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पल दो पल की है जिंदगी…चंदा सिंह

गुड्डु कुमार सिंह

पल दो पल की है जिंदगी
क्यों इसकी करू फिर बंदगी
आज बचपन,कल जवानी
परसो बुढ़ापा फिर खत्म कहानी
अंकगणित सी सुबह की जिंदगानी
बीजगणित सी शाम हो गई विरानी
जिंदगी का सफर है अजीब सफर
है कोई राही और न कोई रहगुजर
माना तेरा मंजिल दूर है तो क्या
है मुश्किल सा ये सफर तो क्या
है अनवरत यूंही चलते जाना
हमे तो है बस कदम आगे बढ़ाना
कुछ पाकर खोना है,कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो हमने यही जाना है
कुछ रीत पुरानी है हमको जो निभानी है
करती वो हरदम अपनी ही मनमानी है
जिंदगी इंतहा के दौर हमे दिखाई है
इसमें सफल होकर है हर पल मुस्कुराना
मैं पूछती हूं चंदा कैसी ये जिंदगानी है
तू हमारा इतना इंतहा क्यों लेती है
वो हंसकर मुझसे कहती है
डर मत यू तू पगली
मैं जिंदगी हूं मेरी अदा मस्तानी है
तू जीना सीख रही तुझे है जीना सिखानी।

लेखक बिहार पुलिस की सब इंस्पेक्टर चंदा सिंह है।

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