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किशनगंज : विकास की नई इबारत लिखती आवाजें: किशनगंज के ‘महिला संवाद’ में उभरीं सशक्त आकांक्षाएं

संवाद से सशक्तिकरण तक का सफर तय करती महिलाएं

किशनगंज, 19 मई (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, जिला प्रशासन, किशनगंज द्वारा आयोजित “महिला संवाद कार्यक्रम” एक साधारण सरकारी पहल से कहीं अधिक बन चुका है — यह अब ग्रामीण महिलाओं की आकांक्षाओं, सुझावों और नेतृत्व की ताकत को मंच देने वाला एक सशक्त माध्यम बन गया है। जिले के अलग-अलग प्रखंडों से आई महिलाओं ने इस संवाद मंच पर न सिर्फ अपनी समस्याओं को उठाया, बल्कि विकास की संभावनाओं से जुड़ी ठोस मांगें भी रखीं।

ग्राम संगठन से निकलती ठोस मांगें

ठाकुरगंज प्रखंड के छेतल पंचायत की कोहीनूर ग्राम संगठन की महजबी बेगम ने सड़क किनारे नाले के निर्माण की मांग उठाई ताकि बारिश के समय पानी निकासी में सहूलियत हो। वहीं रबिना खातून ने पर्यावरण-संवेदनशील सोच को सामने रखते हुए सरकारी स्तर पर सोख्ता निर्माण की पहल की आवश्यकता जताई।

दिघलबैंक प्रखंड के सतकौआ पंचायत की आशा ग्राम संगठन की सरिता देवी ने चावल मिल खोलने की आकांक्षा व्यक्त की और सरकार से कम ब्याज पर ऋण तथा सब्सिडी की सुविधा की मांग की, ताकि महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।

खेती-बाड़ी से लेकर जल प्रबंधन तक की सोच

मलिनगांव पंचायत की सुमित्रा देवी ने कृषि यंत्र बैंक खोलने की बात रखी ताकि छोटे किसानों को सस्ते दर पर कृषि उपकरण उपलब्ध कराए जा सकें। इससे फसल की लागत घटेगी और उपज में वृद्धि संभव होगी।

सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं की मांगे भी आईं सामने

पोठिया प्रखंड की टिप्पीझाड़ी पंचायत की शक्ति ग्राम संगठन की महिलाओं ने सोलर लाइट लगाने, जन वितरण प्रणाली से मिलने वाले राशन की मात्रा बढ़ाने, तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (वृद्धा, विधवा, दिव्यांग पेंशन) की राशि में बढ़ोतरी की माँग की।

माला ग्राम संगठन की महिलाओं ने डोंक और खड़खड़ी नदी पर पुल निर्माण की आवश्यकता जताई, जिससे आवागमन में सहूलियत हो सके। वहीं पहाड़कट्टा पंचायत की महिलाओं ने स्थानीय स्तर पर उद्योग लगाने की मांग की, जिससे रोजगार के नए अवसर खुलें और पलायन रुके।

महिला संवाद: अब संवाद से नीति तक का जरिया

यह कार्यक्रम सिर्फ एक संवाद नहीं बल्कि नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी को सशक्त करने का एक कदम बन चुका है। संवाद के माध्यम से महिलाएं न केवल अपनी आवश्यकताओं को साझा कर रही हैं, बल्कि विकास की दिशा भी तय कर रही हैं। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है और वे स्थानीय नेतृत्व में अपनी भूमिका को लेकर अधिक सजग हो रही हैं।

गौर करे कि किशनगंज की महिलाएं अब ‘फायदे की पात्र’ नहीं, बल्कि ‘विकास की भागीदार’ बन रही हैं। महिला संवाद जैसे कार्यक्रम उन्हें आवाज़, मंच और निर्णय की ताकत दे रहे हैं — यही है ‘सशक्तिकरण’ का असली अर्थ।

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