*पक्ष और विपक्ष के विरोधाभास में “समान नागरिक संहिता” लागू होगी ?*
जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::देखा जाय तो, दुनियाँ के अधिकांश देशों में नागरिक कानून सबके लिए समान है। भारत में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग “समान नागरिकता संहिता” का पुरजोड़ विरोध करते है। इससे बिहार की वर्तमान सरकार भी अछूता नहीं है। लेकिन किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए कानून, धर्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए। यदि देश और राज्य धर्मनिरपेक्ष है, तो कानून धर्म पर आधारित कैसे हो सकता है?
“समान नागरिकता संहिता” लागू हो जाने पर विशेष रूप से अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं की स्थिति में व्यापक सुधार आयेगा। “समान नागरिकता संहिता” बन जाने के बाद उनके लिए अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार जताने और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान नियम लागू हो सकेगा।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय “समान नागरिक संहिता” को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था। “समान नागरिक संहिता” को लेकर देश में समय-समय पर बहस होते रही है और लोग तरह-तरह के अपने विचार रखते रहे हैं। कोई इसे एक खास धर्म के खिलाफ बताते है, तो कोई इसे देश हित में बताते है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में लागू नहीं करने की बात कहते है। उम्मीद जतायी जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा “समान नागरिक संहिता कानून” बना सकती है। ऐसे भी “समान नागरिक संहिता” भाजपा के एजेंडे में जनसंघ काल से ही रहा है और पार्टी तमाम अवसरों पर इसे लागू करने की प्रतिबद्धता भी जताती रही है।
भारत में “समान नागरिकता संहिता” लागू करने से संबंधित कुछ राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्य न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में समिति बनी है, उसके समक्ष विभिन्न धर्मों के लोग अपने-अपने विचार रख रहे है। केन्द्र सरकार हर प्रकार की लोकतांत्रिक चर्चाओं के पूरा होने के बाद ही देश में “समान नागरिक संहिता” लाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत में “समान नागरिक संहिता” कानून लाने की दिन प्रति दिन बढ़ती मांग के बीच राज्य सभा में इस संबंध में एक निजी विधेयक पेश किया गया था।
वैसे भी देखा जाय तो, भारत में आपराधिक कानून और उस पर सजा का प्रावधान सभी धर्मों के अनुयायियों पर समान रूप से लागू होता है, यानि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में सभी धर्म के लोगों के लिए सजा का कानून समान है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि “फैमली लॉ” में समानता क्यों नहीं होनी चाहिए?
भारतीय संविधान में “समान नागरिक संहिता” का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद -44 में है। इसमें नीति निर्देश दिया गया है कि “समान नागरिक कानून” लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। डॉ भीम राव अंबेडकर भी इस संहिता के पक्षधर थे।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि “समान नागरिक संहिता” कानून का हम विरोध करेंगे, लेकिन सड़क पर नहीं उतरेंगे। जबकि सभी दलों को समान नागरिक सहिता लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र और मानवता के लिए अच्छा होगा। क्योंकि अगर कोई पुरुष किसी महिला से शादी करता है तो नैसर्गिक है। लेकिन कोई इससे ज्यादा शादी करता है, तो अप्राकृतिक होगा।
वहीं केरल के राज्यपाल ने सामान नागरिक संहिता लाने के विचार का समर्थन करते हुए कहा था कि जिसने भी संविधान की शपथ ली है वह इसका कभी विरोध नहीं करेगा। जबकि विपक्षी पार्टियों के सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान के विरुद्ध बताते हुए कहा है कि इससे देश की विविधता की संस्कृति को नुकसान पहुँचेगा। देश के सामाजिक ताने बाने को क्षति पहुंचने की आशंका है।
अब समय आ गया है कि समाज को धार्मिक संकीर्णता छोड़कर “समान नागरिक संहिता” की बात करनी चाहिए। अच्छी बात है कि विधि आयोग ने “समान नागरिक संहिता” निर्माण के लिए आम लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से सुझाव माँगा है। लोगों को और संगठनों को निश्चित रुप से अपनी बात रखनी चाहिए ताकि “समान नागरिक संहिता” निर्माण की राह प्रशस्त हो सके। “समान नागरिक संहिता” लागू होने पर ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यक देश के मुख्य धारा में आ जायेंगे।
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