महागठबंधन बनते ही दिखती है एकता में दरार
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, ::लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को परास्त करने के लिए महागठबंधन में शामिल होने वाले दलों की बैठक 23 जून को पटना में हुई, जिसमें 15 राजनीतिक पार्टियाँ शामिल हुए। जबकि इस बैठक में 21 राजनीतिक पार्टियाँ को शामिल होने की संभावना थी। महागठबंधन में शामिल होने वालों में जदयू, राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, एनसीपी, झामुमो, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना(बाला साहेब ठाकरे गुट), समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी के कुल 27 नेता थे।
महागठबंधन की बैठक लगभग साढ़े तीन घंटे चली और मात्र तीन बिंदु पर ही सहमती बनी। वह बिंदु है भाजपा के खिलाफ एक साथ रहेंगे, 2024 लोकसभा चुनाव में साझा प्रत्याशी देंगे, और भाजपा के किसी भी एजेंडे का मिलकर विरोध करेंगे। बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बहुत अच्छे ढंग से विपक्षी दलों ने माना है कि मिलकर चलेंगे। यह देश हित में है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने कहा है कि बैठक में सबने तय किया है कि हमलोग एकजुट रहेंगे और मिलकर रहेंगे। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने कहा है कि विपक्ष का वोट बटने से भाजपा- आरएसएस की जीत हो जाती है।हमलोग ऐसा नहीं होने देंगे। हम सब एक होकर लड़ेंगे और भाजपा को हरायेंगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान के नीव पर आक्रमण हो रहा है। संवैधानिक संस्थानों पर भाजपा-आरएसएस हमला कर रहा है। इसके खिलाफ हमसब साथ खड़े है। इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि यदि कांग्रेस अध्यादेश पर साथ नहीं देगी, तो गठबंधन का हिस्सा बनना मुश्किल है।
महागठबंधन में भाजपा सरकार को परास्त करने के लिए साझा मोर्चा बनाने और इसको अमली रूप देने के लिए शिमला में पुनः मिलने की बात हुई।देखा जाय तो विपक्षी पार्टियाँ गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा को घेरने के लिए अपनी-अपनी पार्टियों के प्रवक्ताओं के जिम्मे लगा दिया है। लेकिन महागठबंधन में एकता में फूँट पहले ही दिन पड़ गई। आम आदमी पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कांग्रेस अध्यादेश पर साथ देने की आश्वासन नहीं देती है तो गठबंधन का हिस्सा बनना मुश्किल है। इसबात पर कांग्रेस ने साफ मना कर दिया। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हाँ में भी थे और ना में भी, लेकिन राहुल गांधी की सख्त “ना” थी।
भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि विपक्ष कितना भी एकजुट हो जाय, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में 300 से ज्यादा सीटो के साथ नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है। देखा जाय तो भाजपा का यह अनुमान गलत नहीं दिखता है, क्योंकि जहां जहां भी आम आदमी पार्टी जाती है कांग्रेस का ही सफाया करती है। उदाहरण के रूप में दिल्ली, पंजाब और गुजरात को देखा जा सकता है। इससे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी का उदय ही कांग्रेस की कब्र पर हो रहा है। इधर ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMAIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असादुदीन ओवैसी को महागठवंधन में नहीं बुलाये जाने से वे भी खफा है और लोकसभा चुनाव परिणाम में असर दिखा सकते है। चुनाव में अभी समय है तो यह भी संभावना है कि कुछ राजनीति पार्टियाँ महागठवंधन में जुड़ सकते है और कुछ टूट भी सकते है। अब देखा जाय तो महागठवंधन में जो पार्टी शामिल हुए उनमें से अधिकांश पार्टी का जन्म कांग्रेस विरोध या अन्य पार्टी के विरोध के कारण हुआ है। अब ममता बनर्जी, जिन्होंने कांग्रेस से विरोध कर अपनी राजनीति चमकाई थी और आज कांग्रेस के साथ खड़ा होने को तैयार हैं। उसी प्रकार शरद पवार और उद्धव ठाकरे की जोड़ी एक बार फिर से कांग्रेस के साथ खड़े होने को बेचैन हैं। यह बेचैनी मात्र नरेन्द्र मोदी को हटाना है। ऐसी घालमोल की स्थिति में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। इतना तो स्पष्ट दिखता है कि टक्कर पुरजोर रहेगी।
विपक्षी दलों के गठबंधन से छन कर यह बात चर्चा में है कि सभी दलों में आम सहमती बन गई है कि महागठबंधन का नाम “पेट्रियोटिक डेमोक्रेटिक एलायंस” (पीडीए) यानि “देशभक्त लोकतांत्रिक गठबंधन” रखना चाहिए। संभव है कि शिमला में होने वाली विपक्ष की अगली बैठक के दौरान इसकी आधिकारिक घोषणा होगी और इस बैनर तले सभी विपक्षी दल एकजुट होंगे। हालांकि नाम को अंतिम आम सहमति के लिए अभी घोषणा नहीं किया गया है।
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