पार्ट १५: कहाँ गए वो दिन?

बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से
चंपारण का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अव्वल स्थान है। देश के अंदर गाँधी का पहला प्रयोग यहीं हुआ था। मेरा पदस्थापन भी नब्बे के दशक के शुरुआत में यहाँ हुआ था। अपहरण का बोलबाला था। अगर सभी अपहरण की घटनाओं को ईमानदारी से दर्ज़ किया जाता तो एक अपहरण प्रतिदिन होता। इस परिस्थिति में, पुलिस अधीक्षक की मनोदशा का अनुमान लगाया जा सकता है।सरकार में ऐसे भी तबादले का सिलसिला तो चलता ही रहता है, सो मेरे साथ ही नए ज़िला पदाधिकारी की भी नियुक्ति हुई थी। हम साथ ही आए थे।मिल कर हमने निर्णय लिया की पाँच दिन हम अलग अलग दौरा करेंगे, समस्याओं का विश्लेषण करेंगे और तब एक समेकित निष्कर्ष निकालेंगे जिससे कार्यनीति निर्धारित होगी।
निर्णय के अनुसार, हम सुदूर फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में मिले। लम्बी वार्ता हुई और हम एकमत हुए कि ज़िले की जितनी भी समस्याएँ हैं, वह काले धन से ही उत्त्पन्न हुई। गन्ने का चालान का धँधा, क्रशर और चिप्स के माइनिंग का धँधा, बालू का धँधा, जंगल की कटाई और स्मगलिंग का धँधा।
निर्णय के अनुसार, सुबह होते ही, स्थानीय अंचल अधिकारी को बुलाया गया और अमीनों की टोली बनाकर बड़े ज़मीन मालिकों के ज़मीन की नापी हमने अपनी निगरानी में शुरू कराई। नक़्शे पर जो रकबा लिखा था, उससे अधिक ज़मीन हर प्लॉट में था। सनसनी फ़ैल गई। संदेश फ़ैल गया कि दोनों SP और DM एक ही सोच के हैं और काले धन पर उनका चोट ज़बरदस्त पड़ेगा। सभी गलत धँधों पर प्रहार पड़ने लगा। आम लोगों में स्पष्ट रूप से खुशी दिख रही थी तो ख़ास लोगों में मायूसी का आलम था। उनकी भावना पटना में राजनीति के शीर्ष तक पहुँची। DM साहब भी अड़े रहे।मेरा समय से पहले प्रमोशन कर, वहाँ से हटाया गया। DM साहब भी कुछ दिनों के बाद बदल दिए गए।नए ज़िले में उनकी हत्या हुई। मैं सरकारी भाषा में, प्रमोट कर शंट किया गया, जिसका उपयोग मैंने अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में किया। मेरे अंदर का शिक्षक इसी काल में जागा, जिसकी परिणति सुपर 30 में आने वाले वर्षों में हुई। इस सुपरिणाम के लिए मैं उस समय के शीर्षस्थ राजनीतिज्ञों का, जिन्होंने मुझे शंट करने का निर्णय लिया, सदा आभारी रहूँगा। हर परिस्थिति को अपने पक्ष में करने की क्षमता विकसित हुई। चंपारण केअपहरणकर्ताओं और उनके सफेदपोश संरक्षकों की आर्थिक रीढ़ प्रायः टूट गई।