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Mission 2022 in UP: क्या यूपी की सियासी जंग में ब्राह्मण बन गया है जीत का अस्त्र

उमेश कुमार कशेरा Mission 2022 in UP: यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए सियासी जंग शुरू हो गई है और अब सभी सियासी दलों के साथ ही ब्राह्मण समाज का तिरस्कार करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दूसरी बार समुदाय पर डोरे डालते हुए नजर आ रही है।

Mission 2022 in UP: उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले सभी सियासी दलों ने जातिगत समीकरण बनाना शुरू कर दिया है। राज्य में जहां कभी ब्राह्मण समाज (brahmin society) का तिरस्कार करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ब्राह्मणों को साधने के लिए मैदान में उतर गई है तो इस मामले में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं हैं। वहीं भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है। राज्य में बीजेपी के विरोध राज्य में पिछले एक-दो साल में ऐसा माहौल बना है कि योगी सरकार से ब्राह्मण नाराज हैं। काफी हद तक ये बात भी ठीक है। वहीं लोग इस बात की भी चर्चा करते हैं कि योगी सरकार में केवल ठाकुरों का वर्चस्व हैं।

असल में चुनावी साल को देखते हुए सभी ब्राह्मणों को साधना चाहते हैं और अगर पिछले बीस साल का रिकार्ड देखा जाए तो ब्राह्मण जिस तरह गया, जीत उस सियासी दल की हुई है। वहीं इससे पहले अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने परशुराम की मूर्ति स्थापित करने के नाम पर ब्राह्मण समाज को लुभाने की कोशिश की। अब मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलन की घोषणा की है। सतीश चंद्र मिश्र जिला-जिला सम्मेलन करेंगे। बीजेपी फिलहाल अलग से कुछ नहीं कर रही है। वह चुपचाप अपना काम कर रही है।

वहीं भाजपा कांग्रेस के ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद (Brahmin leader Jitin Prasad) को पार्टी में लाई है। वहीं पिछले दिनों कैबिनेट विस्तार में केंद्र में एक ब्राह्मण को मंत्री भी बनाया गया। प्रदेश की आला अफसरशाही (top bureaucracy)  की कमान इस समुदाय के अफसरों के हाथ में है। तो आखिर ऐसा क्या है कि पार्टियां चुनाव से पहले ब्राह्मण समुदाय की ओर ऐसी लालसा दिखा रही हैं। यहां तक कि मतदाताओं की संख्या भी पर्याप्त नहीं है कि इस समुदाय के वोट की मदद से एक उम्मीदवार को जीता जा सके ।

क्या है ब्राह्मण समीकरण

प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 6-10 फीसद के बीच मानी जाती है। इतनी संख्या वाली कई जातियां हैं। फिर ब्राह्मण समाज को लेकर इतना हंगामा क्यों हो रहा है? कारण अन्य हैं। आमतौर पर माना जाता है कि ब्राह्मण समाज सर्वसम्मति से वोट देता है। यानी जिसके लिए वह वोट डालते हैं, उसे पूरा मिल जाएगा, उस पार्टी को 6-10 फीसद वोटों का फायदा मिलता है। अब अगर 22 फीसदी कोर वोट वाली बसपा को 10 फीसदी ज्यादा वोट मिलते हैं तो फिर उसकी राह आसान हो जाएगी। इस बार मायावती को लगता है कि ऐसा करके वह 2007 का इतिहास दोहराने में सफल रहेंगी। अखिलेश यादव के पास भी करीब 22 फीसदी का कोर वोट है। मायावती की तरह वह भी इस समुदाय के वोटों में अपनी जीत का रूप देने के प्रयास में हैं।

भाजपा के साथ जुड़े रहे हैं ब्राह्मण वोटर

भारतीय जनता पार्टी परंपरागत रूप से ब्राह्मण समाज के वोटों की हकदार रही है। उसे अपने वोट बैंक इनको जोडऩा नहीं बल्कि उसे बचाना है। यानी उन्होंने पार्टी से नाता नहीं तोड़ा। भाजपा को भी इस वोटबैंक की बहुत जरूरत है। पिछड़ों और दलितों को लामबंद करने वाली भाजपा ब्राह्मणों को हर कीमत पर जोड़े रखना चाहेगी। यही कारण है कि योगी मंत्रिमंडल में 9 मंत्री ब्राह्मण समुदाय से हैं। मोदी कैबिनेट में यूपी से दो मंत्री ब्राह्मण समुदाय से हैं। रीता जोशी, सत्यदेव पचौरी और अर्चना पांडे इससे पहले मंत्रिमंडल में रह चुकी हैं।

ये खासियत है ब्राह्मण वोटबैंक की

असल में यूपी ब्राह्मणों की संख्या पिछड़ों और दलितों की तुलना में कम तो है। लेकिन पिछले चार विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण यूपी में जीत का फैक्टर बना है। यानी जिस तरह ब्राह्मण गया है। सरकार उस सियासी दल की बनी है। ब्राह्मणों के बल पर सत्ता का स्वाद चख चुके सियासी दल अब किसी भी हाल में इस वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते हैं। वहीं यूपी में ब्राह्मण ओपिनियन मेकर है। वह राज्य में अपने वोट के साथ ही लोगों को वोट देते के लिए प्रेरित करता है।  फिलहाल  2022 के चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती 2007 को दोहराने में कामयाब होंगी या नहीं? यह भी साफ हो जाएगा कि ब्राह्मण समाज वाकई भाजपा सरकार से नाराज है या फिर यह सिर्फ हवा बनाई गई थी।

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