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अंबेडकर जयंती के पूर्व संध्या पर बिहार भाजपा के वरीय नेता बिहार सरकार के सहकारिता मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने बाबा साहब को याद करते हुए कहा।…

अनिकेत कुमार/कि डॉक्टर अंबेडकर एक प्रसिद्ध राजनीतिक नेता,दार्शनिक, लेखक,अर्थशास्त्री, न्याय विद, बहुभाषाविद, 3_3 विश्वविद्यालय के डिग्री धारी,धर्म-दर्शन के विद्वान ,समाज सुधारक, संविधान निर्माता,दलितों, पिछड़ों, वंचितों के मसीहा थे। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में तबके दलित,वर्तमान में अनुसूचित परिवार में हुआ था। इनकी जयंती भीम जयंती/ अंबेडकर जयंती/समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 14 अप्रैल को समानता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा 2015 में की थी। तब से इनकी जयंती समानता दिवस के रूप में मनाई जाती है। बाबा साहब का अनुयायी भारत सहित विश्व के 65 देशों में हैं। इनकी जयंती पर हर वर्ष करोड़ों लोग उनके जन्म स्थल भीम जन्मभूमि डॉक्टर अंबेडकर नगर महू जन्म भूमि में,बौद्ध धर्म दीक्षा स्थल दीक्षाभूमि,नागपुर में, शिक्षा की भूमि बिटेन लंदन में, उनका समाधि स्थल चैत्य भूमि मुंबई में और पांचवा दिल्ली में नेशनल मेमोरियल उनकी महापरिनिर्वाण भूमि पर 100 देशों के करोड़ों लोग दर्शन पूजन करने आते हैं। उक्त पांच पवित्र स्थलों का विकास मोदी सरकार ने कराया है। अंबेडकर जी के 5 तीर्थ स्थल श्रद्धालुओं की सुविधा से युक्त एवं दर्शनीय बन चुका है। अंतर्राष्ट्रीय अंबेडकर केंद्र की स्थापना 195 करोड़ की लागत से मोदी सरकार ने कराई है। 2015 से मोदी सरकार ने बाबा साहेब के संविधान निर्माण को याद रखने के लिए अंबेडकर जी के नाम पर संविधान दिवस मनाने का काम शुरू किया है। इनके पिता ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे।अनुसूचित जाति के होने के कारण छुआछूत, सामाजिक भेदभाव और सामाजिक और असमानता के शिकार ये बचपन में होते रहे। यही से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का, समाज में शिक्षा का अलख जगाने का काम शुरू किया। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था के कारण आज 133 सांसद एवं 500 से अधिक विधायक चुने जाते हैं। उन्होंने छुआछूत ,सामाजिक असमानता, वंचितों के अधिकार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका मानना था अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती। वे अनुसूचित ,पिछड़ों व दलितों के मसीहा थे। वे संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई जिसके चलते उन्हें संविधान का जनक भी कहा जाता है। मजदूर वर्ग ,महिलाओं, अनुसूचित व पिछड़ों के अधिकारों एवं समानता के लिए संघर्ष करते रहे। काबिलियत के दम पर वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। वे कहते थे कि हम वैसे धर्म को मानते हैं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता हो। उनका मानना था जीवन लंबा होने के बजाय महान होना चाहिए। अनुसूचित जाति के होने कारण उन्हें बचपन की पढ़ाई में काफी दिक्कतें आई थी। मुंबई विश्वविद्यालय ,अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय एवं लंदन विश्वविद्यालय से 3_3 डिग्री प्राप्त की थी। 1936 में लेबर पार्टी का गठन किया। अनुसूचित के अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए बहिष्कृत भारत ,मूकनायक ,जनता नाम से पाक्षिक सप्ताहिक पत्र निकाले। 14 अक्टूबर 1956 को वो अपने प्रमुख साथियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। हिंदू धर्म के तौर तरीकों से वे दुखी थे। मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न 1990 में दिया गया। ऐसे महापुरुष के श्री चरणों में मेरा कोटि-कोटि नमन।*

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