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14 मई को होगी अक्षय (अक्षय्य) तृतीया

जितेन्द्र कुमार सिन्हा- चैत्र महीने के बाद वैशाख महीना आता है और वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को ही अक्षय तृतीया कहते हैं । इस दिन को उत्तर भारत में लोग ‘आखा तीज’ भी कहते है । अक्षय तृतीया को साढे तीन मुहुूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त माना जाता है। ‘अक्षय तृतीया’ पर तिलतर्पण करना, उदकुंभदान (उदककुंभदान) करना, मृत्तिका पूजन तथा दान इत्यादि किया जाता है ।

पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ के अनुसार, ‘अक्षय तृतीया’ कृतयुग अथवा त्रेतायुग का आरंभ दिन है । अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए, इस दिन धार्मिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ता है। कहा जाता है कि इस तिथि को ही हयग्रीव अवतार, नरनारायण प्रकटीकरण तथा परशुराम अवतार हुए थे। इसलिए इस तिथि को ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें उच्च देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं और पृथ्वी पर सात्त्विकता की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ जाती है । इस तरह के काल महिमा के कारण इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कार्य कर कर आध्यात्मिक लाभ लेते हैं ।

अक्षय तृतीया पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं । इसलिए अक्षय तृतीया का महत्त्व और उसे मनाने का शास्त्रीय आधार माना जाता है।

पुराणकालीन संस्कृत ग्रंथ ‘मदनरत्न’ के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया का महत्त्व बताते हुए कहा है कि

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया ॥

उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ॥

अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता है। इसलिए मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । देवों तथा पितरों के लिए इस तिथि पर जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय; अर्थात अविनाशी होता है ।’

अक्षय तृतीया के दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है । इस कारण से भी यह संधिकाल ही हुआ । संधिकाल अर्थात मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है; परंतु अक्षय तृतीया के दिन उसका परिणाम 24 घंटे तक रहता है । इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।

*2. अक्षय तृतीया को विधी ऐसा लोग पवित्र जल से स्नान कर श्रीविष्णु पूजा, जप, होम, दान एवं पितृतर्पण करते हैं I

इससे आध्यात्मिक लाभ होता है। सुख-समृद्धि देनेवाले देवताओं के प्रति कृतज्ञता भाव रखकर उनकी उपासना करने से उन देवताओं कृपा का कभी भी क्षय नहीं होता है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन कृतज्ञता भाव से श्रीविष्णु सहित वैभवलक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए और पूरा दिन होम हवन एवं जप-तप करने में समय व्यतीत करना चाहिए। हिन्दू धर्म के अनुसार दान करना, प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। दान का अर्थ सत् के कार्य हेतु दान धर्म करना। दान देने से मनुष्य का पुण्यबल बढता है और पुण्य संचय सहित व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है।

 

इस वर्ष अक्षय तृतीया 14 मई, 2021 को पड़ रहा है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण सार्वजनिक रूप से इसे मनाया जाना सम्भव नही है। इसलिए लोगों को घर पर ही स्नान करना होगा और उस दिन उदकुंभ दान करना होगा। यह दान करने के लिए बाहर जाना संभव न होने के कारण संकल्प कर दान करना होगा। उसी प्रकार पितृतर्पण भी पितरों से प्रार्थना कर घर पर ही पितृतर्पण करना होगा ।

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