अखिलेश बनाम मुलायम समाजवादी पार्टी में जारी घमासान अब एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां विभाजन ही इस पार्टी की नियति दिख रही है।राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने प्रत्याशियों की अपनी सूची के जवाब में मुख्यमंत्री अखिलेश की सूची आने के उपरांत जिस तरह उन्हें और उनके साथ-साथ महासचिव रामगोपाल यादव को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया उसके बाद सुलह-समझौते की ज्यादा गुंजाइश नहीं रह गई है।अब कोई गुंजाइश तभी निकल सकती है जब मुलायम सिंह अपने फैसलों पर पुनर्विचार करें।यह कहना कठिन है कि अब वह आगे क्या करेंगे,क्योंकि वह अपने फैसलों में हेर-फेर करने और उनसे पीछे हटने के लिए भी जाने जाते हैं।वह आगे जो भी करें,यह साफ है कि वह दीवार पर लिखी यह इबारत नहीं पढ़ पा रहे हैं कि आज सपा की सबसे बड़ी ताकत अखिलेश हैं,न कि वह खुद या फिर शिवपाल यादव।भले ही सपा के तमाम विधायक मुलायम सिंह और शिवपाल यादव के साथ हों,लेकिन वे इससे अवश्य परिचित होंगे कि उन्हें वोट नेता जी और अध्यक्ष जी के नाम पर नहीं अखिलेश के नाम पर ही मिलेंगे।यह सही है कि अखिलेश प्रत्याशियों की जवाबी सूची जारी कर अनुशासन के दायरे को लांघते दिखे,लेकिन मुलायम सिंह ने जिस तरह इस अनुशासनहीनता के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करने के चंद घंटे के अंदर ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया उससे यही स्पष्ट हुआ कि इस बार मुख्यमंत्री न तो पीछे हटने के लिए तैयार हैं और न ही ऐसा कुछ कहकर सुलह की उम्मीद जगाने के लिए कि नेता जी का फैसला ही अंतिम फैसला होगा। अखिलेश ने बिना कहे यह बोल दिया है कि कुछ मामलों में उनका ही फैसला अंतिम होगा।अखिलेश ने खुद को ऐसे स्थान पर ले जाकर खड़ा कर लिया है जहां से पीछे नहीं हट सकते।अगर वह पीछे हटे या फिर समझौते के लिए बाध्य हुए तो फिर उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनेगी जो बार-बार अपने कदम पीछे खींच लेता है।ऐसी छवि निर्मित होने का मतलब होगा समर्थकों के भरोसे को खो देना।स्पष्ट है कि अब वह पीछे हटने का जोखिम नहीं उठा सकते।फिलहाल यह कहना कठिन है कि सपा से अखिलेश के निष्कासन के बाद पार्टी में जो विभाजन नजर आने लगा है उसकी परिणति किस रूप में सामने आएगी,लेकिन यदि सपा सचमुच विभाजित होती है तो वह कहीं अधिक कमजोर दिखेगी।चुनावों के ठीक पहले किसी भी पार्टी में टूट-फूट हितकारी नहीं हो सकती।परिवार आधारित पार्टियों में टूट-फूट कोई नई-अनोखी बात नहीं,लेकिन ठीक चुनाव के पहले वैसा कम ही होता है जैसा सपा में हो रहा है।मुलायम और उनके समर्थक कुछ भी सोच रहे हों,इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अखिलेश ने एक कुशल राजनेता की छवि अर्जित की है।तमाम दबावों के बावजूद वह पार्टी को एक नए रूप में सामने लाने में भी सक्षम हुए हैं।सबसे खास बात यह है कि उन्होंने खुद को विकास के लिए समर्पित दिखाया है और विकास कार्यो को एक दिशा भी दी है।विनम्र छवि भी उनकी एक बड़ी पूंजी है।एक बेदाग नेता के तौर पर उभरे अखिलेश ने हाल के दिनों में जो दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाई है उससे उनका राजनीतिक व्यक्तित्व और मजबूत है।आश्चर्यजनक है कि मुलायम सिंह न तो यह सब देख पा रहे और न ही यह समझ पा रहे कि उनके तौर-तरीकों वाली राजनीति का दौर बीत चुका है।