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CUJ : अशुद्ध जल का झंझट होगा समाप्त, वाटर सैंपलिंग कर तैयार होगा डाटाबेस…

सीयूजे (Central university of Jharkhand) के विज्ञानी डा भास्कर ने बताया कि उपकरणों की मदद से अब वाटर सैंपलिंग आसान होगी 


कहां कितने घातक तत्व पानी में घुले हैं, उसकी भी जानकारी अब आमजनों को मिल पाएगी 

रांची : सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ झारखंड रांची (Central university of Jharkhand Ranchi) और आइआइटी आइएसएम धनबाद (IIT-ISM Dhanbad) के सहयोग से जल प्रबंधन की दिशा में कार्य किया जा रहा है। इस कार्य में न सिर्फ जल प्रबंधन के गुर बताए जा रहे हैं बल्कि यह भी तय किया जा रहा है कि जल में प्रदूषित तत्व की मात्रा कितनी है। 70 लाख की लागत से चार उपकरण सीयूजे मंगाए गए हैं। जहां राज्य भर से वाटर सैंपल की जांच अब संभव हो पाएगी। इसके लिए तय मानक के अनुसार कार्य भी शुरु कर दिया गया है। हालांकि चार उपकरणों में आटोमेटेड वेदर स्टेशन का निर्माण कार्य बाकी है। जबकि एटोमिक एबजार्पशन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, माइक्रोस्कोप और पाली हाउस मिक्स्ड चैंबर की खरीदारी कर ली गई है। सूत्रों की माने तो आटोमेटेड वेदर स्टेशन का निर्माण कार्य भी पूरा कर लिया गया है।

दरअसल, सीयूजे में शोधार्थी पिछले कई माह से जल प्रबंधन व जल संरक्षण की दिशा में कार्यरत हैं और इसे लेकर खुद कुलपति प्रो क्षिति भूषण दास ने भी गंभीरता दिखाई है। गत दिनों यहां झारखंड व ओड़िसा के 30 प्रतिभागियों को जल प्रबंधन व संरक्षण की ट्रेनिंग दी गई है। सीयूजे के विज्ञानी डा भास्कर ने बताया कि उपकरणों की मदद से अब वाटर सैंपलिंग जहां आसान होगी वहीं कहां कितने घातक तत्व पानी में घुले हैं, उसकी भी जानकारी अब आमजनों को मिल पाएगी। 

जल जनित बीमारियों से मिलेगी राहत : 
आइआइटी-आइएसएम धनबाद और सीयूजे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के सहयोग से शोध कार्य चल रहा है। जल जनित बीमारियों से अब ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को राहत मिलेगी। खासकर राज्य के वैसे हिस्सों में जहां पेयजल की मारामारी रहती है और जल में घुले घातक तत्व को पीने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। डा भास्कर ने बताया कि अब तक ऐसी तकनीक व उपकरण राज्य के एकाध संस्थानों तक ही सीमित है। सीयूजे में इन तकनीक व उपकरणों से कई कार्य किए जा रहे हैं। पहले चरण में सिर्फ वाटर सैंपलिंग का कार्य किया जाएगा। इसके बाद एक डाटा तैयार कर यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि किस एरिया में जल में कितने घातक तत्व मिले हैं। इसके बाद इस डाटाबेस के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर शोध कार्य भी किया जाएगा।

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