किशनगंज : नवरात्रि के तीसरे दिन महाकाल मंदिर में हुई मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
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अगर आपकी कुंडली में मंगल कमजोर है या मंगल दोष है तो आज की पूजा विशेष परिणाम दे सकती है: गुरु साकेत
किशनगंज, 11 अप्रैल (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। इस दिन मां के ‘चंद्रघंटा’ स्वरूप की उपासना की जाती है। इनके सर पर घंटे के आकार का चन्द्रमा है। इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है। मां चंद्रघंटा तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं। ज्योतिष में इनका सम्बन्ध मंगल नामक ग्रह से होता है। गुरुवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां चंद्रघंटा की पूजा लाल वस्त्र धारण करके करना श्रेष्ठ होता है। मां को लाल पुष्प, रक्त चन्दन और लाल चुनरी समर्पित करना उत्तम होता है। इनकी पूजा से मणिपुर चक्र मजबूत होता है। इसलिए इस दिन की पूजा से मणिपुर चक्र मजबूत होता है और भय का नाश होता है। अगर इस दिन की पूजा से कुछ अद्भुत सिद्धियों जैसी अनुभूति होती है तो उस पर ध्यान न देकर आगे साधना करते रहनी चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि अगर आपकी कुंडली में मंगल कमजोर है या मंगल दोष है तो आज की पूजा विशेष परिणाम दे सकती है। आज की पूजा लाल रंग के वस्त्र धारण करके करें। मां को लाल फूल, ताम्बे का सिक्का या ताम्बे की वस्तु और हलवा या मेवे का भोग लगाएं। पहले मां के मंत्रों का जाप करें। फिर मंगल के मूल मंत्र “ॐ अं अंगारकाय नमः” का जाप करें। मां को अर्पित किए गए ताम्बे के सिक्के को अपने पास रख लें। चाहें तो इस सिक्के में छेद करवाकर लाल धागे में गले में धारण कर लें। गुरु साकेत ने बताया कि मां चंद्रघण्टा का रूप अलौकिक तेजमयी और ममतामयी माना गया है। मां के इस रूप की पूजा करने से आपको जीवन के हर क्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्त होती है। नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर मां की पूजा करनी चाहिए। पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से मां की कृपा आपको प्राप्त होती है। मां चंद्रघण्टा का भोग लगाने के लिए केसर की खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ लौंग इलाइची, पंचमेवा और दूध ने बनी अन्य मिठाइयों का प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही मां के भोग में मिसरी जरूर रखें और पेड़े का भोग भी लगा सकते हैं।