जद(यू0) ने पूछा – यदि तेलंगाना सरकार की जातीय गणना पारदर्शी है, तो अब तक आंकड़े सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए?

मुकेश कुमार/राहुल गांधी के पास जानकारी का घोर अभाव – जद(यू0)जनता दल (यू0) के प्रदेश कार्यालय, पटना में शुक्रवार को पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री राजीव रंजन प्रसाद, माननीय विधानपार्षद सह मुख्य प्रवक्ता श्री नीरज कुमार एवं प्रदेश प्रवक्ता श्री निहोरा प्रसाद यादव ने संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।
वक्ताओं ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी द्वारा तेलंगाना में जातीय गणना को बेहतर माॅडल बताने के दावे पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने तीखे सवाल उठाते हुए कहा कि यदि कांग्रेस शासित तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातीय गणना में पारदर्शिता बरती है, तो अब तक उसके डाटा और रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?
प्रवक्ताओं ने कहा कि माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने जातीय गणना से पूर्व ही 215 जातियों की सूची सार्वजनिक की और प्रत्येक जाति को यूनिक कोड आवंटित किया गया, जिससे डाटा की पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित हो सके। बिहार की जातीय गणना केवल जनसंख्या तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें यह भी दर्ज किया गया कि किस जाति के पास कितने लैपटाॅप, दोपहिया एवं चारपहिया वाहन, बैंक खाता, मोबाइल, टीवी और जमीन है। यह सर्वे सामाजिक और आर्थिक स्थिति की समग्र तस्वीर प्रस्तुत करता है।
इसके विपरीत, तेलंगाना सरकार की जातीय गणना में न तो इन पहलुओं को शामिल किया गया और न ही किसी अधिकृत जाति सूची या यूनिक कोडिंग का कोई प्रमाण सामने आया है। यह अंतर स्वयं सिद्ध करता है कि बिहार माॅडल कहीं अधिक वैज्ञानिक, व्यापक और पारदर्शी है।
उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 2014 में तेलंगाना में जो जातीय सर्वेक्षण हुआ था, उसमें ओबीसी वर्ग की जनसंख्या पहले की तुलना में 21 लाख कम दर्शाई गई, जबकि स्वर्ण जातियों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई। यह स्पष्ट रूप से तथ्यों को उलटने जैसा है, जो सर्वेक्षण की प्रक्रिया में भारी अनियमितता की ओर संकेत करता है।
साथ ही प्रवक्ताओं ने यह भी जोड़ा कि माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार वर्ष 1994 से ही जातीय जनगणना की मजबूत पैरवी करते आ रहे हैं। उन्होंने याद दिलाया कि 3 अगस्त 2010 को जब लोकसभा में जातीय जनगणना पर गंभीर बहस चल रही थी, तब श्री राहुल गांधी सदन से अनुपस्थित थे, जो उनके इस मुद्दे के प्रति उदासीन रवैये और संवेदनशीलता की कमी को उजागर करता है।