किशनगंज : नवरात्रि के चौथे दिन नव दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की हुई पूजा
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:
किशनगंज, 18 अक्टूबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है और उनके भोग में पेठा अर्पित किया जाता है। पूरे विधि-विधान के साथ शहर के अलग-अलग इलाके में स्थापित कलश एवं मां दुर्गा की प्रतिमा से जहां माहौल भक्तिमय हो उठा है। लोगों में भी दुर्गा पूजा को लेकर उत्साह का माहौल बना हुआ है। सुबह शाम पूजा अर्चना एवं आरती में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। शहर में दर्जनों जगहों पर मां दुर्गा की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जा रही है। इस बीच भक्तों में गजब का उत्साह दिख रहा है। शहर के प्रसिद्ध बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर, मनोरंजन क्लब दुर्गा पूजा पंडाल, शिव शक्ति धाम दुर्गा मंदिर लोहारपपट्टी, मोतीबाग काली मंदिर दुर्गा स्थान, रुईधाशा महाकाल मंदिर आदि दुर्गा मंदिरों में शाम के वक्त महिलाएं पहुंचकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर रही है। मां को पीले फल, फूल, वस्त्र, मिठाई और मालपुआ सबसे प्रिय हैं। बुधवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा होती है। मां कुष्मांडा अष्टभुजाओं वाली देवी कहलाती हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा करने वाले साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भक्तों को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां कुष्मांडा को लेकर ऐसी मान्यता है कि पढ़ने वाले छात्र यदि कुष्मांडा देवी की पूजा करें तो उनके बुद्धि विवेक में वृद्धि होती है। दुर्गा माता के चौथे रूप में मां कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक, विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। गुरु साकेत ने बताया कि देवी कुष्मांडा को लेकर भगवती पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा मां के चौथे स्वरूप की देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था, इसलिए इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। माना जाता है जब सृष्टि के आरंभ से पहले चारों तरफ सिर्फ अंधेरा था। ऐसे में मां ने अपनी हल्की सी हंसी से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। गुरु साकेत ने कहा कि कूष्मांडा देवी थोड़ी-सी सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। जो साधक सच्चे मन से इनकी शरण में आता है उसे आसानी से परम पद की प्राप्ति हो जाती है। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर है। कहते हैं सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता केवल मां कूष्मांडा में ही है और यही सूर्य देव को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। मां कुष्मांडा का स्वरूप बहुत ही दिव्य और अलौकिक माना गया है। मां कुष्मांडा शेर पर सवारी करते हुए प्रकट होती हैं। अष्टभुजाधारी मां, मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट धारण किए हुए हैं अत्यंत दिव्य रूप से सुशोभित हैं। मां कुष्मांडा ने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण किया है। मां कुष्मांडा के हाथों में जप की माला में सभी सिद्धियों और निधियों का संग्रह है। मां का यह रूप हमें जीवन शक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। मां कुष्मांडा को कुम्हरा यानी कि पेठा सबसे प्रिय है। इसलिए इनकी पूजा में पेठे का भोग लगाना चाहिए। आप देवी की पूजा में सफेद समूचे पेठे के फल की बलि चढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही देवी को मालपुए और दही हलवे का भी भोग लगाना अच्छा होता है। मां कुष्मांडा की पूजा में उपासकों को व्रत करने वाले लोगों को पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए। मां को पीला रंग सबसे प्रिय है। मां की पूजा में पीले वस्त्र, पीले फल, पीली मिठाई और पीले फूल भी अर्पित करने चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि मां कुष्मांडा की पूजा के लिए नवरात्रि के चौथे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और मां कुष्मांडा का व्रत करने का संकल्प करें। पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और मां कुष्मांडा का स्मरण करें। पूजा में पीले वस्त्र फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत आदि अर्पित करें। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से अनाहत चक्र जागृत होता है। सारी सामिग्री अर्पित करने के बाद मां की आरती करें और भोग लगाएं। सबसे आखिर में क्षमा याचना करें और ध्यान लगाकर दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।