श्रीनगर की साँझ, उम्मीद की रौशनी और एक जिलाधिकारी का वादा
आजादी के बाद दूसरी बार श्रीनगर पंचायत पहुंचे जिला अधिकारी, इस यात्रा को लोगों ने बताया इतिहास में होगा दर्ज

रवि रंजन मिश्र ठकराहा।गंडक की दोआब में बसा श्रीनगर पंचायत वर्षों से विकास की मुख्यधारा से कटकर समय के थपेड़े सहता रहा। पश्चिम चंपारण के ठकराहा प्रखंड का यह दुर्गम इलाका कभी मानचित्र पर भी स्याही से छूटा हुआ लगता था। सड़कों की कमी, शिक्षा की अनदेखी, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और बिजली जैसी बुनियादी सुविधा से कोसों दूर यह पंचायत अपने ही देश में एक भूला हुआ गांव बन चुका था। सरकारें आती गईं, घोषणाएं होती रहीं, लेकिन गांव की गलियों में न तो बिजली की चकाचौंध पहुंची, न ही योजनाओं की रोशनी। यह वो जगह थी, जहां आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी बिजली के पंखे के नीचे सोने का सपना बुजुर्गों की आंखों में धुंधला होता चला गया था।लेकिन 18 मई का दिन इतिहास में दर्ज हो गया, जब श्रीनगर पंचायत का आंगन जिला मुख्यालय की तरह चहक उठा। शनिवार को आयोजित ग्रामोदय विशेष विकास शिविर ने गांव को महज एक पंचायत नहीं, बल्कि एक परिवर्तनशील भूगोल में तब्दील कर दिया। दीप प्रज्वलन के साथ शुरू हुए इस शिविर में जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय, डीडीसी बेतिया, बगहा के एसपी और जिले के तमाम वरीय पदाधिकारी न सिर्फ मौजूद रहे, बल्कि वे लोगों के बीच उतरे, उनकी बातें सुनीं, समस्याएं समझीं और समाधान प्रस्तुत किया।शिविर में 25 से अधिक विभागों ने अपने-अपने स्टॉल लगाए। पशुपालन से लेकर स्वास्थ्य, मनरेगा से लेकर आधार केंद्र तक – सभी विभागों के कर्मी तत्पर दिखे। ऐसा दृश्य इससे पहले श्रीनगर की धरती ने नहीं देखा था। यह महज एक सरकारी उपस्थिति नहीं थी, यह प्रशासन की आत्मा का ग्रामीण जीवन से साक्षात्कार था।जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय ने 62 भूमिहीन परिवारों को बासगीत की पर्ची दी। दिव्यांगजन विभाग ने जो सहायताएं बांटीं – ट्राई साइकिल, व्हीलचेयर, मोटर चालित साइकिलें, श्रवण यंत्र, स्मार्ट स्टिक और चश्मे – वो किसी भी समाज की संवेदनशीलता का प्रमाण बन गईं। यह सिर्फ वितरण नहीं था, यह उन ज़िंदगियों में आत्मविश्वास का संचार था, जो अब तक समाज के हाशिए पर थे।डीएम ने खुलकर कहा कि 11 अप्रैल को उन्होंने बाइक से श्रीनगर का दौरा किया। स्कूलों में बच्चों की अनुपस्थिति और अभिभावकों की उदासीनता ने उन्हें विचलित किया। शिक्षा को लेकर जागरूकता की कमी साफ झलक रही थी। यह देखकर उन्होंने तय किया कि बदलाव अब कागज़ों से नहीं, ज़मीन से होगा।और बदलाव हुआ। एक महीने के भीतर DEO के नेतृत्व में नामांकन और स्कूल भेजने की प्रक्रिया तेज़ हुई। गांव के बच्चे फिर से किताबों की ओर लौटे। संपर्क पथ का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। निर्मल टोला से लेकर फोरलेन तक सड़क बनेगी, श्रीनगर यूएमएस विद्यालय से लेकर पक्की सड़क का निर्माण होगा – यह वादे नहीं, क्रियान्वयन की पगडंडियां हैं।शिविर समाप्त होने के बाद 90 वर्ष की वृद्धा दुखनी देवी आईं, जिनका न राशन मिल रहा था, न पेंशन। जिलाधिकारी ने तुरंत निर्देश दिया और उसी शाम उन्हें राशन भी मिला और पेंशन की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई। यह दृश्य किसी कविता जैसा था – जहां संवेदना, प्रशासन और सेवा का अद्भुत समागम हुआ।यह दौरा महज एक प्रशासनिक कार्य नहीं था। यह एक जिलाधिकारी का आत्मिक दायित्व था। दिनेश कुमार राय के लिए यह पंचायत सिर्फ एक भूगोल नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। इस शिविर में जब लोग उन्हें देखकर हाथ जोड़ रहे थे, ‘धन्यवाद बाबू साहेब’ कह रहे थे, तो वह श्रद्धा किसी डर से नहीं, प्रेम और भरोसे से उपजी थी।आज श्रीनगर पंचायत के हर वार्ड में बिजली के खंभे गड़े हुए दिखते हैं। वह सपना, जो दशकों से अधूरा था – अब हकीकत में बदल रहा है। जिन घरों में कभी चूल्हे की रोशनी में दिन ढलता था, वहां अब बल्ब की रौशनी में उम्मीदें पल रही हैं।शराबबंदी को लेकर जीविका दीदियों को प्रशिक्षित और जागरूक किया गया। महिलाओं की भागीदारी को प्रशासन ने प्राथमिकता दी। स्वास्थ्य सेवाएं वहां पहुंचीं, जहां अब तक सिर्फ अफवाहें और भरोसा पहुंचता था।लोग कह रहे हैं कि यह सब जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय के कारण ही संभव हो पाया है। प्रशासनिक सेवा का यह चेहरा दुर्लभ है – जहां संवेदना, समर्पण और संकल्प एक साथ कार्य करते हैं। उनका यह दौरा श्रीनगर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। क्योंकि यह न केवल योजनाओं का प्रसार था, यह उस चिरकालिक उपेक्षा को समाप्त करने का संकल्प था, जो वर्षों से श्रीनगर पर मंडरा रही थी।
यह यात्रा किसी फिल्मी दृश्य की तरह नहीं थी, यह एक सच्चाई है – एक जिलाधिकारी जब अपने क्षेत्र को अपना परिवार मानता है, तो ऐसे ही बदलाव आते हैं। श्रीनगर अब बदलाव की ओर है, और इस बदलाव के केंद्र में खड़े हैं – दिनेश कुमार राय।