अजब-गजब

ये 7 है परंपराएं, जो सुनने में अजीब और हैरान करनेवाली लगती है…

मौत के बाद हर धर्म में इंसानी शरीर का अंतिम संस्कार करने को कहा गया है। लगभग सभी धर्म और संप्रदाय में इसकी विधि अलग- अलग है। मुख्यत: पूरी दुनिया में मौत के बाद शरीर को खत्म करने के दो तरीके हैं। पहला दफन करना दूसरा दाह संस्कार करना। इसके अलावा ममी बनाकर रखना, उबालकर कंकाल बनाना, गुफा में रखना, जल दाग देना, पशु-पक्षियों के लिए रख छोड़ना और शवों को खा जाने की भी परंपराएं हैं।आइए जानते हैं दुनिया के अलग-अलग धर्मों और समुदायों में अंतिम संस्कार के लिए अपनाए जाने वाले विचित्र तरीकों के बारे में….

शव को खा जाने की परंपरा…
सबसे विचित्र अंतिम संस्कार की परंपरा न्यू गिनी और ब्राजील के कुछ क्षेत्रों में है। इसके अलावा कुछ कुपोषित राष्ट्रों और जंगली क्षेत्रों में भी ये रिवाज है। इस रिवाज के अनुसार मृतक शरीर को खाया जाता है। इन क्षेत्रों में शव का दूसरी तरह से खात्मा करने की बजाए उन्हें खा लिया जाता है, क्योंकि इन लोगों को खाद्य सामग्री मुश्किल से मिलती है, हालांकि आजकल ये अमानवीय तरीका बहुत कम क्षेत्रों में रह गया है।

गुफा में रखना या पानी में बहा देना…
पहले इसराइल और इराकी सभ्यता में लोग अपने मृतकों को शहर के बाहर बनाई गई एक गुफा में रख छोड़ते थे। गुफा को बाहर से पत्थर से बंद कर दिया जाता था। ईसा को जब सूली पर से उतारा गया तो उन्हें मृत समझकर उनका शव गुफा में रख दिया गया था। इतिहासकार मानते हैं कि यहूदियों में सबसे पहले दफनाए जाने या गुफा में रखे जाने की शुरुआत हुई। इंका सभ्यता के लोगों ने भी बर्फ और पहाड़ी क्षेत्रों में समतल जगह की कमी के चलते गुफाओं और खोह में अपने मृतकों का अंतिम स्थल बनाया। दक्षिण अमेरिका की कई सभ्यताओं में अधिक जलराशि व नदियों के प्रचुर बहाव वाले क्षेत्रों में मृतकों को जल में प्रवाहित कर उनका अंतिम संस्कार किया जाता रहा है।

गला घोंटने की परंपरा…

फिजी के दक्षिण प्रशांत द्वीप पर प्राचीन भारत की सती प्रथा से मिलती-जुलती एक परंपरा है।यदि इस क्षेत्र के हिसाब से पारंपरिक अंतिम संस्कार किया जाए तो मरने वाले को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है।उसके साथ किसी एक प्रिय व्यक्ति को भी मरना पड़ता है और वहां इसके लिए गला घोटे जाने की परंपरा है।मान्यता है कि ऐसा करने से मरने वाले को तकलीफ नहीं होती है।

पारसी अंतिम संस्कार…
पारसियों में आज भी मृतकों को न तो दफनाया जाता है और न ही जलाया जाता है।पहले वे लोग शव को चील घर में रख देते थे ताकि उनका मृत परिजन गिद्धों व चीलों का भोजन बन जाए।आधुनिक युग में यह संभव नहीं और गिद्धों की संख्या भी तेजी से घट रही है।इसलिए उन्होंने नया उपाय ढूंढ लिया है।वे शव को कब्रिस्तान में रख देते हैं।जहां पर सौर ऊर्जा की विशालकाय प्लेटें लगी हैं, जिसके तेज से शव धीरे-धीरे जलकर भस्म हो जाता है।

जलाने की परंपरा…
जिन क्षेत्रों में सघन वन पाए जाते हैं। उन क्षेत्रों में मौत के बाद शवों को जलाने की परंपरा है। मुख्यत: हिंदू धर्म में शवों को जलाकर पंच तत्व में विलीन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जबकि कई अन्य धर्मों में शवों को जलाना एक गलत कृत्य माना गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार शव से तुरंत मोह छोड़कर उसे अग्रि के हवाले कर देना सबसे बेहतर है।

ताबूत को ऊंचे चट्टान पर लटकाने की परंपरा…
चीनी राजवंशों में शवों को ताबूत में रखकर ऊंची चट्टानों पर लटकाने की परंपरा थी। वे मानते थे कि इस तरह से ताबूत को लटकाने से मृत व्यक्ति स्वर्ग के करीब पहुंच जाता है और उनकी आत्माएं स्वतंत्रता से चट्टानों के चारों तरफ घूम सकती हैं।

व्रजयान बौद्ध संप्रदाय की परंपरा…
पूरी दुनिया में व्रजयान बौद्ध संप्रदाय के लोग बहुत अनोखे तरीके से अंतिम संस्कार करते हैं। इस क्रिया में पहले शव को शमशान ले जाते है। यह एक ऊंचाई वाले इलाके में होता है। वहां पर लामा ( बौद्ध भिक्षु ) धूप बत्ती जलाकर उस शव कि पूजा करता है। फिर एक शमशान का कर्मचारी उस शव के छोटे छोटे टुकड़े करता है।दूसरा कर्मचारी उन टुकड़ों को जौ के आटे के घोल में डुबोता है। फिर वो टुकड़े गिद्धों को खाने के लिए डाल दिए जाते है। जब गिद्ध सारा मांस खाकर चले जाते हैं। उसके बाद हड्डियों को इकठ्ठा करके उनका चुरा किया जाता है और उनको ही जौ के आट और याक के दूध से बने मक्खन के घोल में डुबो कर कौओ और बाज को खिला दिया जाता है।

रिपोर्ट-इंटरनेट से धर्मेन्द्र सिंह 

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