किशनगंज : स्तनपान में छिपा है नवजात का बेहतर स्वास्थ्य
1 से 7 अगस्त तक मनाया जाता है विश्व स्तनपान सप्ताह, विश्व स्तनपान सप्ताह पर मां को अपने शिशुओं को स्तनपान के लिए किया जाता है जागरूक

किशनगंज, 31 जुलाई (के.स.)। धर्मेंद्र सिंह, 1 से 7 अगस्त तक प्रत्येक वर्ष विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। जिसका मुख्य मकसद महिलाओं को उनके स्तनपान संबंधी अधिकार के प्रति जागरूकता प्रदान करना है। स्तनपान शिशु के जन्म के पश्चात एक स्वाभाविक क्रिया है। हालांकि स्तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में बच्चों में कुपोषण एवं संक्रमण से दस्त होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में स्तनपान संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। साथ ही साथ स्तनपान नवजात शिशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्व होते हैं जो नवजात शिशु के अंदर पनप रहे रोगाणु को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता है। इसको लेकर स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ सामुदायिक स्तर पर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्वास्थ्य केन्द्रों में होने वाले प्रसव के बाद नर्स एवं चिकित्सकों द्वारा एक घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान सुनिश्चित कराने पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है। साथ ही अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर माताओं को 6 माह तक केवल स्तनपान कराये जाने के विषय में परामर्श दिया जा रहा है। सिविल सर्जन डा. कौशल किशोर ने बताया कि साल 1991 में स्तनपान को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए वर्ल्ड अलायंस फॉर ब्रेस्ट फीडिंग एक्शन का गठन किया गया था। प्रारंभ में साल में एक दिन स्तनपान दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन यह मुद्दा चूंकि आम जनजीवन और बच्चों की सेहत जैसे मुद्दे से जुड़ा था, इसलिए इसकी उपयोगिता और जरूरत को देखते हुए इसे एक सप्ताह देते हुए इसे विश्व स्तनपान सप्ताह नाम दिया गया। 1992 में पहली बार विश्व स्तनपान सप्ताह का आयोजन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था स्तनपान प्रवृत्ति को बढ़ावा देना और दुनियाभर के बच्चों की सेहत को बेहतर बनाना। आज सौ से अधिक देश इस साप्ताहिक आयोजन से जुड़े हैं। सिविल सर्जन ने बताया कि स्तनपान सप्ताह के दौरान अधिक से अधिक लोगों को स्तनपान के फायदों से अवगत कराने पर ज़ोर दिया जायेगा। शिशु के लिए 1 घन्टे के भीतर माँ का पीला दूध एवं 6 माह तक केवल स्तनपान बहुत जरूरी होता है। यदि बच्चे को जन्म के पहले घंटे के अंदर माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाया जाये तो ऐसे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। स्तनपान शिशु को डायरिया एवं निमोनिया जैसे गंभीर रोगों से भी बचाव करता है, जिससे शिशु के बेहतर पोषण की बुनियाद तैयार होती है। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य के सभी जिला सदर अस्पताल सहित सभी प्रथम रेफरल इकाई को बोतल दूध मुक्त करने की कवायद भी की जा रही है। महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शबनम यास्मिन ने बताया कि बदलते परिवेश में अधिकांश महिलाएं अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने में थोड़ा परहेज करती हैं। उन्हें लगता है कि स्तनपान से शारीरिक कमजोरी होती और शारीरिक संरचना पर भी असर पड़ता है। इसलिए अधिकांश महिलाएं शिशुओं को बाहरी दूध देना शुरू कर देती हैं। परंतु विश्व स्तनपान सप्ताह पर कामकाजी महिलाओं को स्तनपान के लिए जागरूक किया जाता है। महिलाओं को उनके स्तनपान संबंधी अधिकार के प्रति जागरूकता प्रदान करने के साथ-साथ कार्यालयों में भी इस प्रकार का माहौल बनाना है कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को किसी प्रकार की असुविधा ना हो। वहीं स्तनपान कराने से माताओं को भी कई फायदे होते हैं। स्तनपान महिलाओं के स्तन व ओवरी के कैंसर की संभावना को कम करता है। साथ ही साथ मां को अपनी पुरानी शारीरिक संरचना वापस प्राप्त करने में सहायता मिलती है। महिला चिकित्सक डॉ उर्मिला कुमारी ने बताया कि मां का गाढ़ा पीला दूध बच्चों के लिए अति आवश्यक होता है, क्योंकि मां का दूध बच्चों के लिए अमृत के समान होता है। उन्होंने बताया कि मां का दूध बच्चों को डायरिया रोग होने से बचाता है। साथ ही साथ मां के दूध में मौजूद तत्व बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। मां का दूध पीने वाले बच्चे का तेजी से विकास होता है।