वर्दी के पीछे साजिश: फर्जी दरोगा, असली ईमानदार की कुर्बानी

खगड़िया,02अगस्त(के.स.)। जब एक फर्जी दरोगा पूरे थाने में वर्दी पहनकर ड्यूटी करता है और असली ईमानदार पुलिस अफसर उसे बेनकाब करता है — तब सवाल सिर्फ कानून व्यवस्था का नहीं, पूरे प्रशासनिक तंत्र की साख का बन जाता है। बिहार पुलिस के अवर निरीक्षक अमलेन्दु कुमार सिंह की कहानी आज एक चेतावनी है — उस व्यवस्था के लिए जो ईमानदारों को संरक्षण देने में विफल होती जा रही है।गौर करे कि दिनांक 26 अगस्त 2021 — बेगूसराय निवासी विक्रम कुमार एक नकली नियुक्ति पत्र के साथ खगड़िया के मानसी थाना पहुंचता है। खुद को “प्रशिक्षु पुलिस अवर निरीक्षक” बताकर वर्दी पहनता है, थानाध्यक्ष दीपक कुमार के सहयोग से गश्ती और छापामारी जैसे कार्यों में शामिल होता है। थाना दैनिकी में उसका नाम दर्ज किया जाता है और पूरे डेढ़ महीने तक वह पुलिस बना रहता है। लेकिन जैसे ही चार असली प्रशिक्षु दरोगा — अमरेश, अभिजीत, प्रकाश और रज्जब — 8 सितंबर को जिलादेश लेकर थाना में योगदान करते हैं, फर्जीवाड़े की परतें खुलनी शुरू हो जाती हैं। जांच में साफ़ होता है कि विक्रम कुमार न केवल फर्जी नियुक्त था, बल्कि सोशल मीडिया पर वर्दी में फोटो डालकर अपने प्रभाव का दुरुपयोग कर रहा था। मानसी थाना कांड सं. 295/21 के तहत वह गिरफ्तार होता है। साथ ही उसका साथी रवि कुमार भी जेल भेजा जाता है।
ईमानदार की सजा: अमलेन्दु सिंह की पीड़ा
फर्जी बहाली का पर्दाफाश करने वाले अमलेन्दु कुमार सिंह को उनकी ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी। तत्कालीन एसपी अमितेश कुमार और कुछ अन्य अफसरों ने मिलकर उन्हें षड्यंत्र के तहत मानसी थाना कांड सं. 219/22 में झूठे भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा। निगरानी न्यायालय भागलपुर ने भले ही स्पष्ट कर दिया कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं बनता — लेकिन विभाग ने न केवल उन्हें निलंबित किया, बल्कि उनका जीवनयापन भत्ता भी बंद कर दिया। मानसी कांड में गवाही देने के बाद अमलेन्दु सिंह पर जानलेवा हमला किया गया। उन्होंने चित्रगुप्त नगर थाना में कांड सं. 54/24 के तहत एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें तत्कालीन एसपी सहित आठ अफसरों को आरोपी बनाया। लेकिन साजिशें यहीं नहीं रुकीं — साक्ष्यों के बावजूद जांच अधिकारी ने आरोपियों को क्लीनचिट दे दी। यह दर्शाता है कि जब अपराधियों को सिस्टम का संरक्षण मिल जाए, तो न्याय तक पहुंच पाना आम आदमी या एक ईमानदार अफसर के लिए असंभव सा हो जाता है। पूरे घटनाक्रम में जिन सवालों ने जन्म लिया है, वे न केवल खगड़िया, बल्कि पूरे बिहार पुलिस विभाग के लिए आईना हैं।
- बिना नियुक्ति आदेश के कोई व्यक्ति वर्दी पहनकर थाना में कैसे ड्यूटी कर सकता है?
- थानाध्यक्ष को असली नियुक्ति सूची मिलने के बाद भी फर्जी दरोगा को क्यों नहीं हटाया गया?
- विक्रम कुमार के खिलाफ कठोर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? और सबसे बड़ा सवाल — क्या ईमानदारी अब सिस्टम के लिए खतरा बन चुकी है?
आत्मदाह की चेतावनी: दर्द की अंतिम सीमा
अमलेन्दु सिंह ने स्पष्ट शब्दों में चेताया है कि यदि 19 जुलाई 2025 तक निष्पक्ष जांच का आदेश नहीं हुआ, तो वे 20 जुलाई को प्रधानमंत्री की आमसभा के दौरान आत्मदाह करेंगे। यह केवल एक व्यक्ति की चेतावनी नहीं है, यह उस लोकतंत्र की लाचारी का प्रतीक है, जहां ईमानदारी अब जीवनदायिनी नहीं, बल्कि जीवन संकट बन चुकी है।
अनुशंसाएं और सुधार की राह
- विक्रम कुमार पर IPC की कड़ी धाराओं में मुकदमा चले।
- थानाध्यक्ष दीपक कुमार पर विभागीय कार्रवाई शीघ्र शुरू हो।
- सत्यापन प्रणाली को डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए — बिना ऑनलाइन जिलादेश के कोई योगदान मान्य न हो।
- सोशल मीडिया निगरानी — वर्दी में फोटो शेयर करने पर नियम तय हो।
- अमलेन्दु सिंह की बहाली, भत्ते की अदायगी, और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
वर्दी कोई नकाब नहीं — यह एक जिम्मेदारी, एक भरोसे का प्रतीक है। यदि इस वर्दी को कोई फर्जी दरोगा पहन सकता है और ईमानदार अफसर को जेल जाना पड़े, तो यह केवल एक अफसर की त्रासदी नहीं — बल्कि पूरे सिस्टम की हार है। अगर इस मामले पर भी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह समझ लिया जाए कि अब “सच बोलना अपराध” और “ईमानदारी सबसे बड़ा खतरा” बन चुकी है।