ज्योतिष/धर्म

मां दुर्गा का आगमन गज पर और प्रस्थान चरणायुध (मुर्गे) पर होगा – योगिनियों को आदिशक्ति माँ काली का अवतार माना जाता है

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, ::शारदीय नवरात्र का शुभारंभ इस वर्ष 15 अक्तूबर से हो रहा है और कलश स्थापना 15 अक्तूबर को पूरे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन जहां तक अमृत मुहूर्त का प्रश्न है तो वह समय प्रातः 7 बजकर 16 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट तक तथा सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 12 मिनट से 11 बजकर 58 मिनट तक विशेष फलदायक है। कलश स्थापना सदैव पूजा घर के ईशान कोण में करना चाहिए।

देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा इस वर्ष नवरात्र में कैलाश से धरती पर पधारेगी, इसलिए उनका आगमन हाथी की सवारी होगा जो अत्यंत ही शुभ फलदायक माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार जिस वर्ष माता का आगमन हाथी पर होता है उस वर्ष देश में समृद्धि और उन्नति आती है। माता का कैलाश प्रस्थान इस वर्ष चरणायुध (मुर्गे) की सवारी होगा। ऐसी स्थित में लोगों में विकलता और तबाही की स्थिति रहेगी।

नवरात्रि में योगिनियों की पूजा करने का भी विधान है। पुराणों के अनुसार, चौसठ योगिनियाँ होती है। सभी योगिनियों को आदिशक्ति माँ काली का अवतार माना गया है। किवदंती है कि घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते समय योगिनियों का अवतार हुआ था और यह सभी माता पार्वती की सखियां हैं।

चौंसठ योगिनियों में (1) बहुरूप, (2) तारा, (3) नर्मदा, (4) यमुना, (5) शांति, (6) वारुणी (7) क्षेमंकरी, (8) ऐन्द्री, (9) वाराही, (10) रणवीरा, (11) वानर-मुखी, (12) वैष्णवी, (13) कालरात्रि, (14) वैद्यरूपा, (15) चर्चिका, (16) बेतली, (17) छिन्नमस्तिका, (18) वृषवाहन, (19) ज्वाला कामिनी, (20) घटवार, (21) कराकाली, (22) सरस्वती, (23) बिरूपा, (24) कौवेरी, (25) भलुका, (26) नारसिंही, (27) बिरजा, (28) विकतांना, (29) महालक्ष्मी, (30) कौमारी, (31) महामाया, (32) रति, (33) करकरी, (34) सर्पश्या, (35) यक्षिणी, (36) विनायकी, (37) विंध्यवासिनी, (38) वीर कुमारी, (39) माहेश्वरी, (40) अम्बिका, (41) कामिनी, (42) घटाबरी, ( 43) स्तुती, (44) काली, (45) उमा, (46) नारायणी, (47) समुद्र, (48) ब्रह्मिनी, (49) ज्वाला मुखी, (50) आग्नेयी, (51) अदिति, (52) चन्द्रकान्ति, (53) वायुवेगा, (54) चामुण्डा, (55) मूरति, (56) गंगा, (57) धूमावती, (58) गांधार, (59) सर्व मंगला, (60)अजिता, (61) सूर्यपुत्री (62) वायु वीणा, (63) अघोर और (64) भद्रकाली योगिनियाँ है।

इस वर्ष नवरात्रि की अष्टमी तिथि जिसे दुर्गाष्टमी भी कहा जाता है जो 22 अक्टूबर को है। इस दिन मां के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। नवरात्रि में अष्टमी-नवमी की संधि-पूजा को विशेष फलप्रद माना जाता है, संधि पूजा भी 22 अक्टूबर को रात्रि 8 बजकर 45 मिनट से 9 बजकर 31 मिनट तक होगा। महानवमी तिथि का मान 23 अक्टूबर को होगा। इस तिथि को संध्या 6 बजकर 52 मिनट तक नवरात्र व्रत के अनुष्ठान से संबंधित हवनादि कार्य किया जायेगा।

नवरात्रि में पाठ का प्रारम्भ प्रार्थना से करना चाहिए। उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम का पाठ करने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत दुर्गा सप्तशती का एक-एक सम्पूर्ण पाठ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति से यह सम्भव नही तो निम्न प्रकार भी पाठ कर सकते है।

जो व्यक्ति एक दिन में सभी पाठ नही कर सकते हैं वे नवरात्रि में पाठ का प्रारम्भ प्रार्थना से शुरू करना चाहिए और उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम का पाठ करने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत-

पहला दिन – प्रथम अध्याय

दूसरा दिन – दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय

तीसरा दिन – पाँचवाँ अध्याय

चौथा दिन – छठा और सातवां अध्याय

पाँचवा दिन – आठवां और नौवां अध्याय

छठा दिन – दसवां और ग्यारहवां अध्याय

सातवाँ दिन – बारहवाँ अध्याय

आठवां दिन – तेरहवां अध्याय

नौवाँ दिन – प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य एवं मूर्ति रहस्य, कर सकते हैं।

नवरात्रि में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता…

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button