भाषा और संस्कृति का एक जटिल व समजातीय है संबंध : डा. बीरेंद्र
1947 ईस्वी तक नागपुरी नागवंशी राजाओं की राजभाषा थी नागपुरी, नई दिल्ली में आयोजित साहित्योत्सव में डा. बीरेंद्र झारखंड से नागपुरी भाषा का कर रहे हैं प्रतिनिधित्व
रांची : छोटानागपुर प्रांत के नागवंशी राजाओं ने नागपुरी भाषा को अपनी राजकाज की भाषा बनाया था। 1947 तक यह यहां की राजभाषा बनी रही। अंग्रेजों ने अपने धर्म प्रचार के लिए इसे अपनाया। इस भाषा की मधुरता के चलते विद्वानों ने इसे बांसुरी की भाषा, गीतों की रानी, मांदर की भाषा कह कर सुशोभित किया है। ये बातें जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय रांची युनिवर्सिटी में नागपुरी विषय के सहायक प्राध्यापक डा. बीरेंद्र महतो ने नई दिल्ली रविंद्र भवन में गुरूवार को आयोजित कार्यक्रम साहित्योत्सव 2024 में कही। साहित्य अकादमी की ओर से 11 से 16 मार्च तक चलने वाले इस कार्यक्रम में डा. बीरेंद्र झारखंड से नागपुरी भाषा का झारखंड राज्य से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पठन-पाठन के साथ साथ डा. बीरेंद्र ने नागपुरी व्याकरण और नागपुरी भाषा साहित्य से संबंधित कई पुस्तकों की भी रचना की है।
साहित्योत्सव में उन्होंने कहा कि भाषा ही संस्कृति है और संस्कृति ही भाषा है। भाषा और संस्कृति का एक जटिल, समजातीय संबंध है। उन्होंने कहा कि हमारी नागपुरी भाषा का समृद्ध इतिहास रहा है। साथ ही इसमें साहित्य का भंडार काफी समृद्ध रहा है।नागपुरी भाषा की उत्पत्ति और विकास के साथ साथ नागपुरी भाषा की महत्ता तथा क्षेत्र विस्तार और नागपुरी भाषा के नामकरण व लिखने के लिए समयांतर में प्रयोग किए गए लिपियों की यात्रा की जानकारी दी। साहित्योत्सव 2024 विश्व का सबसे बड़ा साहित्य उत्सव में 175 सत्रों में 175 भाषाओं के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।
सम्मेलन में झारखंड आंदोलनकारी, प्राध्यापक सह साहित्यकार डा. बीरेंद्र कुमार महतो को भी आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने गुरूवार को अपनी बात रखी। डा. बीरेंद्र कुमार महतो ने बताया कि कार्यक्रम में बहुभाषी कवि और कहानी-पाठ, युवा साहिती, अस्मिता, पूर्वोत्तरी जैसे नियमित कार्यक्रमों के अलावा भारत का भक्ति साहित्य, भारत में बाल साहित्य, भारत की अवधारणा, मातृभाषाओं का महत्व, आदिवासी कवि एवं लेखक सम्मिलन, भविष्य के उपन्यास, भारत में नाट्य लेखन, भारत की सांस्कृतिक विरासत, भारतीयों भाषाओं में विज्ञान कथा साहित्य, नैतिकता और साहित्य, भारतीय साहित्य में आत्मकथाएं, साहित्य और सामाजिक आंदोलन, विदेशों में भारतीय साहित्य जैसे अनेक विषयों पर परिचर्चा और परिसंवाद हुए।