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पटना : पत्रकारिता झुक कर नहीं, डंटकर किया जाता है:-ब्रजेश

21वीं सदी में पत्रकारिता भी कटघरे में खड़ी है और इसके लिए सरकार से अधिक स्वयं पत्रकार और संगठनात्मक सोंच जिम्मेवार हैं।पटना/त्रिलोकीनाथ प्रसाद, पत्रकारिता झुक कर नहीं, डंटकर किया जाता है और इन्हीं कारणों की वजह से लोकतंत्र के सभी स्तंभ चौथा पिलर की गहराई से चिंतन-मनन करने लगता है।21वीं सदी में पत्रकारिता भी कटघरे में खड़ी है और इसके लिए सरकार से अधिक स्वयं पत्रकार और संगठनात्मक सोंच जिम्मेवार हैं।समय और सत्ता के सिर्फ नकारात्मक पक्ष ही नहीं बल्कि सरकार की नीतियों पर भी दृष्टिगोचर होना चाहिए क्योंकि आवाम आपसे सिर्फ निंदा के साथ सकारात्मक दिशा में उठाये जा रहे कदम को भी गंभीरता से लेती है।कोरोना वायरस के संक्रमण से जहां अन्य विकसित देश लाशों की ढेर देखकर स्थिति के अवलोकन के लिए भारत की एकता एवम सयम के साथ राष्ट्रवाद के लिए समर्पण मौत को भी मात दे रही है।एक बड़ी आबादी के साथ विभिन्न धर्म के मायाजाल के बाद भी प्रधानसेवक के प्रति आस्था और निष्ठा को झकझोर नहीं सकता यह दुनिया के बीच भारतीय ने सिद्ध किया है।विपक्ष भी दबे जुबान से इस महामारी में सरकार के साथ मुस्तैद नजर आ रही है जिसमे मीडिया की भूमिका को एक सिरे से खारिज करने मुनासिब नहीं होगा।2020 के प्रथम पखवारे में ही कोरोना के आक्रमण ने देश को जोर का झटका बुलेट ट्रेन की स्पीड से देने का प्रयत्न तो किया पर हिंदुस्तानी रोड ब्रोकर के ठोकर के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा।मोदी सरकार की कूटनीति एवम रणनीति की वजह से भी देश का अवलौकिक इतिहास की चर्चा WHO भी करने लगा।भले ही मंदिर के फाटक बंद हो गए और शराब का ठेका को बल मिला परंतु सनातन धर्म की सोच एवं पद्धति और ब्राह्मणवाद के दूरदर्शी राष्ट्रवाद ने भारत को एक बड़े हादसे से अब तक बचाने में पुराने रीति रिवाज ने आर्थिक वातावरण को भी रसातल में जाने से बचाया है।आज मीडिया भारत के उस गौरवशाली इतिहास एवं उसके आर्थिक ढांचा पर फोकस करने में शायद चूक कर रही है अन्यथा 22 मार्च से लगातार 17 मई 2020 तक लॉक डाउन (नजरबंद) थ्री वाली स्थिति में रहने के बाद भी हमारे आत्म-विश्वास में कहीं कमी नहीं आई है।रविश कुमार और उनके विचार की तरह अपनी मीडिया को चलाने वाले पत्रकारों को यह तो सोचना ही होगा कि 1000 वर्ष की तानाशाही सिस्टम के विरुद्ध लड़ने वाले भारतीय को भले ही इंडिया/भारत/हिंदुस्तान/आर्यावर्त के वासी के रूप में दुनिया में हो पर उसके धैर्य, साहस और विपरीत परिस्थिति में भी दुश्मनों पुर्तगाल/डच/मुगल/अंग्रेज से दो दो हाथ करके भी अपने अदम्य शक्ति का परिचय देने वाला प्रत्येक भारतीय 2020 के वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से डरने वाला नहीं है के वास्तविक वजूद को फोकस करना चाहिए।रविश कुमार यह सोच भी नहीं सकते कि 40 फीसदी मोदी का विरोध करने वाला भारत कोरोना आतंक के समय एक कैसे ? रविश कुमार एवं उनके जैसे मुस्तण्ड पत्रकार बिहारी होने के बाद भारत की अर्थ व्यवस्था को कैसे भूल गए ? रविश कुमार जैसे पत्रकारों का कुनबा कोरोना की महामारी में एक दिन लॉक डाउन में शराब की दुकान खोलने की अनुमति से हजारों हजार करोड़ की आमदनी की क्षमता पेट की आग को बुझाने की मंथन करने वाला भारत ने कैसे कर ली ? भले ही आज चंद पत्रकार सत्ता में हस्तक्षेप करें लेकिन भारत के पापड़, आचार, तिलौरी-बड़ी के साथ खटाई विभिन्न वस्तुओं का सुखौता को कैसे भूल गयी कि भात पानी नमक और आचार और प्याज के सामने आधुनिक जमाने का बर्गर-पिजा बहुत दिनों तक टिक नहीं सकता।पत्रकारिता करने वाले पत्रकार जगत के भीष्म पितामह प्रभु नारद से बड़ा जुगाड़ी लाल दूसरा आज भी मौजूद है कि बात से कैसे इंकार किया जा सकता है।गौर करें तो देव-दानव के बीच खबरों के संकलन के दरम्यान भी पत्रकार नारद नारायण-नारायण करते थे लेकिन उस वक्त के दानव भी नारद पर चाटुकारिता का आरोप नहीं लगाते थे क्योंकि दानवों को भी भरोसा था की नारद झूठी खबरों को उनके बीच नहीं परोसते परंतु 21वीं सदी में पत्रकार ईमानदार और चापलूस नहीं हो यह जांच का विषय बन चुका है।पूरी दुनिया लॉक डाउन के लिए भारत की सराहना करती नहीं थक रही है लेकिन भारत के चंद पत्रकार का वश चले तो और सम्मान वापसी का दावा खेलने से गुरेज नहीं करेंगे।दुर्भाग्यवश सम्मान वापसी गैंग भी कोरोना की राजनीति में अपनी मौत को दावत नहीं देना चाहता।इसी परेशानी से कई पत्रकारों की रात की नींद गायब है और श्रीमान बड़े भाई रविश कुमार ट्रेन से कुचलकर मरने वाले मजदूर के लिए भी भाई नरेंद्र मोदी को जिम्मेवार ठहरा देंगे।पत्रकारिता को पक्ष और विपक्ष के कुचक्र से बचना चाहिए अन्यथा नीतीश कुमार का DNA और श्याम रजक का नाखून का सैम्पल का आजतक जांच नहीं हुआ क्योंकि मोदी जानते थे कि DNA कभी भी NDA बनकर सत्ता हासिल किया जा सकता है और ऐसा ही हुआ भी।पत्रकारिता और पत्रकार को कोरेनटाईंन वाली जगहों पर नहीं जाने देना सुरक्षा का मामला हो सकता है, अब सुरक्षा किन किन मुद्दे की है यह तो घर बैठकर सरकारी विभीषणों से भी सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।एक बात तो साफ हो चुका है कि भारत की मीडिया सोसल होने की वजह से बदनाम होने के साथ बदत्तर भी होती जा रही है।आज के लिए ब्रजेश मिश्र की तरफ से इतना ही।

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