी/एसटी के तहत अम्बा थाना में प्राथमिकी,अम्बा थाना कांड़ संख्या 41/2017 दर्ज किया। एससी-एसटी एक्ट के तहत पत्रकार व इनके परिवार पर मुकदमा दर्ज होने के पहले या कुछ दिन बाद तक तथाकथित केस के सूचक को यह भी पत्ता नहीं हैं कि रोड़ पर रंगदारी की वसूली करने वाला तथा सरेआम शराब बेचने वाले (शराब माफिया ) कोई निर्दोष ब्राह्मण तथा समाज के आईना दिखाने वाले (एक पत्रकार,इनके नाबालिक बच्चे और भाई) पर एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा किया है।

ठीक इसी तरह अम्बा थाना द्वारा संरक्षित बाहुँबलियो तथा अनुजाति जनजाति के साथ खुल्म -खुला अत्याचार करने वाले बाहुबलियों को बचाव हेतू सुनियोजित साजिश के तहत एक पत्रकार, इनके नाबालिक बच्चे और भाई पर एससी /एसटी एक्ट का मुकदमा अम्बा थाना कांड़ संख्या 27/12 दर्ज किया गया, जिसकी जानकारी केस को सूचक को मुकदमा दर्ज होने के पहले और बाद तक भी नहीं था।
अनुसूचित जाति के साथ होने वाले जूल्म में सरकार से प्राप्त होने वाले केस के सूचक को अनुदान की राशि दिलाने का प्रलोभन भी दिया गया और एक को दिलाया भी गया। फिर मी लालच ल प्रलोभन को ठुकरा कर परिजनों ने केस के तथिकथित सूचक को ब्राह्मण की हाय से बचने का सुझाव दिया ।
न्यायालय एव पुलिस अधीक्षक औरंगाबाद के समक्ष उपरोक्त दोनों केस के सूचक ने यह भी कहा है कि यह मुकदमा पुलिस द्वारा पत्रकार एवं इनके परिवार के विरूद्ध मनगढ़ंत दर्ज है, फिर भी झुठे मुकदमा को अनुसंधान एवं पर्यवेक्षण कर्ताओं ने सत्यकरार दे दिया गया और पीड़ित पत्रकार के फरियाद को कहीं भी नहीं सुना गया।

सरकार व वरीय पदाधिकारियों के हस्तक्षेप के बादएससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा,अम्बा थाना कांड़ संख्या 41/2017 में पत्रकार एवं इनके परिवार को न्यायालय के समक्ष अपनी बातों को रखने हेतू पीआर बांउड पर छोड़ा गया। उक्त कांड़ में माननीय उच्च न्यायालय पटना से पत्रकार,इनके नवालिंग बच्चे, भाई को जमानत मिला और आज भी विशेष न्यायालय के समक्ष मामला विचारण हेतू लंबित हैं और समाज के आवाज को सरकार व प्रशासन तथा जनमानस के बीच रखने वाला वरीय पुलिस पदाधिकारियों के कर्तब्यहिनता के कारणा न्याय हेतू आर्थिक व मानसिक शोषण व उत्पीड़न के दौर से गुजर रहा है और मूकदमें का विचारण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष न्यायहित में लंबित हैं।

अंतत: कर्तब्यनिष्ठ पुलिस पदाधिकारी ने एससी -एसटी एक के तहत पत्रकार पर दर्ज 02 मुकदमे को असत्य करार दे दिया जिसे न्यायालय ने स्वीकृति प्रदान की वही न्यायालय से एससी एसटी एक्ट के एक मुकदमे में पत्रकार एवं इनके सभी परिवार निर्दोष साबित हुए।
वहीं केस के सूचक द्वारा अम्बा थाना कांड़ सख्या 41/2017 को गलतकरा देने के बावजूद भी आज मुकदमा न्यायालय के समक्ष विचारण हेतु लंबित हैं और एक निर्दोष पत्रकार सह समाज सेवी,समाज के कार्यो को करने जगह न्याय हेतू अनवाश्यक रूप से न्यायालय की चक्कर लगा रहा है।

आवाज उठाने की सजा, अनैतिक रूप से पद प्राप्त कर चूके शिक्षा मित्रों ने पत्रकार के बच्चों को सरकारी विद्यालयों से निकाल कर तथा परिवार के सदस्यों पर झूठे मुदमा एक शिक्षा मित्र से दर्ज कराकर दिया, जिसका अम्बा थाना कांड़ संख्या 40/ 2006 हैं।
गलती के ऐहसास होने पर अम्बा थाना कांड़ संख्या 40/ 2006 में केस के सूचक (शिक्षा मित्र) नें सुलहनामा लगाकर केस को समाप्त करा दिया,वहीं आज पत्रकार के बच्चे और परिवार पर हमला करने वाले, शिक्षा मित्र अम्बा थाना कांड़ संख्या 40/2006 में विचारण हेतू आज भी न्यायायल के समक्ष अभियुक्तों के विरूद्ध अन्य धराओ के तहत मामले में विचारण तथा सजा के विन्दू पर मुकदमें को न्याहित के नाम पर उलझा कर रखे हुए है तथा पैसे की बदौलत पीड़ित बच्चों के साथ न्याय में व्यवधान उत्पन्न कर रखे हैं।

भारतीत कानून एवं एससी-एसटी एक्ट, क्या पुलिस द्वारा अपराधकर्मियो को सुरक्षा प्रदान करने एवं बेगुनाहों (समाज सेवियों एव पत्रकार ) पर अत्याचार व दमन के लिए बने हैं, अगर नहीं तो पत्रकारों एवं समाज सेवियों को गलत तरीकों से जेल में बंद रखने वाले भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों को सजा कौन देगा।

आखिर पुलिस के कर्तब्यहिनता एवं पदीय शक्ति के दुरूपयोग के कारण एक बेगुनाह पत्रकार 14 दिनों तक झूठे मुकदमा में भी जेल रहा और न्यायालय से अतत: बरी भी हुआ।
ऐसे मनगढ़ंत मुकदमा में 14 दिनो तक एक पत्राकार को जेल में रखने वाले दारोगा को सजा क्यों नहीं मिला और लगातार एससी-एसटी एक्ट के तहत निर्दोष पत्रकार एवं इनके नाबालिक बच्चे, भाई पर झूठे मुकदमे क्यों होते आ रहे हैं और आंख मूंदकर संबंधित अनुसंधानकर्ता एवं पर्यवेक्षण करता एक पत्रकार के विरूद्ध झूठे मुकदमे को सत्य करार कैसे देते आ रहे हैं और इसके लिए जवाब कौन है ? जिले में बैठे तमाम वरीय पुलिस एवं प्रशासनिक पदाधिकारी आखिर क्या करते हैं और बेगुनाहों को सजा देने वाले पुलिस पदाधिकारियों पर विधि सम्मत कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं, यह सवाल बिहार सरकार के माननीय मुखिया नीतीश कुमार, डीजीपी बिहार मगध न कमिश्नर,औरंगाबाद जिले के डीएम और एसपी से एक पत्रकार का है।

मै भी मानता हूँ कि कानून का दूरूपयोग पहले भी होता था आज भी हो रहा है। एससी-एसटी एक्ट जमानतीय धारा नहीं होनें के कारण इसका दुरूपयोग आज ज्यादा हो रहा है और इसका उपयोग भ्रष्ट थानेदार एवं नेता करते आ रहे है

ऐसी परिस्थितियों में देश की रक्षा व आतंरिक सुरक्षा की बात करना देशवासियों के साथ बेईमानी नहीं तो और क्या है?

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