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अभिनव बिंद्रा की विरासत ने कर्नल की बेटी अग्रीमा कंवर को सफलता पाने के लिए प्रेरित किया।…

त्रिलोकी नाथ प्रसाद। जब बीजिंग ओलंपिक 2008 में अभिनव बिंद्रा ने भारत के लिए निशानेबाजी का स्वर्ण पदक जीता था, तब अग्रीमा कंवर सिर्फ 18 महीने की थीं। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हुईं और उनकी उपलब्धियों के बारे में जाना, तो उन्होंने बिंद्रा को अपना आदर्श मान लिया। और पिछले सप्ताह, अग्रीमा ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 (बिहार) में महिलाओं की स्कीट शूटिंग स्पर्धा में रजत पदक जीतकर हिमाचल प्रदेश के लिए पहला पदक जीतने का गौरव हासिल किया।

अग्रीमा ने कहा, “जब मैंने शूटिंग शुरू की थी, तब तक मैं अभिनव बिंद्रा को ज्यादा नहीं जानती थी। लेकिन जब मैंने कुछ साल पहले पिस्टल शूटिंग शुरू की, तो मेरे पिता ( जो भारतीय सेना में कर्नल हैं), ने मुझे बिंद्रा सर की आत्मकथा ‘अ शॉट एट हिस्ट्री’ भेंट की। उन्होंने कहा था कि मुझे यह किताब बहुत कुछ सिखाएगी—और वह बिल्कुल सही थे।”

अग्रीमा को विशेष रूप से एथेंस 2004 ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा द्वारा पदक चूकने की कहानी ने प्रभावित किया। अग्रीमा ने कहा, “यह पढ़ना कि उन्होंने उस असफलता को कैसे संभाला। उन्होंने धैर्य और परिपूर्णता के लिए किस तरह अभ्यास किया, और कैसे उन्होंने वापसी की—इसने मुझ पर गहरा असर डाला। मैंने समझा कि असफलताएं इस सफर का हिस्सा हैं।”

अग्रीमा का अभिनव बिंद्रा से जुड़ाव सिर्फ प्रशंसा तक सीमित नहीं है। वह कहती हैं, “जब भी शूटिंग रेंज में कोई दिन अच्छा नहीं जाता, तो मैं उनकी किताब दोबारा पढ़ती हूं। कुछ पंक्तियाँ ही मुझे याद दिला देती हैं कि हर दिन परफेक्ट होना जरूरी नहीं। हर दिन एक नया मौका होता है। इस सोच ने मेरी शूटिंग और सोच दोनों को बदल दिया है।”

अग्रीमा आगे कहती हैं, “मेरे पिता सेना में हैं, इसलिए मुझे बचपन से ही बंदूकें आकर्षित करती थीं। पिस्टल शूटिंग स्थिर और इनडोर होती है, जबकि स्कीट शूटिंग बाहरी परिस्थितियों—जैसे हवा, बारिश, और अन्य अनिश्चितताओं—से प्रभावित होती है, जो इसे और चुनौतीपूर्ण बनाती है। मुझे वही पसंद है।” उन्हें रियो और टोक्यो ओलंपियन मैराज अहमद खान से प्रशिक्षण मिला है।

 

अग्रीमा के माता-पिता हिमाचल प्रदेश के ऊना से हैं लेकिन उनका जन्म जालंधर में हुआ। फिर भी वह खेलो इंडिया यूथ गेम्स के दो संस्करणों में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वह कहती हैं, “मैं हमेशा हिमाचल से जुड़ाव महसूस करती हूं। मैंने देखा कि हमारे राज्य का इन आयोजनों में ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं होता, तो मुझे लगा कि अब अपने मूल को मंच पर लाने का समय है।”

पिछले साल चेन्नई में हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अग्रीमा पांचवें स्थान पर रही थीं। लेकिन इस बार उन्होंने दबाव में शांत रहते हुए और सटीकता के साथ वह पदक हासिल किया जिसका वह सपना देख रही थीं। “इस पदक ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। अब मुझे पता है कि अगर मैं एक बार कर सकती हूं, तो फिर से कर सकती हूं। मेरे पिता हमेशा कहते हैं – एक शॉट पर ध्यान दो। ज्यादा मत सोचो। अगली कोशिश पर फोकस करो। यही तो बिंद्रा सर ने भी किया था!”

अग्रीमा की अगली कोशिश जूनियर नेशनल टीम में जगह बनाने और आगामी वर्ल्ड कप प्रतियोगिताओं में पदक जीतने की है। लेकिन वह एक और सपना भी देखती हैं—अभिनव बिंद्रा से मिलने का।

अग्रीमा ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, “शायद मैं उन्हें देखकर कुछ बोल भी न पाऊं, लेकिन मैं उन्हें धन्यवाद जरूर कहूंगी। उनकी कहानी ने मुझे चलते रहने की प्रेरणा दी है। और मुझे पता है कि उन्होंने मेरे जैसे न जाने कितने खिलाड़ियों को प्रेरित किया है।”

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