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किशनगंज की नई चिंता: स्मैक की गिरफ्त में युवा पीढ़ी

खुलेआम हो रही नशे की बिक्री, प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में

किशनगंज,23मई(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, बिहार का सीमावर्ती जिला किशनगंज, जो कभी अपनी शांति और गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए जाना जाता था, आज नशे के जाल में बुरी तरह उलझता जा रहा है। जिले में युवाओं के बीच स्मैक जैसे घातक नशे की लत खतरनाक रूप ले चुकी है। खासकर किशनगंज शहर के बिहार बस स्टैंड, खगड़ा और रुईधाशा ब्रिज के नीचे, यह कारोबार अब बेखौफ और बेधड़क हो चला है।

सुबह से शाम तक जमावड़ा, नशे के सौदागरों की चांदी

रिपोर्टिंग के दौरान जब हमारी टीम ने इन इलाकों का दौरा किया, तो एक खौफनाक सच सामने आया। सुबह होते ही इन जगहों पर स्मैकियों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है। युवाओं के हाथों में न सिगरेट है, न चाय का कप—बल्कि एक छोटी सी पन्नी में ज़हर है, जिसे वे बड़ी शिद्दत से अपने शरीर में उतारते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, यह सिलसिला महीनों से नही बल्कि पिछले पांच वर्षों से चल रहा है। इन नशेड़ियों में स्कूली छात्र, कॉलेज जाने वाले युवक, बेरोज़गार युवा और कभी-कभी नाबालिग बच्चे भी देखे जा सकते हैं। एक स्थानीय दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यहां नशे का सामान कौन बेचता है, यह किसी से छिपा नहीं है, लेकिन पुलिस कुछ नहीं करती।”

स्मैक की खुली बिक्री, और प्रशासन की चुप्पी

चौंकाने वाली बात यह है कि स्मैक जैसे प्रतिबंधित मादक पदार्थ की खुलेआम बिक्री हो रही है। बताया जाता है कि बाइक सवार तस्कर चंद मिनटों में माल की डिलीवरी कर चलते बनते हैं। कहीं कोई डर नहीं, न कोई खुफिया कार्रवाई। रुईधाशा ब्रीज के नीचे बने झोपड़ी नुमा घर मे एक पुड़िया स्मैक 230 रुपये में बेची जा रही है।

स्थानीय सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने कई बार पुलिस और प्रशासन को इसकी जानकारी दी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। किशनगंज में नशा मुक्ति केंद्र की संख्या सीमित है और जो हैं, वे संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।

युवाओं का भविष्य खतरे में

नशे की गिरफ्त में आए युवाओं का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तेजी से गिर रहा है। कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं। अस्पतालों में नशे के ओवरडोज़ से पीड़ित युवकों की संख्या बढ़ रही है। शिक्षा और रोजगार से कटे ये युवा अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं।

जरूरत है सख्त कार्रवाई की

किशनगंज प्रशासन को चाहिए कि वह इस गंभीर समस्या पर तत्काल संज्ञान ले। केवल तस्करों की गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने की ज़रूरत है। साथ ही, युवाओं के लिए नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या बढ़ाना, जनजागरूकता अभियान चलाना और स्कूल-कॉलेजों में काउंसलिंग शुरू करना समय की मांग है।

गौर करे कि किशनगंज का भविष्य अधर में लटका है। अगर आज सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो एक पूरी पीढ़ी स्मैक के धुएं में खो जाएगी। प्रशासन, समाज और हर जागरूक नागरिक को मिलकर इस नशे की लत से लड़ना होगा—अब नहीं तो कभी नहीं।

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