ब्रेकिंग न्यूज़राज्य

*राष्ट्र के महान क्रांतिकारी लाला हरदयाल सिंह माथुर की स्मृति में सम्पन्न हुआ व्याख्यानमाला।…..*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा-आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस) ने दिल्ली स्थित फॉरेन करेस्पोंडेंट क्लब ऑफ साउथ एशिया परिसर में राष्ट्र के महान क्रांतिकारी लाला हरदयाल सिंह माथुर की स्मृति में व्याख्यानमाला का आयोजन किया।

व्याख्यानमाला में जीकेसी ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि लाला हरदयाल जी का जन्म 14 अक्टूबर,1884 को दिल्ली में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम लाला हर दयाल सिंह माथुर है। उनके पिता गौरीदयाल माथुर जो जिला अदालत में रीडर के पद पर कार्यरत थे। उनकी माता भोली रानी थी।

लाला जी कैम्ब्रिज मिशन स्कूल में स्कूली शिक्षा और दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से संस्कृत में स्नातक और पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1905 में, उन्होंने संस्कृत में अपने उच्च अध्ययन के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की दो छात्रवृत्तियां भी प्राप्त की। वर्ष 1907 में कैसबर्ड प्रदर्शनीकर्ता, सेंट जॉन्स कॉलेज का एक पुरस्कार भी जीता, जहां वे अध्ययन कर रहे थे। अंततः वे 1908 में भारत लौट आए।

उन्होने कहा कि लाला हरदयाल जी ने दिल्ली और लाहौर में उच्च शिक्षा प्राप्त की। देशभक्ति की भावना उनके अन्दर छात्र जीवन से ही भरी थी। मास्टर अमीर चन्द, भाई बाल मुकुन्द आदि के साथ उन्होंने दिल्ली में भी युवकों के एक दल का गठन किया था। लाहौर में उनके दल में लाला लाजपत राय जैसे युवक सम्मिलित थे। एम. ए. की परीक्षा में सम्मानपूर्ण स्थान पाने के कारण उन्हें पंजाब सरकार की छात्रवृत्ति मिली और वे अध्ययन के लिए लंदन चले गए।

ग्लोबल अध्यक्ष ने कहा कि लंदन में लाला हरदयाल जी भाई परमानन्द, श्याम कृष्ण वर्मा आदि के सम्पर्क में आए। उन्हें अंग्रेज़ सरकार की छात्रवृत्ति पर शिक्षा प्राप्त करना स्वीकार नहीं था। उन्होंने श्याम कृष्ण वर्मा के सहयोग से ‘पॉलिटिकल मिशनरी’ नाम की एक संस्था बनाई। इसके द्वारा भारतीय विद्यार्थियों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का प्रयत्न करते रहे। दो वर्ष उन्होंने लंदन के सेंट जोंस कॉलेज में बिताए और फिर भारत वापस आ गए।
लाहौर में वह ‘पंजाब’ नामक अंग्रेज़ी पत्र के सम्पादक बन गए। उनका प्रभाव बढ़ता देखकर सरकारी हल्कों में जब उनकी गिरफ़्तारी की चर्चा होने लगी तो लाला लाजपत राय ने आग्रह करके उन्हें विदेश भेज दिया। वे पेरिस पहुँचे। श्याम कृष्णा वर्मा और भीकाजी कामा वहाँ पहले से ही थे। लाला हरदयाल ने वहाँ जाकर ‘वन्दे मातरम्’ और ‘तलवार’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। 1910 ई. में हरदयाल सेनफ़्राँसिस्को, अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्होंने भारत से गए मज़दूरों को संगठित किया। ‘ग़दर’ नामक पत्र निकाला।

उन्होंने कहा कि गदर पार्टी की स्थापना 25 जून, 1913 में की गई थी। पार्टी का जन्म अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के ‘एस्टोरिया’ में अंग्रेजी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से हुआ। ग़दर नामक पत्र के आधार पर ही पार्टी का नाम भी ‘ग़दर पार्टी’ रखा गया था। ‘ग़दर’ पत्र ने संसार का ध्यान भारत में अंग्रेज़ों के द्वारा किए जा रहे अत्याचार की ओर दिलाया। नई पार्टी की कनाडा, चीन, जापान आदि में शाखाएँ खोली गईं। लाला हरदयाल इसके महासचिव थे।

उक्त अवसर पर प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन ने कहा कि प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर लाला हरदयाल ने भारत में सशस्त्र क्रान्ति को प्रोत्साहित करने के लिए क़दम उठाए। जून, 1915 ई. में जर्मनी से दो जहाज़ों में भरकर बन्दूके बंगाल भेजी गईं, परन्तु मुखबिरों के सूचना पर दोनों जहाज जब्त कर लिए गए।

लीगल सेल के अध्यक्ष अवनीश श्रीवास्तव ने कहा कि हरदयाल ने भारत का पक्ष प्रचार करने के लिए स्विट्ज़रलैण्ड, तुर्की आदि देशों की भी यात्रा की। जर्मनी में उन्हें कुछ समय तक नज़रबन्द कर लिया गया था। वहाँ से वे स्वीडन चले गए, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के 15 वर्ष बिताए।

एलएनजेपी महासचिव अभय सिन्हा ने कहा कि 1987 में, भारत के डाक विभाग ने “भारत की आजादी के लिए संघर्ष” की श्रृंखला के भीतर उनके सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।

उक्त अवसर पर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील कुमार ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि लाला हरदयाल की मृत्यु 4 मार्च, 1939 को अमेरिका के फिलाडेलफिया में हुआ।

उक्त अवसर पर नवीन श्रीवास्तव, दीपांशु श्रीवास्तव, हीरा लाल कर्ण, शुभ्रांशु श्रीवास्तव, राजीव कांत, अजय अमृतराज, विकास चंद्रा ,राकेश अम्बष्ठा ,रजनी श्रीवास्तव, बबली सिन्हा, विपीन श्रीवास्तव, प्रजेश शंकर, अमित किशोर, सर्वेश श्रीवास्तव आदि ने भी अपने – विचार रखें।

———

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button