मीडिया के लिए नहीं होना चाहिए कोई दिशा-निर्देशः चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा
‘लोकतांत्रिक समाज में प्रेस की आजादी तमाम आजादी की जननी है।इसमें कोई शक नहीं कि ये संविधान में दिए गए सबसे मूल्यवान अधिकारों में से एक है।इसमें जानने का अधिकार और सूचित करने का अधिकार भी समाहित है’ यह कहना है देश के मुख्य न्यायधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा का।उन्होंने कहा कि मेरा अटूट विश्वास है कि (मीडिया के लिए) कोई दिशा-निर्देश नहीं होना चाहिए।उन्हें (मीडिया) को खुद पर नियंत्रण के लिए अपनी गाइडलाइंस बनानी चाहिए।प्रेस के निजी या समन्वित दिशा-निर्देश से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।किसी भी प्रकार से कुछ थोपना नहीं चाहिए लेकिन स्व-नियंत्रण होना चाहिए।इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के एक समारोह में अध्यक्ष के तौर पर अपने संबोधन के दौरान उन्होंने ये बता कही।इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य जस्टिस ए.एम खानविलकर भी मौजूद रहे।सीजेआई श्री मिश्रा ने अपने संबोधन के दौरान कहा,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्रीय महत्व के मामलों में आम जनता की राय निर्मित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।साथ ही कहा कि इससे जानकार नागरिक तैयार होते हैं।सीजेआई ने आगे कहा कि मीडिया को नागरिकों की भावना को भड़काने वाले मामलों की रिपोर्टिंग करते समय निष्पक्षता बनाए रखने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।वहीं,इस समारोह में मशहूर न्यायविद एन.आर.माधव मेनन ने ‘कोर्ट्स, मीडिया और फेयर ट्रायल गारंटी’ विषय पर व्याख्यान दिया।उन्होंने कहा कि मीडिया कवरेज तीन पायदानों पर किसी भी मामले के निष्पक्ष ट्रायल को प्रभावित करती है-ट्रायल से पहले, ट्रायल के दौरान और ट्रायल पूरा होने के बाद।उन्होंने इस तरफ इशारा किया कि गवाहों और आरोपी की पहचान का खुल जाना कई तरीके से ट्रायल को प्रभावित कर सकता है।मेनन ने कहा,मीडिया की तरफ से समानांतर ट्रायल चलाए जाने से जांच एजेंसी को गिरफ्तारी करने के लिए प्रेरित कर सकता है और गवाहों के पलट जाने का भी कारण बन सकता है।उन्होंने आगे जोड़ा कि ट्रायल खत्म हो जाने के बाद यदि मीडिया किसी जज की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाता है तो इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी खतरा पैदा होता है।
रिपोर्ट-न्यूज़ रिपोटर