पार्ट १७: कहाँ गए वो दिन?
बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से
वायरलेस विभाग। किसी IPS अफसर को बता दिया जाए कि उसकी पोस्टिंग वहाँ हो गई है तो पहली भावना मन में आएगी कि उसको शंट किया गया है।
1996 में मेरा पदस्थापन DIG वायरलेस में किया गया। मुझे तो ऐसी कोई बात मन में नहीं लगी, पर संभवतः सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों को ज़रूर लगी होगी।
मैं उत्साहित था कि फ़िजिक्स में इलेक्ट्रॉनिक्स का जितना ज्ञान था, उसका सदुपयोग कर पाऊँगा। सो पदभार ग्रहण करते ही वर्कशॉप में चला गया। वहाँ कार्य पर लगे कर्मियों से उनके कार्यस्थल पर बातें की, उनका इंस्ट्रूमेंट्स देखा। तसल्ली हुई कि यह भी इसी विभाग के कर्मी हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स भी समझ सकते हैं। उनसे मैंने फ़िजिक्स के सिद्धांतो पर भी चर्चा की तो मेरे मन में उनके लिए सम्मान बहुत बढ़ गया।
इस विभाग में हर वर्ष ख़रीददारी हुआ करती थी। जब ये कनीय कर्मी मुझसे खुल कर बात करने लगे तो उन्होंने बताया कि जितने पार्ट्स खरीदे जाते हैं, उतने की ज़रुरत नहीं है। जो वायरलेस सेट ख़राब हो गए हैं, उनसे ही पार्ट्स निकाल कर स्टोर कर लिया जाए तो बहुत सारे सेट रिपेयर हो जाएंगे। मुझे यह आईडिया अच्छा लगा और सरकार का काफ़ी पैसा बचा।
उन्होंने बताया कि सेकंड वर्ल्ड वॉर की समाप्ति के बाद पुराने वायरलेस सेट को पुलिस विभाग को दे दिया गया था। वह सब सेट अब बड़े गोडाउन में “कबाड़ी” की तरह रख दिए गए हैं। मैंने ऑफिस से बहुत दूर उस गोडाउन में जाकर देखा।
बहुत गन्दा था। धुल भरा, अव्यवस्थित। लेकिन उन पुराने सेट्स में मेरी रूचि एक विद्यार्थी की हो गई थी। मैं उसके सर्किट को ट्रेस करने लगा। पावर ओसिलेटर, मॉड्यूलेटर, डीमॉड्यूलेटर में लग गया।
अचानक एक कर्मी भाग के आया, “सर इस में तो चांदी है”। HF सेट में ओसिलेटर जिस कॉइल से बनाया था, वह चांदी की तरह चमक रहा था। धुल हटाने पर, अधिक चमकता था। ऐसे सभी सेट से इस कॉइल को निकाला गया। एक सुनार से उसकी कसौटी पर जांच करवाई। उसने बताया कि यह बिलकुल ख़रा है। वैज्ञानिक रूप से FSL में इसकी शुद्धता की जांच कराई। 99% के करीब शुद्ध निकला। एक कमिटी के समक्ष जिसमें सभी श्रेणी के कर्मी थे, वज़न कराया गया। स्मरण के अनुसार करीब 15 किलो चांदी निकला।सील करके ज़िले के कोषागार में जमा कर दिया गया।सरकार को इसकी विधिवत सूचना दे दी गई। सरकारी कचरे से चांदी निकाली गई