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बिजनेश छोड़ आईपीएस बने आयुष नोपानी…

मन मे आत्मविश्वास, दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असम्भव नहीं रह जाता हैं और यह सिद्ध कर दिखाया है मूल रूप से पटना के एक प्रसिद्ध बिजनेस मैन एवं समाज सेवी कमल नोपानी के बेटे आयुष नोपानी ने।उन्होंने यूपीएससी 2018 की परीक्षा में 151वी रैंक लाकर पूरे बिहार का नाम रौशन किया हैं।आइये हम जानने की कोशिश करते है कि आयुष ने किस तरह की चुनौतियों का सामना कर इस मंजिल तक पहुंचने में सफल हुए हैं।बातचीत के क्रम में आयुष ने बताया कि उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पटना डीपीएस से हुई है एवं आईकम सन्त माइकल पटना से किया हैं और आगे की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय चले गए जहाँ इन्होंने हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन किया।आयुष कहते है कि जब वे संत माइकल में पढ़ते थे तो उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर 2010 में एक सामाजिक संस्था बनाया” अल्फाबेट”।उस समय सारे दोस्त अपने पॉकेट मनी से सौ-सौ रुपये इस संस्था को डोनेट करते थे।संस्था बनने की कहानी भी बड़ी रोचक हैं जब वे दोस्तो के साथ थे तो उन्हें पता चला कि दो दाई के बेटे को पैसा के अभाव में स्कूल से निकाल दिया गया है, और इन दोस्तो ने मिलकर तय किया कि अपनी जेब से ही कुछ बचाकर इन बच्चों को मदद किया जाए तो कम से कम दो चार की भला हो सकती हैं।आज के समय मे यह सोसायटी एक्ट से निबंधित हो गया है और मित्र कहीं भी रहे प्रति माह इस संस्थे मे अपना डोनेट कर देते है।बचपन से सामाजिक कार्यो में रुचि रखने वाले आयुष नोपानी में यह गुण अपने परिवार से ही विकसित हुआ है, इनके दादा जी गोवेर्धन नोपानी एवं पिताजी कमल नोपानी भी अपने सामाजिक कार्यों को लेकर हमेशा से चर्चा में रहे है एवं समाज में इनकी एक विशिष्ट पहचान है।दो भाई-बहनों में छोटे आयुष ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद अपनी पिताजी के बिजनेश सम्भालने पटना आ गए।2 साल लगातार मेहनत करने के बावजूद भी बिजनेश के प्रति उतनी रुचि नहीं जग पाई जितना कि वे समाजिक कार्यो के लिए चिंतित थे।उन्होंने फिर एक बार दिल्ली की तरफ रुख किया एवं सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए।उनका मानना था कि आज हम अपनी बदौलत दो चार बच्चे का भविष्य सुधार रहे है लेकिन हम सिविल सर्विसेज में सफल होते है तो सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा एवं शिक्षा के साथ साथ जन कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा चेहरों पर खुशियां ला सकते हैं।इसके लिए उन्होंने मेहनत करनी शूरू कर दिया।शुरुआती प्रयासों में उन्हें असफलता ही हाथ लगी, लेकिन वे अपनी लक्ष्य से डिगे नहीं बल्कि उनका सामना किया।ऑप्शनल सब्जेक्ट इतिहास था, जिसकी वह कोचिंग लेते थे बाकी सब्जेक्ट की सेल्फ स्टडी करते थे।चौथे प्रयास में उनकी मेहनत रंग लायी और वह 2018 में यूपीएससी की परीक्षा में 151 वा रैंक लेकर सफल रहे।आयुष कहते है कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए धैर्य होना बहुत जरूरी है।ये जरूरी नहीं है कि आप प्रथम प्रयास में सफल ही होंगे और न हीं श्योरिटी रहती है कि इस परीक्षा में सफल होंगे, जिस तरह परीक्षा देकर हमलोग लौटते है, उसके आधार पर मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता हैं।सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुटे छात्र पहले आत्म विश्वासी बने एवं लक्ष्य के प्रति सजग रहे।एक समय प्रबन्धन तैयार कर ले कि किन-किन समयो में मुझे क्या करना है एवं लगातर पिछले वर्षों के प्रश्नों के साथ प्रैक्टिस करते रहे।सफलता निश्चित मिल सकती है।

रिपोर्ट-श्रीधर पांडे

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