ज्योतिष/धर्म

02 अक्टूबर तक रहेगा पितृपक्ष – गया में होता है पितृपक्ष में तर्पण…

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::पितृपक्ष में पितरनों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। इस अवधि में नियम संयत से रहना, खान पान के साथ साथ आचार व्यवहार में भी संयत जरुरी होता है। ऐसे तो तर्पण, पितरन के निधन तिथि पर, किया जाता है। लेकिन जो लोग अपने पितरनों के नाम पर एक पखवाड़ा तक प्रतिदिन पूजा तर्पण करते है, उन्हें भी विशेष लाभ मिलता है।

पितृपक्ष में पितरनों के पिंड दान के लिए बिहार के गया जिला में भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से लेकर आश्विन की अमावस्या तक पिंडदान आदि कार्य करने का उत्तम समय माना जाता है। इस वर्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 02 अक्‍टूबर तक पितृपक्ष चलेगा।

सनातन धर्म में देवी-देवताओं के पूजन के लिए वर्ष में कुछ समय निर्धारित है। इसी क्रम में आश्विन कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष मानते हुए पितरनों के लिए अपनी श्रद्धा समर्पित करने की विशेषता मानी गयी है ! मान्यता है कि देवकार्य करने से पहले पितरनों को तृप्त करने का प्रयास मनुष्य को करना चाहिए। पितृपक्ष में पितरनों को अनदेखा करने से किसी भी देवी – देवता का पूजन कभी भी सफल एवं फलदायी नहीं होता है, ऐसी मान्यता है। यह भी कहा जाता है कि अपने पितरनों के लिए पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध नहीं करने पर पितृदोष के साथ अनेक व्याधियों का शिकार होकर कर मनुष्य जीवन भर कष्ट भोगता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य नारायण, कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक रहता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव है। पितरन के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, पहला मृत्यु या क्षय तिथि पर और दूसरा पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितरन की मृत्यु हुई हो।

देखा जाय तो सृष्टि में प्रत्येक चीज का जोड़ा है, जैसे – रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफेद और काला, अमीर और गरीब, नर और नारी इत्यादि। सभी अपने जोड़े अपने आप में सार्थक भी है और एक-दूसरे के पूरक भी। इसी तरह जगत का भी जोड़ा है दृश्य और अदृश्य। दृश्य को हमलोग जगत अपने आंखों से देखते हैं और अदृश्य जिसे देखते नहीं हैं बल्कि महसूस करते है। यह भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं। इसी प्रकार पितृ-लोक अदृश्य है और श्राद्ध।

धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक हिन्दू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, क्योंकि पितरन का पिण्ड दान करने से गृहस्थ, दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति होता है। श्राद्ध के माध्यम से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरन को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग प्रसस्त करता है।

विश्व के प्राचीनतम शहरों में भारत के बिहार राज्य में अवस्थित है “गया”। “गया” को लोग श्रद्धा से “गया जी” कहकर सम्बोधित करते है। “गया” शहर का उल्लेख “ऋग्यवेद” में किया गया है। “गया” भगवान विष्णु की नगरी कहा जाता है। “वायुपुराण” के अनुसार, प्राचीनकाल में गयासुर नामक एक असुर था, जिसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में रहकर वेद, धर्म और युद्ध कला में दक्षता हासिल करने के बाद भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान दिया कि “जो भी उसका (गयासुर का) दर्शन करेगा वह सीधे स्वर्ग को जायेगा।” इस वरदान की, प्रतिक्रिया हुई कि गयासुर दर्शन कर सीधे लोग स्वर्ग (मोक्ष) प्राप्त करने लगा और यमलोक कोई नही जाने लगा। इस समस्याओं से निपटने के लिए समस्त देवताओं ने ब्रह्माजी के नेतृत्व में सभा कर यह निर्णय लिया कि गयासुर को उसके शरीर पर यज्ञ करने को तैयार (राजी) किया जाय। ब्रह्मा जी ने पहल कर गयासुर के पास जाकर कहा की यज्ञ करने के लिए उसे एक पवित्र स्थल चाहिए और मुझे तुम्हारे शरीर से अधिक पवित्र स्थल कही दिखाई नही दे रहा है। गयासुर इस याचना को सुनकर प्रसन्न और भावुक होकर अपने शरीर पर यज्ञ करने की अनुमति दे दी। यज्ञ के लिए जब गयासुर जमीन पर लेटा तो उसका शरीर दस मील और सिर दो मील में फैल गया। सभी देवताओं ने गयासुर के छाती पर बैठकर छाती को दबाकर, फिर धर्मशिला रखकर मारने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिला तब भगवान विष्णु ने छाती पर रखा धर्मशाला पर अपना पैर रख कर जोर से दबाते हुए गयासुर को कहा कि मृत्यु के अंतिम घड़ी में जो चाहो वरदान मांग लो। गयासुर ने मृत्यु के समय यह वरदान मांगा कि “ मै जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूँ ‘वह शिला में परिवर्तित हो जाये और मैं उसमें मौजूद रहूँ, तथा इस शिला पर आपके पवित्र पैर (चरण) की स्थापना हो जाये और जो इस शिला पर पिण्डदान और मुंड (मुंडन) दान करेगा उसके पूर्वज सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करेंगे, अगर इस शिला पर जिस दिन एक भी पिण्डदान और मुंड (मुंडन) दान नही होगा तो उस दिन इस क्षेत्र और शिला का नाश हो जायेगा। गयासुर के इस वरदान के कारण बिहार राज्य के इस जिला का नाम “गया” हुआ और भगवान विष्णु के पद चिन्ह के कारण इस स्थान और मंदिर को “विष्णुपद” कहा जाता है।

पितृपक्ष में पितरनों की उपस्थिति का संकेत भी लोगों को मिलता है। यदि घर में पीपल का पौधा निकल आए तो ये आपके घर में पितरनों की उपस्थिति माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान घर में अचानक से लाल चीटियां दिखाई देती हैं और आपको उनके आगमन का सही कारण पता नहीं चलता है। यदि आपके घर में लगा हुआ हरा भरा तुलसी का पौधा अचानक से सूख जाए और उसका कारण पता नहीं चले। घर में अचानक से काले कुत्ते का आगमन होना। काले कुत्ते को पूर्वजों का संदेशवाहक माना जाता है। यदि पितृ पक्ष के दौरान घर में कौआ भोजन को ग्रहण करने आ जाए जो आपने पितरों के निमित्त निकाला है। मान्यता है कि इस तरह का संकेत पितृपक्ष में मिलना पितरनों की उपस्थिति दर्शाती है।

फल्गु नदी तट पर बसा शहर भारत में अकेला शहर है “गया”, जिसके नाम के साथ जी लगता है, इसलिए लोग “गया” को “गया जी” कहते है। देखा जाय तो भारत के अधिकांश भूभाग अंतः सलिला नही दिखती है जहाँ नदी सुख जाने के बाद भी हाथ-दो-हाथ अंदर जल का प्रवाह हो।

गया शहर को अस्तित्व में लाने का श्रेय सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी को जाता है। गया शहर अपने स्थापत्य काल से ही अनेक उतार-चढ़ाव के बाद भी प्राचीन काल से आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है। ऋग्यवेद में अय, पुराणों में गया, जैन साहित्य में राजा गय और बुद्धचरित में ऋषिगण से जाना जाता है।

इस वर्ष गूंगे बहरे पितृ का श्राद्ध, पूर्णिमा तिथि मंगलवार 17 सितम्बर को होगा। प्रतिपदा (पड़वा) तिथि का श्राद्ध बुधवार 18 सितम्बर को, द्वितीया तिथि का गुरुवार 19 सितम्बर को, तृतीया तिथि का शुक्रवार 20 सितम्बर को, चतुर्थी तिथि का (भरणी श्राद्ध) शनिवार 21 सितम्बर को, पंचमी तिथि का रविवार 22 सितम्बर को, षष्ठी तिथि एवं सतमी तिथि का सोमवार 23 सितम्बर को, अष्टमी तिथि का मंगलवार 24 सितम्बर को, नवमी तिथि का सौभाग्यवती (मातृ नवमी) श्राद्ध बुधवार 25 सितम्बर को, दशमी तिथि का गुरुवार 26 सितम्बर को, एकादशी तिथि का शुक्रवार 27 सितम्बर को, द्वादशी तिथि का (सन्यासियो का श्राद्ध) रविवार 29 सितम्बर को, त्रयोदशी तिथि का सोमवार 30 सितम्बर को, चतुर्दशी तिथि अकाल मृत्यु (शस्त्र अथवा दुर्घटना में मरे) का मंगलवार 01 सितम्बर को और अमावस्या तिथि सर्वपित्र श्राद्ध बुधवार 02 सितम्बर को होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button