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सहरसा : स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में जिले के सिमरी बख्तियारपुर निवासियों का रहा अहम योगदान।

सहरसा/धर्मेन्द्र सिंह, स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में जिले के सिमरी बख्तियारपुर निवासियों का अहम योगदान रहा है। लेकिन आज भी कई स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अंधेरे में हैं। इलाके के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्व.जिया लाल मंडल का नाम कौन नहीं जानता है। लेकिन सिमरी बख्तियारपुर में उनके नाम पर कोई स्मारक या संग्रहालय तक नही बन सका है। जिया मंडल आजाद भारत के सिमरी बख्तियारपुर के प्रथम विधायक एवं खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के दूसरे सांसद थे। बाबू जियालाल मंडल का जन्म यदुवंशी समाज में 05 मार्च 1915 को तत्कालीन मुंगेर (वर्तमान सहरसा) जिला के सिमरी बख्तियारपुर के रंगिनिया टोला मे हुआ था। उनके पिता गुदर मंडल भी स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी दूत हुआ करते थे। इनके पूर्वज इस इलाके के जमींदार थे। लेकिन अंग्रेजो से बगावत के कारण कुछ ज़मीन छिन गए थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनके घरों को आग के हवाले कर पूरे परिवार को जलाने का प्रयास अंग्रेजी हुकूमत ने किया था। सन 1942 के अंदोलन में जियालाल मंडल व उनके छोटे भाई अयोध्या मंडल को अंग्रेजों ने रेल पटरी उखाड़ने,थाना में तोड़फोड़ करने, आगजनी सहित विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। जियाबाबू का प्रारंभिक शिक्षा सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के एक मात्र मध्य विद्यालय सरडीहा से शुरू हुई थी। वे काफी मेधावी थे। जिसकी वजह से चौथी कक्षा पास करने के बाद पांचवीं कक्षा में उन्हें स्कॉलरशिप दिया गया था। वो सरडीहा से मिडिल कक्षा पास कर आगे की शिक्षा के लिए मुंगेर जिला मुख्यालय की ओर रुख कर गये थे। लेकिन सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में देशभक्ति से ओतप्रोत होकर कांग्रेस में शामिल होकर अंग्रेजों को देश से भगाने की आजादी के मुहिम में शामिल हो गए। 1934 मे बिहार भयंकर भूकंप तथा कोसी की त्रासदी से त्रस्त था। जिसमे जिया बाबू सच्चे कृष्णवंशी के तरह पीड़ित- असहायों की मदद किए। जिया बाबू में करुणा, दया इस प्रकार भड़े थे की सिर्फ 19 वर्ष के उम्र मे जिया बाबू देश के महान नेता महात्मा गांधी के नजर मे आ गए। आगे देश भक्ति की ओर रुख कर गए। जिया बाबू कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप मे 1939 एवं 1950 मे भारतीय किसान महासभा के सचिव थे। वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये थे। अंग्रेजों ने जिस तरह देश के सभी बड़े नेताओ को नजरबंद किया गया था, उसी तरह जिया बाबू को भी 1 साल जेल मे नजरबंद रखा गया। जब 1952 में स्वाधीन भारत मे पहली बार विधान सभा का चुनाव हुआ। उस वक्त सिमरी बख्तियारपुर सह चौथम विधानसभा का दो सदस्यीय सीट पर विधायक का चुनाव हुआ था। एक सीट सामान्य वर्ग का तथा दूसरा सीट हरिजन वर्ग के लिये आरक्षित था। सामान्य सीट पर कांग्रेस पार्टी ने जिया बाबू को तथा हरिजन सीट पर मिश्री मुसहर को उम्मीदवार बनाया था। सामान्य सीट पर जिया बाबू का मुकाबला अंग्रेजी शासक नियुक्त प्रतिनिधि सह तत्कालीन जमींदार चौधरी नजरुल हसन से हुआ था। जिया बाबू अंग्रेज प्रतिनिधि नजरूल हसन को बड़े अंतर से पराजित किया था। पांच साल विधायक रहने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें बिहार की राजनीति से प्रमोट कर केन्द्र की राजनीति में शामिल होने के लिए 1957 में खगड़िया लोकसभा क्षेत्र से सांसद का टिकट थमा दी। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार सुरेश मिश्र को देश में सबसे बड़े अंतर से पराजित कर दूसरे स्थान पर रहा था। पहले स्थान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम दर्ज हुआ था। उसके बाद 1962 के तीसरे आम चुनाव में पुनः वे विद्यानंद यादव को मात दे लगातार दूसरी बार सांसद बने। जिया बाबू पंडित जवाहर लाल नेहरू के बहुत करीबी हो गये थे। जब उन्होंने पहली बार सांसद बने तो सबसे अधिक मतों का रिकॉर्ड जवाहर लाल नेहरू के नाम दर्ज हुआ था। वो पार्लियामेंट में बोले थे हू इज जियालाल मंडल। जिसके बाद जिया बाबू ने अपनी उपस्थिति उनके सामने दर्ज करा विश्वस्त नेताओं में शामिल हो गए। जिया बाबू विधायक, सांसद कार्यकाल में क्षेत्र का बहुत विकास किये थे। जिस कारण वे बहुत लोकप्रिय थे। प्रखंड कार्यालय परिसर में लगा शिलापट पर अंकित स्वतंत्रता सेनानियों के नाम में पहला नाम जियालाल मंडल का है। लेकिन महान स्वतंत्रता सेनानी के जन्म व पुण्यतिथि को प्रशासन द्वारा अब तक उपेक्षित रखा गया है। जिसे अब तक याद तक नहीं किया जाता है। जो अति दुर्भाग्य है। आज भी रंगीनियां गांव स्थित उनके स्मारक मिट्टी में जमीनदोज है। एक अदद स्मारक की चाह आजादी के अमृत महोत्सव पर है।09 फरवरी 1973 को इस महान देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी सह राजनीतिज्ञ का सिर्फ 58 वर्ष की उम्र मे निधन हो गया था। वे अपने पीछे एक पुत्र पशुपति मंडल व दो पुत्री छोड़ चले गए। उनकी पत्नी मालती देवी का भी निधन 07 फरवरी 1997 को हो चुका है।उपरोक्त जानकारी स्वतंत्रता सेनानी स्व. जियालाल मंडल के पुत्र पशुपति मंडल के कथन पर आधारित है।

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