18 सितम्बर 2023, सोमवार क़ो ही होगा “हरितालिका तीज” “विश्वकर्मा पूजा” एवं मिथिला का पर्व “चतुर्थीचंद्र पूजा” :-ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा।…

पंडित तरुण झा:-ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान , रहमान चौक सहरसा के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा जी ने बताया है की 18 सितम्बर, सोमवार को ही यंत्रो के भगवान श्री श्री 108 बाबा विश्वकर्मा पूजा मनाया जायेगा एवं हरितालिका तीज भी 18 सितम्बर 2023 सोमवार को ही मनाया जायेगा इस दिन सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव के साथ देवी माँ पार्वती की पूजा करती है, हरतालिका तीज के दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करके पूजा करती हैं।
हरितालिका तीज के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है,व्रत रखने वाली स्त्रियां सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पूजा के लिए भगवान शिव, देवी पार्वती और गणेश जी की मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है, फिर एक सुंदर सा मंडप बनाकर उसे खूब सजाया जाता है, मंडप के चारों ओर केले के पत्ते बांधते हैं, फिर उस मंडप में तीनों प्रतिमाओं को रख दिया जाता है, इसके बाद भगवान को तिलक लगाकर दूर्वा अर्पित करना चाहिए, शिव जी को फल, मिठाई, फूल, बेलपत्र चढ़ाएं, देवी मां को श्रृंगार की सारी वस्तुएं, फल और फूल अर्पित करें,साथ ही गणेश जी को भी भोग लगाएं, तीनों देवी देवताओं को वस्त्र भी चढ़ाएं,अब हरितालिका तीज की व्रत कथा पढ़ें या सुनें,अंत में गणेश जी और शिव जी की आरती करें।
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*चतुर्थी चंद्र विशेष*:-
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रहमान चौक सहरसा निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा जी के अनुसार, जिस समय गणेश चतुर्थी (भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि) मनाई जाती है,इस त्योहार पर चंद्र देव की पूजा अर्चना की जाती है क्योंकि कहते है कि जो व्यक्ति इस दिन शाम के समय भगवान गणेश के साथ-साथ चंद्र देव की पूजा करते हैं वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाते हैं।
चौरचन की महत्वता
मिथिला मे ज्यादा है जहां पर प्रकृति से जुड़े हुए काफी सारे त्यौहार मनाए जाते हैं; जैसे कि सूर्य देव की आराधना करने के लिए छठ पर्व मनाए जाते हैं तो इसी तरह चंद्र देव की आराधना करने के लिए चौरचन का त्योहार मनाया जाता है। इस त्यौहार की महत्वता इसीलिए है क्योंकि कहते हैं कि चंद्र देव की पूजा करने से व्यक्ति झूठे कलंक से बच जाता है। कहते हैं कि इस दिन यदि चंद्र देव की पूजा अर्चना की जाए तो चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं,इस दिन सुबहसे लेकर शाम तक व्रत रखे जाते हैं।महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती हैं,शाम तक व्रत रखने के बाद, शाम के समय घर के आंगन को साफ किया जाता है।
इसके बाद कच्चे चावल को पीसकर रंगोली तैयार की जाती है और इस रंगोली से आंगन को सजाया जाता है।
इसके बाद केले के पत्ते की मदद से गोलाकार चांद बनाया जाता है।
इस त्योहार पर तरह-तरह के मीठे पकवान,खीर मिठाई और फल आदि रखे जाते हैं,इस त्यौहार में दही का काफी ज्यादा महत्व है। पूजा में दही का शामिल करना बहुत जरूरी माना जाता है।
पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी में चंद्रमा की पूजा की जाती है।
पूजा करने के लिए फूलोंका इस्तेमाल किया जाता है।
इसके बाद पकवानों से भरी डाली और दही के बर्तन रखे जाते हैं।
इसके बाद एक-एक करके डाली, दही के बर्तन, केला खीर आदि को हाथों में उठा कर मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
इसके बाद मंत्र उच्चारण के साथ साथ चंद्रमा को यह सारे पकवान समर्पित किए जाते हैँ!
इस दिन दान दक्षिणा करना काफी शुभ माना जाता है, इसलिए अपनी इच्छा अनुसार गरीबों को दान करना चाहिए।
चौरचन की पूजा पूरी विधि से करनी चाहिए तभी फल की प्राप्ति होती है। विधिपूर्वक पूजा करने से ही भगवान गणेश के साथ-साथ चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
*इस मंत्र के जाप से पूरी होंगी मनोकामना* :-
सिंह प्रसेन मवधीत्सिंहो जाम्बवताहत:!
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक:!!
इस मंत्र का जाप कर प्रणाम करते हैं-
नम: शुभ्रांशवे तुभ्यं द्विजराजाय ते नम।
रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मीभ्रात्रे नमोऽस्तु ते।।
इसके उपरांत मुख्य व्रती दही को उठा ये मंत्र पढते हैं-
दिव्यशङ्ख तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्!
नमामि शशिनं भक्त्या शंभोर्मुकुट भूषणम्!!
फिर परिवार के सभी सदस्य हाथ में फल लेकर दर्शन कर उनसे निर्दोष व कलनमुक्त होने की कामना करते हैं.
प्रार्थना मंत्र-
मृगाङ्क रोहिणीनाथ शम्भो: शिरसि भूषण।
व्रतं संपूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे।।
रुपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे।
पुत्रोन्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।।