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बड़े हुए कोर्ट फीस को लेकर रांची की मेयर डॉ आशा लकड़ा की प्रेस वार्ता

भारती मिश्रा विशेष प्रतिनिधि

बड़े हुए कोर्ट फीस को लेकर रांची की मेयर डॉ आशा लकड़ा की प्रेस वार्ता

 

शनिवार को भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री सह रांची की मेयर डाॅ. आशा लकड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कहा कि आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में राज्य सरकार ऐसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती है कि भविष्य में आदिवासी कभी अदालत का मुंह न देख सकें। आदिवासी अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार को बस सहन करता रहे, अदालत तक न पहुंचे। ऐसे भी आदिवासी के पास पैसा नहीं होता है। अशिक्षित होने के कारण आदिवासी समुदाय के लोग काफी कम संख्या में अदालत तक पहुंचते हैं। कोर्ट फीस वृद्धि विधेयक ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि भविष्य में कोई भी आदिवासी अपने किसी भी मामले में अदालत जाने के लिए नहीं सोच पाएगा। खासकर विवादित जमीन से संबंधित मामलों में आदिवासी समुदाय के लोग कोर्ट तक नहीं पहुंच पाएंगे। कोर्ट फीस में की गई वृद्धि के कारण सबसे अधिक जिला कोर्ट प्रभावित होंगे। कोर्ट फीस अधिक होने के कारण आदिवासी समुदाय के लोग कोर्ट में अपील नहीं कर पाएंगे। वर्तमान में बिल्डर आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। ऐसे हालात में पीड़ित आदिवासी न्याय के लिए किसके पास जाएगा। यदि कोर्ट ने संबंधित अपील को सुनवाई योग्य नहीं माना तो जमा की गई कोर्ट फीस भी यूं ही व्यर्थ हो जाएगी। अतः राज्य सरकार से आग्रह है कि कोर्ट फीस में की गई वृद्धि को पुनः संशोधित कर आदिवासियों के हित में किया जाए

● झारखंड सरकार ने कोर्ट फीस में 10 गुना से अधिक वृद्धि की है।

● संपत्ति विवाद से संबंधित मामला फाइल करने में पहले 50 हजार रुपये लगते थे। अब अधिकतम तीन लाख रुपये तक की कोर्ट फीस लगेगी।

● पहले जनहित याचिका दायर करने के लिए मात्र 250 रुपये खर्च करने पड़ते थे, अब जनहित याचिका के लिए एक हजार रुपये जमा करने होंगे। यह पूर्व की तुलना में चार गुना अधिक है।

● कोर्ट फीस (झारखंड संशोधन अधिनियम) को 22 दिसम्बर 2021 को विधानसभा से पारित कराया गया था।

● इस पर 11 फरवरी 2022 को राज्यपाल से स्वीकृति मिली थी

● गजट प्रकाशित होने के बाद कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर विरोध हो रहा है।

● 22 जुलाई 2022 को झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने राजभवन को आवेदन देकर कोर्ट फीस में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की थी।

• झारखंड सरकार ने कोर्ट फीस अधिनियम-2021 में संशोधन कर स्टाम्प फीस में छह से लेकर दस गुना तक की वृद्धि की गई है।

• यह विधेयक गरीबों पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाला और न्याय में बाधक है।

• इससे गरीब आदिवासी न्याय से दूर हो जाएंगे।

• झारखंड में पिछले 13 वर्षों में (2009 से 2021) तक आदिवासियों पर दर्ज किए गए हैं, जबकि इसके मुकाबले 23.1 प्रतिशत ओबीसी और 6.7 प्रतिशत दलितों पर दर्ज हुए हैं।

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