स्वयंसेवकों के सुख दुख में सहभागी रहते थे सुदर्शन जी – नवेन्दु मिश्र
केवल सच -पलामू
मेदिनीनगर – सरसंघचालक का दायित्व छोड़ने के बाद भोपाल में संघ कार्यालय ‘समिधा’ सुदर्शन जी का आवास बना। यहां उनका साढ़े तीन साल का निवासकाल स्वयंसेवकों को बेहद प्रेरणादायी अनुभव देकर गया।
स्वयंसेवक के सुख-दुख में सहभागी होने को लेकर वे बहुत आग्रही थे। समिधा कार्यालय में खाना बनाने वाले एक युवक की मां बीमार हो गईं तो उनसे मिलने वे रायसेन जिले के दूरस्थ ग्राम में उनके घर जा पहुंचे। शल्य चिकित्सा के लिए उन्हें भोपाल लेकर आए और जयप्रकाश अस्पताल में उन्हें भर्ती करवाया, रोज उन्हें देखने जाते। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद चिकित्सकीय देखरेख के लिए सुदर्शन जी ने उन्हें भोपाल में रोक लिया और पूरे परिवार के एक सप्ताह तक रुकने-ठहरने की व्यवस्था की। क्या आश्चर्य कि समिधा में रखे सुदर्शन जी के चित्र को देखते ही उस युवक की आंखें आज भी भर आती हैं ?
अरेरा कालोनी के एक मकान में चौकीदारी करने वाले व्यक्ति का छोटा-सा बेटा वहां की सायं शाखा में जाता था। बालसुलभ आकांक्षा में उसने अपनी बहन की शादी का निमंत्रण सुदर्शन जी को दे दिया। रात में शादी थी। उस उम्र में भी वे रात को 12 बजे विवाह में शामिल होने उसके घर पहुंचे। एक कमरे के घर में वर-वधु पक्ष के लोग जैसे-तैसे बैठे थे। यहां वहां सामान बिखरा पड़ा था. देखते ही सुदर्शन जी ने स्वयं झाडू उठायी, सबने मिल कर कमरे को व्यवस्थित किया। उन्होंने वर-वधु के गले में मालाएं पहनायीं, दोनों को भेंट में वस्त्र दिए और आशीर्वाद प्रदान किया। रात में डेढ़ बजे जब वे बाहर निकले तो उन्हें विदा करने बाहर आए हुए घराती और बाराती इसी बात पर धन्य हुए जा रहे थे कि चैकीदारी करने वाले उनके जैसे निर्धन परिवार की खुशी में इतना बड़ा व्यक्ति शामिल हुआ।