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*वृद्धजनों अनुभवों से युवा पीढ़ी को सीख लेने की जरूरत- वृद्धों की सेवा ही सही मायने में ईश्वर सेवा : डा. नम्रता आनंद*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा:-खंडवा, सामाजिक संगठन दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापक और समाजसेवी डा. नम्रता आनंद ने वृद्धों के लिये संचालित

आश्रम शांति निकेतन वृद्धाश्रम में वृद्ध परिजनों से मुलाकात कर उन्हें हर संभव सहायता देने का वचन दिया। पर्यावरण लेडी डा.नम्रता आनंद इन दिनो मध्यप्रदेश में हैं, और लगातार समाजिक गतिविधियों में सक्रिय है।बाल उड़ान सम्मान, पौधरोपण, नारी सम्मान जैसे कार्यक्रम करने के उन्होंने खंडवा स्थित आश्रम शांति निकेतन द्वारा संचालित वृद्धाश्रम का दौरा किया, जहां उन्होंने वृद्धों से उनके स्वास्थ्य के साथ खान-पान की जानकारी ली और उनका कुशलक्षेम पूछा। इसके बाद उन्होंने वृद्धाश्रम में रहने वाले सभी लोगों के लिये भोजन की व्यवस्था की।उन्होंने आश्रम के वृद्ध जनों से परिचय प्राप्त करते हुए कहा कि वृद्धाश्रम में रहने वाले वृद्ध माता-पिताओं को हमारी, हमसब की ज़रूरत है, इसलिए हमें भी उनके प्रति अपना दायित्वों को निभाना चाहिए। वो हमारे लिए अनुभवों का ख़ज़ाना हैं। ज़रूरत उन्हें सँज़ो कर सहेज कर रखने की की है, उनके प्रति समाज के लापरवाह नज़रिया को बदला जाना चाहिए।आज की युवा पीढ़ी जीवित मां-बाप और समाज के जीवित बुजुर्गों की सेवा से दूर रहकर पतन के रास्ते पर जा रही है। उन्होंने कहा कि वृद्धों की सेवा ही सही मायने में ईश्वर सेवा है। वह घर जन्नत के समान होता है, जहां पर बुजुर्गों का सम्मान होता है। वरिष्ठजन घर की धरोहर है, वे हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्शक है। जिस तरह आंगन में पीपल का वृक्ष फल नहीं देता, लेकिन छाया अवश्य देता है। उसी तरह हमारे घर के बुजुर्ग हमे भले ही आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर पाते है, लेकिन उनसे हमे संस्कार एवं उनके अनुभव से कई बाते सीखने को मिलती है। उन्होंने कहा, वृद्ध समाज की अनुपम धरोहर हैं, इनकी सेवा ईश्वर की सेवा जैसी है। वृद्धजनों का हमें सम्मान करना चाहिए तथा उनके जीवन अनुभवों से युवा पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय और राजकीय सम्मान से सम्मानित डा: नम्रता आनंद ने आश्रम शांति निकेतन के निष्काम मानव सेवाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सरकार को आश्रम शांति निकेतन जैसे मानवता की सेवा को समर्पित संस्थानों और सेवा केन्द्रों को उदारतापूर्वक व्यापक सहायता करनी चाहिए। जीवन में वृद्धों की सेवा को ईश्वर की पूजा के समतुल्य माना गया हैं. जो व्यक्ति अपना भगवान वृद्ध माता पिता को मानकर उनका सम्मान करता है उन्हें कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है।आज भी बुजुर्गों के अनुभव और सीख को आत्मसात कर भावी पीढ़ी नई सोच के साथ विकास की ओर अग्रसर हो रही है। बुजुर्ग ही नई पीढ़ी की नींव हैं और उन्हीं के बताए रास्ते पर नई पीढ़ी को जीवन में आगे जाना है। डा. नम्रता आनंद ने बताया कि वह जल्द ही राजधानी पटना में नि:शुल्क वृद्धाश्रम खोलने जा रही है। उन्होंने कहा, चारों धाम और तीर्थों का, जिस घर में वास है;

बिन बुजुर्ग सम्मान के, वह घर अकाल है।
वृद्धों की सेवा में, ईश्वर का सम्मान है;
वृद्ध ही ईश्वर रूप, वृद्ध ही घर में भगवान है।
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