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दरभंगा के‘लालकिले’में पांच हजार करोड़ का काला सच ! सबसे बड़ा जमीन घोटाला…..

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दरभंगा का रहनेवाला कोई शख्स जब-जब देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले को देखता है तो शायद उसकी आंखे नम हो जाती हैं,एक टिपिकल दरभंगिया ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि दिल्ली के लालकिले से कहीं ज्यादा खूबसूरत तो उसके अपने शहर दरभंगा का लालकिला है लेकिन दरभंगा के लालकिले और दिल्ली के लालकिले की किस्मत में जमीन-आसमान का फर्क है।दिल्ली के लालकिले पर तिरंगा लहराने के लिए देश के प्रधानमंत्री पहुंचते हैं और दरभंगा के लालकिले के पास अपनी गौरवशाली इतिहास पर रोने के सिवा कुछ अब तो कुछ रहा नहीं।खैर अभी मुद्दा कुछ और है,बांकी बातें फिर कभी।प्रधानमंत्री मोदी के कालेधन के खिलाफ चलाये गए नोटबंदी के अभियान के बाद क्या बेनामी संपत्ति के ऊपर भी कार्यवाई होगी ? क्या सुशाशन का नारा देनेवाले नीतीश कुमार बिहार के सबसे बड़े जमीन घोटाले के ऊपर कोई जांच बिठाएंगे, या कोई ठोस कार्यवाई करेगी राज्य सरकार ? चौंकिए मत l बिहार की धरती दरभंगा में अबतक का सबसे बड़ा जमीन घोटाला उजागर हुआ है।जी हाँ,एक ऐसा घोटाला जिसमे राज घराने से लेकर पुलिस के हाकिम तक और सर्वे ऑफिस से लेकर रजिस्ट्री ऑफिस के अधिकारी,स्थानीय नेता और नगरपालिका तक शामिल बताये जा रहे हैं।जब इसकी सुचना kewalsach को मिली तो हमने अपने खोजी पत्रकारों को भेजकर उक्त जमीन से सम्बंधित जानकारी जुटाई। kewal sach को प्राप्त दस्तावेज और जानकारी से बहुत चौंकानेवाले राज से पर्दा उठा है।हम आपको एक एक कर दरभंगा राज के हर राज से वाकिफ कराएँगे।आपको बता दें कि यह जमीन घोटाला इतना बड़ा है कि इसमें पड़ने से स्थानीय मीडियाकर्मी से लेकर स्थानीय नागरिक तक डरते हैं। कुछ लोगों ने इस मामले को उजागर करने का प्रयास किया तो स्थानीय पुलिस और भाड़े के गुंडों की मदद से उनको धमकाया गया।काफी जद्दोजहद के बाद सोनभद्र और सहारा अख़बार ने इस खबर को थोड़ी जगह दी लेकिन घोटाले में शामिल रसूखदार लोगों ने इसे बढ़ने से रोकने के लिए जमकर धन और बहुबल का प्रयोग किया।सूत्रों की माने तो दरभंगा राज किले का जमीन बिकाऊ नहीं है,अगर है भी तो सिर्फ गिने-चुने खेसरा को ही बेचा जा सकता है।फिर भी यहाँ की जमीन,जिसमे पक्का रास्ता,मंदिर के ट्रस्ट की जमीनें,महारानी के ट्रस्ट की जमीनें,तालाब,नाला,मुख्य-द्वार के आगे पीछे की जमीन इत्यादि को उन्हीं खेसरा नंबरों में बेच दिया गया।गौरतलब हो कि सर्वे ऑफिस में भी राजघराना के लोग ही काबिज हैं और उनके द्वारा अपने हिसाब से परिवर्तन कर जमीनों को बेच दिया जाता है।सर्वे ऑफिस में जो कर्मचारी ऑफिस को खोलता है वह वर्षों पहले रिटायर हो चुका है और सर्वे कार्यालय में अभी उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है।अभी कुछ दिनों पहले कार्यालय में आग भी लगी थी।स्थानीय लोगों के मुताबिक आग लगाकर जरुरी कागजातों को जलाने का प्रयास भी किया जा सकता है।सोनभद्र और सहारा समय में इससे सम्बंधित ख़बरों के प्रकाशित होने के बाद भी अभी तक उसपर कोई कार्यवाई नहीं हुई है।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यदि राज का जमीन बेचनेवालों के पास जमीन का स्वामित्व होता तो जिन लोगों ने राज की जमीन को खरीदकर घर बनाया है उनके नाम से दाखिल-ख़ारिज होता।जबकि यह सर्वविदित है कि बिकाऊ जमीन जो वर्षों पहले बिक चुका है को छोड़कर किसी जमीन का दाखिल-ख़ारिज नहीं हो रहा है।यही कारण है कि दरभंगा का रामबाग किला जो वार्ड स.14 के अंतर्गत आता है बिना नगर निगम के किसी अथॉरिटी से नक्शा पास कराये सारे नियमों को ताखपर रखकर कंक्रीट जंगल में बदल गया।पर सवाल उठता है की दरभंगा नगर निगम से यह सवाल करना चाहती है कि रामबाग में बिना दाखिल-ख़ारिज किये हुए जमीन पर,बिना नक्शा पास कराये 4 मंजिला इमारतों का निर्माण कैसे हो गया ? राजकिले के अन्दर निर्मित उन मकानों को नगर निगम के तरफ से कोई नक्शा प्राप्त नहीं है और कोई भी मकानमालिक नगरनिगम को होल्डिंग टैक्स नहीं देता क्यूंकि दस्तावेजों में रामबाग किले के अन्दर मकान मौजूद ही नहीं है।क्या दरभंगा नगार निगम के अन्दर बिना नगर निगम की जानकारी के बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गईं और उनपर अवैध निर्माण हुआ यह जांच का विषय है।साथ ही अगर जो जमीनें बेचीं गयीं वह बिकाऊ हैं तो किसी अधिकारी द्वारा किस आधार पर राज की जमीनों का दाखिल ख़ारिज रोका गया और वह बिना किसी अवरोध आजतक कैसे प्रभाव में है।ज्ञात हो कि रामबाग किला की दीवारों पर जिला प्रशासन का बोर्ड लगा है जिसमे चेतावनियाँ लिखी हुई हैं।मतदान के समय दीवार पर लगाए गए पोस्टर पर जुर्माना लगाना कहीं न कहीं दर्शाता है की यह जिला प्रशासन के अधीन है।अगर यह जिला प्रशासन के अधीन है तो फिर किला के मुख्य द्वार की गुम्बदों में दुकानें कैसे चल रही हैं ? बिहार के इस धरोहर को किराये पर लगाने का अधिकार किसने दिया है इसे किराये पर लगानेवालों को और किराये पर चलरहे एक प्रभावशाली व्यक्ति के जिम और अन्य दुकानों को बिना किसी आधार और दस्तावेज के अपनी दूकान चलाने की अनुमति किसने और क्यूँ दी यह जांच का विषय है।अब प्रश्न यह उठता है कि अगर इतने बड़े भू-खंड को बेचने का अधिकार अगर किसी को प्राप्त है तो इसके लिए सबसे पहले कानूनन जमीन विक्रेता को नियमों के तहत पुरे भू-खंड का प्लानिंग करके हर प्लाट के लिए पक्का रास्ता,पक्का नाला,स्ट्रीट लाइट,स्कूल के लिए,अस्पताल के लिए,प्ले ग्राउंड क्व लिए जगह छोड़कर जमीन का ले-आउट सरकार के पास जमा कराना चाहिए था जो नहीं किया गया।ऐसा इसलिए नहीं किया गया क्यूंकि ऐसा करने पर जमीन बेचनेवाले को जमीन पर अपना स्वामित्व सिद्ध करने के दस्तावेज बिहार सरकार के समक्ष उपस्थित करना पड़ता।कुछ इस तरीके से किया जा रहा है गोरखधंधा…..जब बात राजघराने और रसूखदार और बड़े पदों पर आसीन लोगों की हो तो फिर उनके लिए सारे नियम और कानून बदल दिए जाते हैं ?इतना ही नहीं अपने इस गोलमाल को छिपाने के लिए राजघराने ने एक ऐसा उपाय ढूंढा जिसके तहत जमीनों की रजिस्ट्री तो बदस्तूर जारी रही लेकिन दाखिल-ख़ारिज रुक गया।जब हमने इस बाबत रजिस्ट्री ऑफिस में बात किया तो वहां से बताया गया कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं।रजिस्ट्री ऑफिस के मुताबिक वो सिर्फ इतना देखते हैं की बेचने और खरीदने वाले उपस्थित हैं या नहीं और रजिस्ट्री कर दिया जाता है।दाखिल-ख़ारिज इसलिए रुकवाया गया क्यूंकि यदि दाखिल-ख़ारिज होता होता तो सारे खेसर नम्बर का सही रकबा सामने आ जाता।साथ ही यह भी पता चल जाता कि कौन सी जमीन बिकाऊ है और कौन सी जमीन गैर-मजरुआ है,कहाँ तालाब है और कौन सा जमीन ट्रस्ट के अंतर्गत आता है।लेकिन इस हजारों करोड़ के जमीन घोटाले में संलिप्त लोगों की बुद्धिमानी देखिये दस धुर जमीन बेचने के लिए भी सात से आठ खेसर नम्बर का प्रयोग किया जाता है ताकि कोई समझ न सके कि किस खेसर का जमीन बिक रहा है।सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि जिस खेसरा नम्बर में 5 धुर जमीन था उसके अन्दर 5 बीघा तक जमीन बेचा गया।इस बड़े खरीद फरोख्त में तकरीबन 5000 करोड़ रूपये के कालेधन का खेल हुआ है और यह बिहार के इतिहास में अबतक का सबसे बड़ा जमीन घोटाला है।गौरतलब है कि जिस दिन इन सभी बातों का खुलासा होगा और सरकार इसकी जांच करवाएगी उसके बाद घोटालेबाजों की करनी का खामियाजा जमीन खरीद कर उसपर घर बनाकर रहने वालों को भुगतना होगा।अब प्रश्न यह उठता है कि जांच के बाद अगर दाखिल-ख़ारिज का आदेश आता है और तब अगर यह पाया जाता है की जमीन बिकाऊ नहीं था तो क्या राज-घराना जमीन खरीदनेवालों को वो सारे पैसे लौटाएगा ?अगर लौटाएगा भी तो कितना क्यूंकि हम सभी जानते हैं कि जमीन के खरीद फरोख्त में किस तरह से कालेधन का प्रयोग होता है।यह घोर आश्चर्य की बात है कि सम्पूर्ण दरभंगा प्रशासन,नेतागण एवं यहाँ रह रहे निवासी उक्त बातों पर चर्चा भी नहीं करते।इन सभी लोगों ने इस घोटाले को दबाकर दरभंगा में एक ऐसे स्लम का निर्माण कर दिया है जो राजनैतिक दृष्टिकोण से तो लोगों को दिखाई देता है क्यूंकि इस कॉलोनी में हजारों की संख्या में मतदाता हैं जो बिना किसी सुविधा के रह रहे हैं,लेकिन भौगोलिक दृष्टिकोण से सरकारी दस्तावेजों में यह कॉलोनी है ही नहीं।इस विषय पर चर्चा और जांच करने के बजाय नालों को भरकर जमीन बनाकर बेचने का काम कई दिग्गज कर रहे हैं।ऐसा प्रतीत होता है की राज किला दरभंगा शहर का हिस्सा नहीं है बल्कि किसी टापू पर बसा हुआ है जहाँ प्रशासन,पुलिस और नेतागण किसी की पहुँच नहीं हो पा रही है,या इस पर बिहार सरकार और केंद्र-सरकार का कोई नियम लागू नहीं होता है।अगर ऐसा ही है तब तो फिर जो जैसे चल रहा है वह ठीक है लेकिन अगर दरभंगा राज सरकार के अधीन है तो इस विषय की गहराई से जांच होनी चाहिए जिससे कई बातों का खुलासा होगा और कई सफेदपोश बेनकाब होंगे।एक बात जो सपष्ट देखने को मिलता है वो यह कि देखते ही देखते ट्रस्ट का फिल्ड जो बच्चों के खेल-कूद के लिए उपयोग में था एक सोची समझी साज़िश के तहत धीरे-धीरे गंदे पानी के गड्ढे में बदल गया।कारण यह है कि सरकारी नाले के निर्माण को अधूरा छोड़ दिया गया लेकिन ठीकेदार को पूरे पैसे मिले। फील्ड की हालत ऐसी है की आस-पास के इलाके में महामारी फैलने की आशंका है।हम सभी जानते हैं की दरभंगा भूकंप प्रभावित क्षेत्र है।ऐसे में बिना नगर निगम से नक्शा पास कराये इतने बड़े आवासीय कॉलोनी का निर्माण दुर्घटना को बुलावा देता है।तंग गलियां और बिना भूकंप मानकों के बने हुए मकानों की सुरक्षा भगवान् भरोसे है।इस 5000 करोड़ के जमीन घोटाले पर सभी मौन हैं क्यूंकि राजघराने के लोग स्थानीय अपराधियों को बुलाकर यहाँ रहनेवाले लोगों को डराने धमकाने का काम करते हैं और उल्टा कई प्रकार के पुलिस केस में फंसा देते हैं या फंसाने की धमकी देते हैं।पुलिस और स्थानीय गुंडों के डर से यहाँ रहनेवाले लोगों ने अपनी जुबान पर ताला लगा लिया है।यह पूरी कहानी किसी फिल्म से प्रेरित लगती है लेकिन सच्चाई यह है कि यह काला सच हमारे बिहार के दरभंगा जिले का है जिसके किले का अपना स्वर्णिम इतिहास है।आज उसी स्वर्णिम इतिहास का काला सच जनता के सामने लाने की जरुरत है और उसकी सघन जांच करवाने का समय है।
इस लेख के माध्यम से केवल सच दरभंगा के स्थानीय प्रशासन,नेता,पुलिस अधिकारी,मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्र सरकार से यह मांग करती है कि राज-घराने के इस काले सच की जांच हो और दोषियों पर उचित कार्रवाई की जाए……………lll

रिपोर्ट:-धर्मेन्द्र सिंह

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