बिहार प्रदेश इंटक द्वारा 26 मई 2021 को काला दिवस के रूप में मनाया गया बिहार प्रदेश इंटक के प्रदेश अध्यक्ष सह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री चंद्र प्रकाश सिंह के दिशा निर्देश अनुसार आज बिहार प्रदेश में इंटक काला दिवस के रूप में मनाया

त्रिलोकी नाथ प्रसाद –आप सबको मालूम है कि कृषि कानूनों को संसद से गैर- जनतांत्रिक तरीके से पास कर इसे लागू करने के विरोध में दिल्ली के बाॅर्डरों पर 26/11/2020 से शुरू किए गए किसान आंदोलन को अब 6 माह पूरे होंगे। साथ ही मोदी सरकार को शपथ लिए हुए भी 26/05/2021 को 7 वर्ष पूरे होंगे। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा अपनी बैठक में लिए गए निर्णय के आलोक में आगामी 26 मई 2021 को किसान मोर्चा ने इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने भी इस कला दिवस के रूप में आज मनाया
बैठक में लिए गए निर्णयानुसार:-
1. ट्रेड यूनियनों द्वारा भी कार्यस्थल पर काली पट्टी बांधकर, मांगों की तख्ती पकड़ कर एवं काले झंडे दिखाकर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कोविड प्राटोकोल, मास्क व उचित दूरी के साथ का
2. इसके लिए मांगों का एक ऑन लाईन पोस्टर जल्द रिलीज किया
3. 26 मई 2021 काला दिवस की मांगें निम्नलिखित हैं-
✓ कोविड से बचाव के लिए सभी को मुफ़्त टीकाकरण किया जाए।
✓ मुफ़्त राशन दिया जाए।
✓ प्रतिमाह ₹7500 की आर्थिक सहायता दी जाए।
✓ तीनों कृषि कानून वापस लो।
✓ एमएसपी लागू करने हेतु केन्द्रीय कानून लाया जाए।
✓ चारों लेबर कोड वापस लो।
✓ भारतीय श्रम सम्मेलन का तुरंत आयोजन किया जाए।
✓ निजीकरण/काॅरपोरेटीकरण की नीति पर रोक लगाई जाए।
कला दिवस के अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष चंद्रप्रकाश सिंह ने कहा दोस्तों, मोदी सरकार द्वारा लगातार काॅरपोरेट घरानों व पूंजीपतियों के हित में सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, श्रम कानूनों को समाप्त कर श्रम कोड को कार्यान्वित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में केन्द्र सरकार की जनविरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी नीतियों को और अक्रामक तरीके से जारी रखा है। कोविड रोकथाम की आड़ में लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। आपदा में अवसर के नाम पर करोड़ों लोगों के रोजगार छीन गए। वेतन कटौती जारी है, पेट्रौल, डीजल व अन्य जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ा कर आम लोगों का जीना मुश्किल कर दिया गया है। प्रवासी मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल चलने व भूखों मरने पर मजबूर किया गया।
ज्ञातव्य हो कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में ट्रेड यूनियनों ने 26 नवम्बर 2020 को सफल देशव्यापी हड़ताल किया था। उसी दिन किसानों ने भी अपना आंदोलन दिल्ली के बाॅडरों पर शुरू किया था, जो अभी भी जारी है।
कोविड की दूसरी लहर ने केन्द्र व राज्य सरकारों की बदइंतजामी की कलई खोल कर रख दी है। सरकारों ने पिछले साल आई महामारी से कुछ नहीं सीखा। जरूरत पड़ने पर पर्याप्त आईसीयू, बेड,आक्सीजन,जीवन रक्षक दवायें आदि भी देश के लोगों को उपलब्ध नहीं हो सका। पूरे देश में इसके लिए हाहाकार मचता रहा, लोग रोते रहे, सड़कों पर तड़पते और मरते रहे। परंतु सरकार राजनीति में मस्त रही और दोषारोपण का दौर जारी रहा। बाजार में इन चीजों की जमकर काला बाजारी हुई और निजी अस्पतालों ने आमलोगों को जमकर लूटा भी। परंतु इस बीच सरकारी तंत्र मूकदर्शक बना देखता रहा। सरकारी व्यवस्था में बैठे आला अधिकारियों की बिना मिली भगत के यह सब संभव नहीं हो सकता है।
अप्रैल व मई में हुई असमय मौत से लोगों को बचाया जा सकता था। परंतु सरकारों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की लगातार अपराधिक अवहेलना एवं निजी क्षेत्र पर आश्रित होने का ही नतीजा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की इन नाकामियों को व्यापक प्रचार से उजागर करने साथ ही जरूरतमंद लोगों तक राहत पहुंचाने की जरूरत है।
इस अवसर पर बिहार के प्रत्येक जिला से ऑनलाइन पोस्ट एवं बिहार प्रदेश के सभी पदाधिकारियों एवं इंटक के साथियों ने अपने अपने कार्यस्थल पर काला बिल्ला लगाकर काला दिवस के रूप में मनाया इस अवसर पर प्रदेश महासचिव नंद मंडल जी प्रदेश सचिव अखिलेश पांडेय प्रभात कुमार सिन्हा पवन कुमार राम कुमार झा इत्यादि लोगों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया ने भी विरोध प्रदर्शन किया