पवन सिंह के कलम से …………………………….
भारत में पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है । साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या का पलायन भी शहरों एवं बड़े-बड़े नगरों की ओर हो रहा है । परिणामस्वरूप शहरों में बढती आबादी अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है, जिनका समाधान किया जाना अति आवश्यक है,नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमे घृणा के दृष्टी से याद करेगी।”शहरीकरण” के नाम पर आज नगरवासी गीनती के रह गय पेडो को भी काटते जा रहे हैं और कंक्रिट के जंगल को अपनाते जा रहे हैं।आज दुनिया के बड़े बड़े महानगर जैसे बीजींग,लाँस एन्जिल्स,मंगोलिया के उलानबटोर,इंगलेंड ,उक्रेंन भारत के दिल्ली उत्तर प्रदेश के कानपुर आदी शहरो का हाल किसी से छीपा हुआ नहीं हैं।क्या हम भारतिय इस बार भी समस्या उत्पन होने के बाद ही इसके लिय ऊपाय करेंगे,क्या हमसभी की यह नैतीक ज़िम्मेदारी नहीं कि अपने घरो/दुकानो के आगे पिछे छेत्रफल के हीसाब से 2/4 पेड़ लगाय ताकी आने वाली पिढ़ी को बीजींग जैसे शहरवासियो के तरह घरो में आँकसीजन यंत्र लगाकार आँकसीजन न प्राप्त करना पडे।“शहरीकरण”के नाम पर कृषी भुमी पर इसतरह से मकान दुकान बनाय जा रहे हैं जैसे मानो भारत का क्षेत्रफल रोज बढ़ रहा हो,एक सर्वे के मुताबिक 2030 तक बढती आबादी के लिय 5 करोड घरो की आवाश्यकता होगी ज़रा सोचिये कितनी कृषी भुमी कम होगी।अगर जल्द ही इसे नियन्त्रीत न किया गया तो बढती जनसंख्या का पेट भरने के लिय बड़े पैमाने पर अन्न का आयात करना पड़ेगा।लेकिन अगर हम लोग चाहे तो इस समस्या का समाधान आपसी सहयोग से कर सकते हैं मित्रो अब समय आ गया हैं कि छोटे/बड़े शहरो में हम भारतिय 10/15 लोगो का समुह बनाय एवं बहूमंजील मंजील इमारत का ही निर्माण करे एवं Ground floor पर Parking एवं 4/5 दुकाने हो,समुह में घर बनाने से लागत खर्च में भी कमि आयगी।सरकार भी हर शहर में बिस्कोंमान भवन की तरह एक भवन अवश्य बनवाय और हर सरकारी कर्यालय का मुख्यालय इसी भवन में बनवाय ताकी सरकारी खर्चे में भी कमि आये एवं इसी तर्ज पर शहर अनुमंडल एवं गावो के Bank आदी भी एक ही Building में हो ताकी कम पुलिस बल द्वारा सभी को एक समान सुरक्षा प्रदान किया जा सके।आज शहरी छेत्र में जाम की समस्या आम बात हो गई हैं,इसलिय अब शहरी/ग्रामिण एवं National Highway के किनारे जितने भी मकान/दुकान बने वो भी बहुमंजील ही बने और उसमे भी Ground floor में Parking की व्यवस्था अनिवार्य कर दिया जाना चाहीये।इसी तरह जाम वाले छेत्रो को भी चिन्हित कर ऐसा करने के लिय प्रेरित किया जाय एवं ऐसे लोगो को 6/8% पर लोंन दिया जाय तथा छतो को भी बेचने का अधिकार लोगो को दिया जाय एवं छेत्रफल के अनुरूप कितने पेड़ उस भुमी पर लगेंगे सरकार ये भी निर्धारित करे ताकी हरे भरे शहर का निर्माण हो अगर हो सके तो इस बिषय पर जल्द ही एक कानुन बने ताकी तेजी से घटती कृषी भुमी एवं वन का संरक्षन किया जा सके।“शहरीकरण” के नाम पर भूगर्भिक जल का दोहन इसतरह से किया जा रहा जैसे मानो निचे गंगा नदी बह रही हैं जो कभी सुखेगी ही नहीं ।आज नगर हो या ग्राम सभी ज़गह भूगर्भिक जल का स्तर धिरे धिरे निचे जा रहा हैं गर्मी के दिनो में तो कई शहरो/ग्रामिण इलाके में अभी से ही चापाकल और मोटर पानी नहीं उठाते हैं ज़िसका मुख्य कारण वर्षा की कमि कंकृट का जंगल ,पेडो की कमि हैं ,एवं शहरो में हर ज़गह इस तरह से पक्किकरण हो गया हैं की अगर वर्षा भी हो तो एक बुन्द पानी धरती के निचे न ज़ाय सिधे नालो से शहर के बाहर या महिनो तक शहरो में ज़लजमाव !अगर हर व्यक्ती अपने घरो में 5/5 एवं 20 फीट गहरी “”शोखता”” का निर्माण कर ले एवं अपने घर के नाले को उस “”शोखता”” से जोडते हूए शहर के मुख्य नाला से जोड दे एवं मुख्य नाला में भी सरकार हर 100 फिट पर एक शोखता के निर्माण की परीपाटी सुरू कर दे तो इस समस्या का स्थायी हल निकाला जा सकता हैं एवं गीरते जल स्तर को नियन्त्रीत किया जा सकता हैं !एक सर्वे के मुताबिक 113 शहरों द्वारा गंगा और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में हर रोज डेढ़ अरब लीटर अपशिष्ट गंदा पानी छोड़ा जाता है।ऐसे में बेतरतीब ढंगी शहरों का यह देश किसी भी ऐसी महामारी के चपेट में आ सकता है,जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार होंगे।हम उस स्थिति में कभी नहीं आ सकेंगे जब शहरों द्वारा पैदा किये गये अरबों टन कचरे का उपचार करके उसे ठिकाने लगा सकें। यह कचरा पानी,जमीन, पेड़ और इंसानी स्वास्थ्य,सबको बीमार बना देगा।मेरा दावा हैं कि अत्यधिक पेड़ लगा कर, शुव्यवस्थित नगरो को बसा कर,एवं तेजी से घटती कृषी भुमी को बचाकर ही हम विकास का मार्ग प्रसस्त कर सकते हैं ! एक बात याद रखने योग्य हैं कि भारत सरकार ने दो बार प्रमाणु परिक्षण किय और विश्व समुदाय ने दोनो बार आर्थीक प्रतीबंध लगाय पर भारतियो पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा उल्टा विश्व समुदाय पर ही इसका प्रभाव ज्यादा दिखा वर्तमान में भी नोटबन्दी भारत के कृषी अधारित व्यवस्था होने के कारण ही सफल हो सका।लेकिन दूख इस बात से ज्यादा हैं कि हमारी सबसे बडी शक्ति कृषी ज़िसे हम धिरे धिरे खोते जा रहे हैं और आर्थिक सम्राज्यवाद का शिकार होते जा रहे हैं जबकी धरती के सभी इंसान यह जानते हैं कि खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना हैं और जब प्रकृती न्याय करती हैं तो कोई भेदभाव नहीं करती हैं सबको बराबर सबक देती हैं इसलिय मानव सावधान ….
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पवन कुमार
बेगुसराय ,बिहार
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