ज्योतिष/धर्म
अधोरियों की साधना का केंद्र–उज्जैन
अघोरी–ये शब्द सुनते ही एक सिहरन पैदा होती है।डर और कुतूहल का एक समिश्रित भाव,सदियों से ये एक रहस्य और समाज से दूर एक मानव समुदाय जो मानवीय गतिविधियों में बिलकुल विश्वास नहीं करता।पर विज्ञान और तंत्र ही उनकी पद्धति है।कौन हैं ये और क्या हैं इनकी मान्यताएं,बनारस,कामख्या असम,तारापुर और उज्जियनी इनके प्रमुख गढ़ हैं।यह तो गुरु के माध्यम से आत्मा का परमात्मा से मिलन की साधना है।यह धर्म,सम्प्रदाय,परम्परा या पंथ नहीं है।यह मनुष्य की एक मानसिक स्थिति की अवस्था है जिसे प्राप्त कर मनुष्य मृत्यु लोक के माया के कुचक्र से मुक्त होकर परमात्मा को स्वयं में समाहित कर लेता है।अघोर का अर्थ है अनघोर।अर्थात जो घोर, कठिन,जटिल न होकर सभी के लिए सहज,सरल,मधुर और सुगम हो।अघोरेश्वर बाबा भगवान राम ने कहा है जो अघ को दूर कर दे वह अघोर है।अघ का अर्थ है पाप।अतःअघोर व्यक्ति को पाप से मुक्त कर पवित्र बना देता है।मनुष्य के इस
अवस्था में पहुंचने पर विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भाषाओं में अनेक नामों से सुशोभित या सम्बोधित किया जाता है जैसे-औघड़, अवधूत,कापालिक,औलिया,मलंग इत्यादि।अघोर साधना करने और समझने की प्रक्रिया है न कि इसे तर्क से ग्रहण किया जा सकता है।अघोरेश्वर साधक संशय से दूर रहते हैं।वह संसार के सभी प्राणियों से परस्पर स्नेह रखते हैं।इनका एकमात्र लक्ष्य होता है सर्वे भवन्तु सुखिन के माध्यम से पराशक्ति परमात्मा से मिलन।इनकी कोई भेषभूषा नहीं होती और न ही कोई जातिधर्म।साधना पथ पर जो भी मिला उसे ग्रहण कर लिया।अघोरी घृणित से घृणित कार्य करने वाले और चरित्र वाले को स्नेह पूर्वक अपने पास घेर कर रखते हैं ताकि वह समाज को इससे बचा सकें,अघोर साधकों के रहन-सहन,खान-पान के प्रति सामान्य मनुष्य के मन की जो सोच है,वह मात्र एक भ्रम है।अघोरी साधक ऐसा इसलिए करते है ताकि वह संसार में ही सांसारिक मोह माया से दूर रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।अघोर साधना के लिए ब्रह्मचर्य एवं वाणी पर नियत्रंण आवश्यक है।भगवान शिव ही अघोर साधना के प्रथम गुरू है।पिड़ितों के पीड़ा पर रूदन करनेवाले और अत्याचारियों को अपने रौद्र रूप से रूलाने के कारण ही शिव‘रूद्र’कहलाये।यह रूद्र रूप
रूप अघोर का है।लिंगपुराण के अनुसार शिव के पांच रूपों में एक अघोर का स्वरूप है।ब्रह्माण्ड को पाप से मुक्त करने के लिए शिव ने यह रूप धारण किया।परन्तु हम जो स्वरुप देखते हैं वह एक अलग हो चुकी नकारात्मक साधना में लिप्त तांत्रिकों का होता है।यहाँ पर सच्चे अघोरियों और नकली औघड़ों में फर्क करना चुनौती है।अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं-श्मशान साधना,शिव साधना,शव साधना।ऐसी साधनाएँ अक्सर तारापीठ के श्मशान,कामाख्या पीठ के श्मशान,त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है।अघोरपन्थ की तीन शाखाएँ प्रसिद्ध हैं-औघड़,सरभंगी,घुरे।इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए,जो किनाराम बाबा के गुरु थे।कुछ लोग इस पन्थ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं।अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु
माना जाता है।अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं।अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा,विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया।अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है।अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं।इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़,चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं।इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।अघोर संप्रदाय के साधक मृतक के मांस के भक्षण के लिए भी जाने जाते हैं।मृतक का मांस जहां एक ओर सामान्य जनता में अस्पृश्य होता है।वहीं इसे अघोर एक प्राकृतिक पदार्थ के रूप में देखते हैं और इसे उदरस्थ कर एक प्राकृतिक चक्र
को संतुलित करने का कार्य करते हैं।मृत मांस भक्षण के पीछे उनकी समदर्शी दृष्टि विकसित करने की भावना भी काम करती है।कुछ प्रमाणों के अनुसार अघोर साधक मृत मांस से शुद्ध शाकाहारी मिठाइयां बनाने की क्षमता भी रखते हैं।लोक मानस में अघोर संप्रदाय के बारे में अनेक भ्रांतिया और रहस्य कथाएं भी प्रचलित हैं।अघोर विज्ञान में इन सब भ्रांतियों को खारिज कर के इन क्रियाओं और विश्वासों को विशुद्ध विज्ञान के रूप में तार्किक ढ़ंग से प्रतिष्ठित किया गया है।महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।यह मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में है।स्वयंभू,भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है।इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है।यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं।अघोरी हमेशा ही आम लोगों के लिए एक रहस्यमयी व्यक्तित्व होते है,वैसे तो उनकी उत्पति की कोई व्याख्या हमारे पास नही है,लेकिन भगवन शिव का एक रूप अघोरी भी है तब से उनके अनुयायी इस रूप में उनके स्वरुप में रहते है,उनकी जीवन चर्या और दिनचर्या बेहद ही अजीब और रहस्यमयी होती है,जो की उनके नाम से ही छलकती है।हालाँकि उन्हें कुम्भ
के मेले और आम लोगों में देख कर हमें वो भोले भले लगते है,हालाँकि उनकी वेशभूषा से बच्चे हो या बड़े सब डर जाते है लेकिन वो स्वाभाव से बेहद सरल होते है।वो लोग झुण्ड में रहते है बावजूद इसके उनमे आपस में कभी भी किसी तरह का द्वेष भाव या झगड़ा भारत के इतिहास में देखा और सुना नही गया है।अघोरियों की दुनिया ही नहीं,उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं।अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे।हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं,जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं।साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे,जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं।
अघोरी मूलत:-तीन तरह की साधनाएं करते हैं।शिव साधना,शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है।बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं।इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है।ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है।श्मशान साधना,जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है।इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है।उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है।यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे,सांप काटने से मरे हुए लोगों,आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है।पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं।अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं।ये बातें पढऩे-सुनने में भले ही अजीब लगे,लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता।उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं,अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते।गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं।अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं,जैसे वो बहुत गुस्सा हो,लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।
अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं।जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है।जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं।उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं,जो उनकी सेवा करते हैं।अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं,वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।
अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों को खाते हैं।मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक।अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है।इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं।श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं।इसीलिए साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं।
अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए होते हैं।वे अपने आप में मस्त रहने वाले,अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं।वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते।ना ही ज्यादा बातें करते हैं।वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।
आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं।ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है।ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल) कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान,त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।ये सभी बातें विभिन्न जगहों से इकट्ठा की गई हैं, लिखी हुई हैं,इनका प्रमाण और सत्यापन कभी नहीं हुआ।गीता में प्रभु श्रीकृष्ण एक बात साफ़ कहते हैं,जो मुझे भजेगा मुझे प्राप्त होगा,जो पत्थर,पहाड़,वृक्ष,यक्ष,किन्नर,प्रेत आदि को भजेगा वो उन्हें ही प्राप्त होगा मुझे नहीं।
रिपोर्ट-केवल सच