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रुतबे का पर्याय रही लालबत्‍ती अब कुछ ही दिन की मेहमान,सरकार ने लालबत्‍ती पर लगाईं रोक….

और रुतबे का पर्याय रही लालबत्‍ती अब कुछ ही दिन की मेहमान रह गई है।सरकार ने इस पर रोक लगाई तो बनाने वालों ने भी काम रोक दिया।लालबत्‍ती को लेकर अब एक और सवाल यह है आखिर अब इसके निर्माता क्‍या करेंगे ? देश में ग्रांड, ल्‍यूमैक्‍स, सॉल्‍फिन और गरुड़ जैसे इसके निर्माता काम कर रहे थे।ग्रांड नामक ब्रांड से लालबत्‍ती बनाने वाले ओखला इंडस्‍ट्रियल एरिया स्‍थित आईजेएस इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स के पार्टनर जसपाल सिंह बताते हैं कि अब दूसरे काम पर ज्‍यादा फोकस किया जाएगा।करीब 35 वर्ष से यह काम करनेवाले सिंह का कहना है कि यूपी, पंजाब और बिहार में सबसे ज्‍यादा लालबत्‍तियां बिकती थीं।इसमें तो ऐसा लगता था कि घर-घर में नेता हैं।हम उनके लिए बत्‍ती के रूप में रुतबा बेचते थे।अब न पीएम इसका इस्‍तेमाल करेंगे और न डीएम।इससे काम पर असर तो पड़ेगा लेकिन इतना नहीं कि चिंता वाली बात हो।लालबत्‍ती तो हमारी दाल रोटी है,फिर भी हम चाहते हैं कि नेताओं और अफसरों का वीवीआईपी कल्‍चर बंद हो।हम चाहते हैं कि बत्‍ती का इस्‍तेमाल सिर्फ इमरजेंसी वाहनों में हो।इमरजेंसी व्‍हीकल वार्निंग प्रोडक्‍ट इंडस्‍ट्री में लालबत्‍ती का शेयर मात्र 4 फीसदी का है।हमारा मेन काम तो पुलिस, फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, मिलिट्री पुलिस और पैरा मिलिट्री फोर्सेज को लाइटें सप्‍लाई करने का है।वाहनों में लगने वाली और लाइटें भी तो बन रही हैं।एक साल में हमने लाल और नीली मिलाकर 8500 बत्‍तियां बेची हैं,जिसमें से लाल रंग की सिर्फ 1280 थीं।एक बत्ती का दाम  1200 रुपये तक होता था।जबकि चीन से  आयात होनेवाली बत्तियाेें  के दाम  काफी कम होते हैं।गरुड़ नाम से लालबत्‍ती बनाने वाले कहते हैं कि लालबत्‍ती खत्‍म होगी लेकिन नीले का काम चलता रहेगा।हम रंग बदल लेंगे।पहले वह हर माह लगभग सौ लालबत्‍ती बेच लेते थे लेकिन अब इसकी मांग बिल्‍कुल खत्‍म हो गई है।नीली बत्‍ती की मांग हर माह लगभग 900 से 1000 पीस तक थी वह अभी कायम है।नीली बत्‍ती की तरफ ज्‍यादा ध्‍यान देंगे…बत्‍तियां सिर्फ वाहनों पर नहीं लग रही हैं बल्‍कि इनका इस्‍तेमाल दूसरी जगहों पर भी हो रहा है।पुलिस के लिए इमरजेंसी बार लाइट अब भी बिकेगी,कंस्‍ट्रक्‍शन साइटों के लिए लाइट बिकती रहेगी।

रिपोर्ट:-वरिष्ठ पत्रकार (दिल्ली से )

 

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