किशनगंज : नेत्रहीन होने के बावजूद स्पर्श बने आईएएस, अदम्य साहस का सहारा लेकर अपनी तलाश की पूरी।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, डीडीसी के पद पर कार्यरत आईएएस स्पर्श गुप्ता आंखों से नहीं, ”स्पर्श” के सहारे दुनिया को देखते हैं। विकलांगता जीवन के लिए बहुत कष्टकारी होता है। खासकर यदि दुनिया देखने और घुमने की बात हो और किसी के पास इनसब को देखने के लिये आंखे ही नहीं हो। नेत्र नहीं होने के सबकुछ जैसे अंधेरा सा लगता है। लेकिन कहा जाता है, मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। विकलांगता कभी भी लक्ष्य प्राप्ति की राह मे रोड़ा नहीं बन सकता है। दृढ़ निश्चयवादी मनुष्य कभी भी अंगहीन होने की वजह से अपने आप को पीछे नहीं हटाता बल्कि वह अपनी कमजोरी को अपना हथियार बनाकर आगे बढ़ता है और सफलता के शिखर को छूता है। आंखों में रोशनी नहीं थी, लेकिन उन्होंने अदम्य साहस का सहारा लेकर अपनी तलाश पूरी की। उनकी आंखों ने बचपन में कई सपने देखे थे। उन सपनों में सबसे बड़ा सपना आइएएस बनना था। स्पर्श ने 12वीं कक्षा में स्पेशल कैटेगरि में ऑल इंडिया टॉप किया था। उसके बाद स्पर्श ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से बीए एलएलबी ऑनर्स की उपाधि हासिल किया। उसी समय उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा देने का फैसला किया और उसकी तैयारी में जुट गए। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष के बल पर आइएएस अधिकारी बन कर इतिहास रच दिया। जब जन्म के कुछ दिनों के बाद ही आंखों की रोशनी जाती रही, तो मां ने हिम्मत बंधाते हुए आंखों को चूम कर ये दुआ की थी कि ईश्वर मेरे लाडले के जीवन को मोतियों से भर दे।
मां की दुआ सच साबित हुई और स्पर्श गुप्ता ने संघर्ष के बल पर नयी इतिहास लिख डाली। किशनगंज में डीडीसी के पद पर योगदान करने से पहले स्पर्श गुप्ता कहते हैं कि दृष्टि बाधित होना कार्य क्षमता को कतई प्रभावित नहीं करता है। मैं विगत डेढ़ वर्ष से दरभंगा में बतौर एसडीओ कार्यरत रहा हूं। मैंने प्रशासनिक कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया है। उनका बतौर डीडीसी किशनगंज में पदस्थापना के लिए नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। उन्होंने बताया कि एक सप्ताह के अंदर में किशनगंज में पदभार ग्रहण कर लेंगे। उन्होंने कहा कि डिसेबिलिटी कुछ नहीं होती। यह सिर्फ एक मेंटल बैरियर है, जो आप अपने दिमाग में बनाते हैं।
हमें उनसे बाहर निकलना होता है। गुप्ता 2019 बैच के आइएएस अधिकारी हैं। उनका जन्म कैटरैक्ट (एक तरह का मोतियाबंद) के साथ हुआ था और समय के साथ उनकी दोनों आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गयी। हालांकि रोशनी जाने से भी स्पर्श ने हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए आइएएस जैसी कठिन परीक्षा में सफलता हासिल की। उन्हें एक तेज-तर्रार व व्यवहार के धनी अधिकारी के रूप में जाना जाता है। वे प्रतिदिन नये सपने देखते हैं और उसे पूरा करने में जुट जाते हैं। आप यह कह सकते हैं कि अभी वो आंख भी सोई नहीं है। अभी वो ख्वाब भी जागा हुआ है।