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उज्जैन के महाराजा महाकालेश्वर हैं – शिवराज सिंह चौहान

 

केवल सच – मध्य प्रदेश

उज्जैन – पूरे भारतवर्ष और मध्य प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री ने अपनी कुर्सी छोड़ दी और अपनी कुर्सी पर महाकालेश्वर भगवान शिव को एक तरह से स्थापित कर दिया।

उज्जैन में हुई एक कैबिनेट मीटिंग में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कुर्सी पर महाकालेश्वर की प्रतिमा को स्थापित कर दिया और खुद वहां बैठे जहां पर उनके सचिव बैठते हैं।

आखिर शिवराज सिंह चौहान ने ऐसा क्यों किया ? शिवराज ने कैबिनेट मीटिंग शुरू करने से पहले ये भी कहा कि उज्जैन के राजा महाकाल हैं और हम लोग तो सिर्फ उनके सेवक हैं।

आखिर क्या वजह है कि कोई भी मुख्यमंत्री, कोई भी पदाधिकारी, कोई भी बड़ा लीडर, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति उज्जैन में रात में रुकने से इनकार कर देता है ?

अगर इतिहास की बात करें तो देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उज्जैन में एक रात रूके थे और उसके बाद उनकी कुर्सी चली गई थी । उनको प्रधानमंत्री पद उनको छोड़ना पड़ा था ।

अभी हाल फिलहाल की बात करें तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा सिर्फ एक रात उज्जैन में रुके थे और 20 दिन के अंदर उनको इस्तीफा देना पड़ गया।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जो कि सिंधिया राजवंश से आते हैं, राज परिवार से हैं इसके बाद भी वह कभी रात में उज्जैन में नहीं रुकते हैं।

अगर सिंधिया राज परिवार का कोई सदस्य उज्जैन आता है तो वह उज्जैन में नहीं रुकता है बल्कि विशेष रूप से उज्जैन के बाहर एक महल बनवाया गया है और उसी महल में सिंधिया राजपरिवार का सदस्य रुकता है।

दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह राघोगढ़ रियासत के राजा हैं लेकिन वह भी जब उज्जैन आते हैं तो कभी भी उज्जैन में रात में नहीं रुकते हैं रात में चले जाते हैं।

मान्यता यह है कि राजा विक्रमादित्य के बाद से आज तक कोई भी राजा शासक या मुख्यमंत्री उज्जैन में रात में नहीं रुक पाया और अगर रुका तो उसका राजपाट चला गया।

मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य के समान पराक्रमी, न्यायप्रिय और सत्यवादी शासक ही उज्जैन में रात में रुक सकता है।

विक्रमादित्य के भाई राजा भोज ने भी अपनी राजधानी धार को बनाया ना कि उज्जैन को।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान काफी बुद्धिमान है  17 साल से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री है लेकिन उन्होंने कभी कैबिनेट की बैठक उज्जैन में नहीं की थी और जब की तो अपनी कुर्सी महाकालेश्वर को सौंप दी ।

इसे कहते हैं धर्मानुकूल आचरण जिसकी  सभी प्रशंसा करते हैं ।

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