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किशनगंज : जिले में जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जिलास्तरीय अनुश्रवण समिति की बैठक आयोजित।

जैव कचरे का ससमय निस्तारण करना अतिआवशयक।किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, जैव कचरे का ससमय व उचित प्रकार से निस्तारण करना अतिआवश्यक है। विदित हो कि अस्पताल व जांच केंद्र से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट को आम लोगों की सेहत के लिए खतरनाक माना जाता है। दरअसल, जैव चिकित्सा अपशिष्ट में मानव या पशु के शारीरिक अपशिष्ट, उपचार उपकरण जैसे. सीरिंज (सुई) तथा उपचार और अनुसंधान की प्रक्रिया में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रयुक्त अन्य सामग्री सम्मिलित हैं। ये अपशिष्ट अस्पतालों, नर्सिंग होम, पैथोलॉजी ;विकृति विज्ञान प्रयोगशालाओं व रक्त बैंक आदि में उपचार या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं। इसको लेकर जीव चिकित्सा अपशिष्ट बायो मेडिकल वेस्ट जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 में पारित किए गए नियम में प्रावधानों के आलोक में जिलास्तरीय अनुश्रवण समिति की समीक्षा बैठक समाहरणालय स्थित सभाकक्ष में हुई। जिसकी अध्यक्षता डीएम श्रीकांत शास्त्री ने की। जिले में स्थित जैव चिकित्सा अपशिष्ट जनित करने वाले स्वास्थ्य उपचार सुविधाओं एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट का उपचार तथा निपटारा करने वाले सामूहिक जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार केंद्र द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा की गयी। उक्त बैठक में जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 के प्रावधान को सभी सरकारी अस्पतालों एवं निजी नर्सिंग होम द्वारा सुनिश्चित कराने का निर्देश डीएम ने सिविल सर्जन को दिया है। समीक्षा के क्रम में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा जिले में प्राधिकार प्राप्त स्वास्थ्य उपचार सुविधाओं की संख्या और निबंधन पर चर्चा की गई। पूर्व में बैठक की चर्चा के आलोक में जिले के 66 लैब या संस्थान जिन्होंने जैव अपशिष्ट के उठाव के लिए तैयारी नहीं की थी उनपर टीम का गठन कर कार्रवाई की गयी है। जिसका रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया। जिला पदधिकारी ने सिविल सर्जन को निर्देश दिया गया कि नियमित अनुश्रवण के लिए तीन सदस्यीय वाली दल का गठन कर सभी स्वास्थ्य संस्थानों में निरीक्षण जारी रखेंगे। बैठक में सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर, डीपीएम स्वास्थ्य डॉ मुनाजिम, डीटीएल केयर प्रशंजित प्रमाणिक शामिल हुए। सिविल सर्जन डॉ किशोर ने बताया की जैव.चिकित्सा अपशिष्ट की विभिन्न श्रेणियों के उपचार और निपटान के सामान्य तरीके निम्नलिखित हैं। येलो श्रेणी के अपशिष्टरू इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान भस्मीकरण, प्लाज़्मा पायरोलिसिस गहरे गड्ढे में दफनाकर किया जाता है। रेड श्रेणी के अपशिष्टरू इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान आटोक्लेविंग, माइक्रोवेविंग, रासायनिक कीटाणुशोधन द्वारा किया जाता है। व्हाइट श्रेणी के नुकीले अपशिष्टर, इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान कीटाणुशोधन और कतरन, फाउंड्री- एन्कैप्सुलेशन के माध्यम से कंक्रीट के गड्ढे में दफनाने एवं रीसाइक्लिंग के बाद कीटाणुशोधन कर किया जाता है। ब्लू श्रेणी के कांच के अपशिष्टरू इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान रीसाइक्लिंग के बाद धुलाई, कीटाणुशोधन द्वारा किया जाता है।जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने बताया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार जैव चिकित्सा अपशिष्ट से होने वाले संभावित खतरों एवं उसके उचित प्रबंधन जैसे, अपशिष्टों का सेग्रिगेशन, कलेक्शन भंडारण, परिवहन एवं बायो.मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन जरूरी है। इसके सही तरीके से निपटान नहीं होने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अगर इसका उचित प्रबंधन ना हो तो मनुष्य के साथ साथ पशु. पक्षियों के को भी इससे खतरा है। सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया कि सरकारी अस्पतालों की परख जैव चिकित्सा अपशिष्ट बायो मेडिकल वेस्ट प्रबंधन के मानकों पर की जाएगी। जिसके मुताबिक उन्हें न सिर्फ इसका उचित इंतजाम करना होगा। साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र भी लिया जाएगा। हर अस्पताल में जैव और चिकित्सकीय कचरा उत्पन्न होता है। जो अन्य लोगों के लिए खतरे का सबब बन सकता है। इसे देखते हुए इस कचरे का उचित प्रकार निस्तारण कराने का प्रावधान भी है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 में पारित किए गए नियम में प्रावधानों को और कड़ा किया गया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिमाह 1 करोड़ रुपये वसूला जा सकता है। सभी अस्पतालों के लिए एक नोडल अधिकारी नामित किया जाएगा। नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लाइसेंस हासिल करें। साथ ही जैव चिकित्सा अपशिष्ट समिति का गठन कराया जाएगा।

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