खड़ाऊ।…

पटना डेस्क:-लकड़ी में विद्युत गुणों की कमी से, जब हम खड़ाऊ पहनते हैं, तो हमारें शरीर व धरती की ऊर्जा के मध्य, संपर्क नहीं हो पाता, जिससे हमारें शरीर में ऊर्जा का क्षय कम होता हैं, जबकि चमड़े के जूते के माध्यम से ऊर्जा का क्षय होता रहता हैं।
इसलिए गर्म प्रदेशों जैसे भारत में खड़ाऊ का प्रचलन था। धार्मिक के साथ साथ ही, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खड़ाऊ, चमड़े के जूते की अपेक्षा, अधिक श्रेष्ठ हैं। इसके अलावा चमड़े के लिए, किसी न किसी जीव की हत्या करनी ही पड़ेगी, लेकिन खड़ाऊ के लिए ऐसा नहीं हैं। सनातनी वेषभूषा चाहे वह धोती हो, साड़ी हो, या खड़ाऊ, सब विज्ञान आधारित हैं।
सदियों से ही खड़ाऊ को सभी वर्ग के लोग पहन सकते हैं, लेकिन आज भी चमड़े के जूते, महंगे होने से उच्च वर्ग पहन सकता हैं, निम्न वर्ग नहीं। मतलब की वर्गभेद, वर्तमान में होता हैं, पहले सभी, सभी जीवनुपयोगी वस्तुओं का समान स्तर पर उपयोग करते थे।
विजय सत्य की ही होगी।