जिसने अपनी परंपरा छोड़ दी वैसे लोग मूल जनजाति समुदाय से छीन रहे 80 प्रतिशत लाभ…
- ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाए लोगों को अनुसूचित जनजाति का सदस्य न समझा जाए : कड़िया मुंडा - देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था
रांची : भारत भूमि की संवैधानिक आस, डीलिस्टिंग कानून करो पास, कुलदेवी तूम जाग जाओ धर्मांतरित तूम भाग जाओ, जो ग्राम देवी देवता को पूजता है वही आदिवासी है, कुलदेवी को जो छोड़ेगा आरक्षण वो खोएगा…जैसे नारे मोरहाबादी मैदान में रविवार को लगाए जा रहे थे। दरअसल, जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा रांची के मोरहाबादी मैदान में उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया। इस महारैली में बड़ी संख्या में जनजाति समाज के लोग राज्य के सभी जिलों से एकजुट होकर अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखने के लिए शामिल हुए। खचाखच भीड़ के बीच लोगों के हाथों में तख्तियां और बैनर पोस्टर थे, हर कोई अपनी मांग को लेकर उत्साहित दिखे। रैली का मुख्य मुद्दा, जिसने जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया है और ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है उसे अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा और उसे अनुसूचित जनजाति का आरक्षण न मिले…था। रैली को संबोधित करते पद्मभूषण कड़िया मुंडा ने कहा कि राजनीतिक दल अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट पर धर्मांतरित व्यक्ति को टिकट नहीं देने की वकालत की। कड़िया मुंडा ने कहा कि जरुरत पड़ी तो मुद्दे को लेकर दिल्ली कूच किया जाएगा। जहां बड़ी संख्या में समुदाय के लोग शामिल होंगे ताकि इस मामले को देश के उच्च सदन तक पहुंचाया जा सके।
राष्ट्रीय संयोजक पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने कहा देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था। इन सुविधाओं का लाभ अधिकतर वैसे लोग उठा रहे हैं, जो अपनी परंपरागत प्रथा छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं। इन सुविधाओं का 80 प्रतिशत लाभ मूल जनजाति समुदाय से छीन रहे हैं। जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा सरकार से हमारी मांग है धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण की सुविधा न मिले। इस मुद्दे को कार्तिक उरांव ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष रखा था ताकि वैसे व्यक्ति जिसने जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया है और ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, उसे अनुसूचित जनजाति का सदस्य न समझा जाएगा और उसे अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं मिलेगा। सबने कहा कि डा. कार्तिक उरांव ने अध्ययन कर पाया कि भारत सरकार के किसी भी अधिनियम में या देशभर के राज्य सरकारों के किसी भी अधिनियम में धर्मांतरित ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति नहीं माना गया है। जनजाति आरक्षण पर ईसाइयों द्वारा संवैधानिक अतिक्रमण हुआ है।
इन्होंने किया संबोधित :
रैली को जगलाल पाहन, संदीप उरांव, ललिता मुर्मु, जगरनाथ भगत, सन्नी उरांव, आरती कुजूर, रोशनी खलखो, देवव्रत पाहन, मनोज लियांगी, हिंदुवा उरांव, अंजली लकड़ा, राजू उरांव ने संबोधित किया। केंद्र और राज्य सरकार से जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा रैली में आह्वान किया गया कि डा. कार्तिक उरांव और संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिश को मानकर धर्मांतरित ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति आरक्षण की सूची से बाहर किया जाए। जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों को हथियाने वाले ऐसे गलत एवं षड्यंत्रकारी धर्मांतरित व्यक्तियों के खिलाफ न्यायालयीन कार्रवाई के लिए आगे आएं। केंद्र एवं राज्य सरकारों में ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों से भी यह अपेक्षा है कि वे समाज के अंतिम छोर पर खड़े इस जनजातीय समुदाय की आवाज बनें और धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने से खुद को रोकें। देश के प्रत्येक सांसद एवं विधानसभा सदस्य से अपेक्षा की जाती है कि वे जनजातियों को उनका वाजिब हक दिलाने में अपनी ओर से व्यक्तिगत रूचि लेकर पहल करें और धर्मांतरित व्यक्तियों को बेनकाब करें। वक्ताओं ने कहा कि जनगणना 1921, 1931, भारत सरकार अधिनियम 1935 में इन्हें भारतीय ईसाई कहा गया है और भारतीय ईसाईयों ने ईसाई के नाम पर 1952 तक लाभ उठाया है।
वक्ताओं ने ये कहा :
– पूर्व न्यायाधीश प्रकाश सिंह उईके ने कहा कि भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जाति के लिए व्यवस्था की है कि जो अनुसूचित जाति के लोग मुस्लिम या ईसाई धर्म ग्रहण करेंगे उसे अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलेगा। जब मुस्लिम या ईसाई बनने पर अनुसूचित जाति की पहचान मिट जा रही है तो आदिवासी की पहचान भी ईसाई या मुस्लिम धर्म में जाने पर उसकी आदिवासी की पहचान मिट जाती है
– जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय केंद्रीय टोली सदस्य सत्येंद्र सिंह खेरवार ने कहा डीलिस्टिंग डा. कार्तिक उरांव के व्यथित मन की वेदना और देशभर के 12 करोड़ परंपरागत जीवन व्यतीत करने वाले जनजातियों की कराहती हुई आवाज है। धर्मांतरित ईसाई 75 वर्षों से जबरन अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का 80 प्रतिशत लाभ लगातार लेते आ रहे हैं जबकि ईसाइयों को एसटी आरक्षण में कोई अधिकार नहीं है।
– झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति धुर्वा के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा धर्मांतरित लोग डीलिस्टिंग के डर से आदिवासियों की परंपरा, रीति-रिवाज की बात करने लगे हैं और कहते हैं कि हम एक ही माता-पिता के दो संतान हैं हमारा खून एक है हमने धर्म बदला है पर जाति नहीं। हमें आपस में लड़ाया जा रहा है तो मैं वैसे लोगों को याद दिलाना चाहता हूं कि आदिवासियों के पूजा स्थल को टुकड़े-टुकड़े कर जलाने और नष्ट करने की बात किसने की, मरियम को आदिवासी महिला के रंग रूप, वेशभूषा में मूर्ति बनाकर कर विवाद किसने खड़ा किया, ये लड़ाने का काम हम नहीं बल्कि यह काम मिशनरियों द्वारा हो रहा है। अब आदिवासी समाज जाग उठा है धर्म परिवर्तित लोगों का डीलिस्टिंग तो होकर ही रहेगा। डीलिस्टिंग से पहले जिनको अपने मूल धर्म में घर वापसी करना है उनका स्वागत किया जाएगा।
सुरक्षा की थी पुख्ता व्यवस्था :
रविवार को आयोजित रैली को लेकर मोरहाबादी मैदान के चप्पे चप्पे पर पुलिसबल तैनात दिखे। दोनों रास्ते पर बैरिकेडिंग लगाकर चेकिंग की जा रही थी। बाहरी वाहनों का प्रवेश कार्यक्रम स्थल पर मना था। इस कारण आम ट्रैफिक को डायवर्ट कर दिया गया था। वहीं पूरे राज्य से आए लोगों के वाहनों को माेरहाबादी मैदान पर खड़ाकर लगाया गया था।
महिलाओं की रही विशेष भागीदारी :
रैली में अमूमन सभी जिलों से आईं महिलाओं की भी अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। महिलाएं अपने अपने साथ तख्तियां व बैनर लेकर आई थी और कुलदेवी को जो छोड़ेगा आरक्षण वो खोएगा…जैसे नारे लगा रही थी।