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किशनगंज : मनरेगा में फर्जीवाड़ा: कम्प्यूटर ऑपरेटर के नाम पर बना जॉब कार्ड, बिना काम के हुई मजदूरी का भुगतान

यह पहला मौका नहीं है जब दिघलबैंक में मनरेगा योजना में फर्जीवाड़ा सामने आया हो। इससे पहले तुलसिया पंचायत के बांसबाड़ी गांव में भी बिना कोई काम कराए मजदूरी भुगतान किए जाने का मामला प्रकाश में आया था

किशनगंज,21मई(के.स.)। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जैसी गरीबों को रोजगार देने वाली योजना में भ्रष्टाचार की पोल एक बार फिर खोल गई है। किशनगंज जिले के दिघलबैंक प्रखंड में इस योजना के तहत चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां मनरेगा कार्यालय में कार्यरत कम्प्यूटर ऑपरेटर दीपू कुमार दास के नाम से फर्जी जॉब कार्ड बना कर 3920 रुपये की मजदूरी भुगतान कर दी गई — वो भी बिना एक दिन काम किए।

मामले का खुलासा होते ही जिले में हड़कंप मच गया। डीआरडीए निर्देशक शशिम सौरभ मणि ने जांच के आदेश दे दिए हैं। वहीं, डैमेज कंट्रोल मोड में आए मनरेगा प्रखंड पदाधिकारी (पीओ) श्यामदेव ने आनन-फानन में ऑपरेटर से पूरी राशि वसूल कर विभागीय खाते में जमा करवा दी ताकि जांच से पहले ही मामला शांत किया जा सके।

कैसे हुआ फर्जी भुगतान?

मामला मंगूरा पंचायत के वार्ड नंबर 3 का है, जहां नारायण सिंह के खेत तक सड़क निर्माण और मिट्टी भराई का कार्य हुआ था। उसी कार्य में कम्प्यूटर ऑपरेटर दीपू कुमार दास के नाम पर मजदूरी दर्शाई गई, जबकि वह दिघलबैंक पंचायत निवासी है और उस अवधि में कार्यालय में कार्यरत था। यानि, उसी अवधि में उसे सरकारी मानदेय भी मिला और मनरेगा मजदूरी भी — एक साथ दोहरी कमाई।

सवालों के घेरे में अधिकारी

श्यामदेव, मनरेगा पीओ दिघलबैंक

इस घोटाले के तार केवल एक ऑपरेटर तक सीमित नहीं हैं। जानकारों की मानें तो बिना पीओ और अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत के यह फर्जीवाड़ा संभव नहीं था। सूत्रों का कहना है कि दीपू कुमार दास पीओ श्यामदेव के बेहद करीबी हैं, जिससे मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है।

पहले भी हो चुके हैं ऐसे मामले

यह पहला मौका नहीं है जब दिघलबैंक में मनरेगा योजना में फर्जीवाड़ा सामने आया हो। इससे पहले तुलसिया पंचायत के बांसबाड़ी गांव में भी बिना कोई काम कराए मजदूरी भुगतान किए जाने का मामला प्रकाश में आया था। यहां जॉब कार्ड धारियों ने खुद शपथ पत्र देकर बताया कि उन्होंने कोई काम नहीं किया, फिर भी उनके खातों में मजदूरी की राशि जमा की गई।

क्या बोले संबंधित अधिकारी?

डीआरडीए निर्देशक शशिम सौरभ मणि ने कहा, “कम्प्यूटर ऑपरेटर के नाम पर फर्जी भुगतान का मामला संज्ञान में आया है। जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।”

वहीं, आरोपी कम्प्यूटर ऑपरेटर दीपू कुमार दास ने खुद स्वीकार किया कि उसने कोई मजदूरी नहीं की, पर पैसे उसके खाते में आ गए जिन्हें उसने लौटा दिया।

गौर करे कि मनरेगा जैसी जन-कल्याणकारी योजना में इस तरह का फर्जीवाड़ा केवल सरकारी धन की बर्बादी नहीं, बल्कि उन असली मजदूरों के अधिकारों का हनन है, जो अपने श्रम के बदले मेहनताना पाने के हकदार हैं। ऐसे में सवाल उठता है — क्या केवल राशि लौटाने से अपराध खत्म हो जाता है? या फिर दोषियों पर सख्त कार्रवाई कर एक उदाहरण पेश किया जाएगा?

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