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पुलिस चाह जाये तो क्या शाराब बिकेगा, मीड़िया से अधिकारियों का यह सवाल अपने आप में यक्षप्रश्न हैं।….?

पुलिस के प्रति प्रखंड स्तरीय अधिकारियों का दर्दभरी दास्तान व ब्यथा का हकियत, केवल सच के प्रताड़ल में शत प्रतिशत सही है और मामले की उचस्तरीय निष्पक्ष जाँच भी आवश्यक है।

अनिल कुमार मिश्र-महेश शर्मा, रेणु कुमारी :- बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के कुटूम्बा प्रखंड़ में पुलिस की मनमानी एवं कर्तब्यहिनता से तंग आ चुके प्रखंड स्तरीय प्रशासनिक अधिकारी ने प्रतिउतर में मीड़िया को कहा आपलोग सब कुछ जानते हैं और आपलोगों से कुछ भी छुपा हुआ नहीं है आप ही बताये हमलोग आखिर क्या करें।

प्रेस में नाम नहीं छापने के शर्त पर प्रखंड़ – स्तरीय अधिकारियों ने प्रतिउतर में कहा, पुलिस चाह जाए तो क्या शराब बिकेगा। नहीं तो फिर इन्हें कौन सुधारे। विकास कार्यों में बाधा पुलिस के संवेदनहिनता और शराब तथा शराबी है और मवालियों का छूट थानेदार द्वारा है। आप हम सभी जानते है अच्छा हो या बुरा सभी को भय पुलिस से ही है और जब पुलिस ही गलत कार्य में संलिप्त हो जाये तो हमलोग क्या करे। यह सुधार निचले स्तर से संभव नहीं है। अधिकारियों ने केवल सच टीम से कहा बिहार में शराब बंदी कानून पुर्णतः लागू है परन्तू शराब को बंद कराने, शराबियों और शरारती तत्वों, शराब की आड़ में दवंगो की आतंक को रोकने तथा इससे आम अवाम को निजात दिलाने की पहल शून्य है। लोग आते है, मौखिक कहते है और समाधान भी चाहते है जो संभव नहीं है। शरीय वरीय धिकारियों के आदेश जब थानास्तर पर लंबित रह जाता है तो हम लोग की बात ही छोड़े

अतिक्रमण के विरूद्ध अम्बा थाना को प्राप्त अनेको आदेश की अनदेखी की ओर केवल सच की टीम को ध्यान आकृष्ट कराते हुए अधिकारियों नें कहा अम्बा थाना के आस -पास सरेआम शराब बिक रहा है कहाँ बुद्धिजीवी हैं।

कुटूम्बा प्रखंड़ मुख्यालय का मुख्य चौक अम्बा से महज 200 गज की दुरी तक चारो तरफ सड़क को अतिक्रमण से मुक्त रखने का अनेको प्रशासनिक आदेश अम्बा थाना को प्राप्त है इसके बाबजूद भी रिश्वत लेकर सड़को पर दुकान, ठेला और टेम्पू को लगवा दिया जाता है। अतिक्रमण हटाने के लिए जब हमलोग सड़क पर उतरे है तो सैंकड़ो फोन आता है ,अधिकारियों पर झुठे मुकदमा लादा जाता है। सस्पेंड अधिकारी होता है, बली का बकरा नीचले स्तर के अधिकारी होते हैं, उस वक्त कहाँ रहते हैं बुद्धजीवी। कहीं वैसे जुझारू ईमानदार अधिकारी आ जायेंगे तो अम्बा बजार का भी अतिक्रमण मुक्त हो जायेगा।

अधिकारियों बातों में केवल सच के पत्रकारों का टीम उलझ पड़े ,आखिर हकीकत क्या है की पड़ताल में केवल सच समाचार के टीम को अधिकारियों की दर्दभरी दास्तान की हकियत शत प्रतिशत सत्य दिखाई दे रहा है तो फिर आलाधिकारी मूकदर्शक क्यों हैं ? क्या उद्देश्य से भटक चुके थानाध्यक्ष को कहीं जनप्रतिनिधियों के बदौलत इनके पिछे राज्य नेताओं का हाँथ तो नहीं है। फिर भी स्वाल उठता है रिश्वत कम पड़ने पर जब थानेदार जिला स्तरीय नेताओं के भी बात को नहीं मानते है और अनदेखी कर देते है तो फिर इनके पिछे किसका हाँथ है। क्या नीतीश कुमार के सुशासन ब्यवस्था का यही हकियत है कि बेलगाम थानाध्यक्षों के समाने जिलास्तरीय अधिकारी का आदेश उनके इच्छा शक्ति पर निरभर करेंगे।

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