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किशनगंज : नवरात्रि के दूसरे दिन कि गई देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा अर्चना

इस दिन मां को चीनी या मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है। इसे अर्पित करने से भक्तों को लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है

किशनगंज, 04 अक्टूबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन की पूजा से जीवन की सभी समस्याएं समाप्त होती हैं। शुक्रवार को पंडित मनोज मिश्रा ने बताया कि मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। इसलिए, उन्हें तपस्विनी देवी कहा जाता है, जिन्हें कठोर तप और ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए जाना जाता है। पंडित मनोज मिश्रा ने बताया कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। नारद मुनि के कहने पर, उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए अनेक वर्षों तक कठिन तप किया। इस तप के कारण उन्हें ‘ब्रह्मचारिणी’ नाम से जाना जाता है। उनका तप ही हमें प्रेरित करता है कि सच्ची श्रद्धा और दृढ़ संकल्प से हम किसी भी चीज को हासिल कर सकते हैं। मां ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत सरल और आकर्षक है। वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल लिए हुए हैं। मां के पास विद्या और ज्ञान का प्रतीक माला और कमंडल होते हैं। उनका स्वभाव शांत और दयालु है और वे अपने भक्तों को शीघ्र प्रसन्न करती हैं। मां दुर्गा के साधक पंडित मनोज मिश्रा ने बताया कि इस दिन मां को चीनी या मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है। इसे अर्पित करने से भक्तों को लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी को पीले रंग के वस्त्र और फूल अर्पित करने का महत्व है, जो ज्ञान और उत्साह का प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने बताया कि पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर, गंगाजल छिड़ककर पूजा स्थल पर जाना चाहिए। पीले वस्त्र पहनकर और पीले रंग की वस्तुएं अर्पित करके भक्त मां को पंचामृत से स्नान कराते हैं। इसके बाद, देवी को रोली, कुमकुम और भोग अर्पित करते हैं। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराएं और रोली-कुमकुम चढ़ाएं। मां को पीले फल, फूल, दूध से बनी मिठाइयां और चीनी का भोग लगाते हैं। इसके साथ मंत्र का जाप करें और पूजा के अंत में पान-सुपारी, आरती और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। इसके बाद शाम को फिर से आरती की जाती है।

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